चंद्रशेखर आजाद से रावण तक का सफर, पढ़े भीम आर्मी चीफ की पूरी कहानी

Nayak: साल 2024 लोकसभा का चुनाव जैसे- जैसे नजदीक आता जा रहा है. वैसे- वैसे राजनीतिक सिलसिला तेज होता जा रहा है.

Sagar Dwivedi
Sagar Dwivedi

Nayak: साल 2024 लोकसभा का चुनाव जैसे- जैसे नजदीक आता जा रहा है. वैसे- वैसे राजनीतिक सिलसिला तेज होता जा रहा है. अपने बयानों से अक्सर सुर्खियों में रहने वाले जाने- माने दलित नेता के रुप में रावण के नाम से जाने जाते हैं चंद्रशेखर आजाद के उध्दव ने ध्यान आकर्षित किया है. उत्तर प्रदेश में नगीना निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल करने हुए विदेश में पढ़ाई करने की इच्छा करने वाले एक कानून के छात्र से से लेकर  भीम आर्मी का नेतृत्व करने तक की आज़ाद की यात्रा सामाजिक सक्रियता और पहचान के दावे की एक सम्मोहक कहानी को दर्शाती है.

चंद्रशेखर आजाद अपने ट्रे़डमार्क नीले टुपट्टे में लिपटे रावण के नाम से जाने जाते हैं.  दलित राजनीति में एक प्रतीकात्मक व्यक्ति बन गए हैं. प्रमुखता की उनकी यात्रा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच शुरू हुई, जहां उन्होंने उच्च जाति के ठाकुर समुदाय द्वारा दलित उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. आज़ाद की सक्रियता की परिणति 2015 में सतीश कुमार और विनय रत्न सिंह के साथ भीम आर्मी के गठन के रूप में हुई, जिसका लक्ष्य दलितों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करना था.

चंद्रशेखर आज़ाद की निजी जीवन में प्रतिकूलताओं और आत्मनिरीक्षण से चिह्नित है. अपने पिता, गोवर्धन दास के निधन के बाद, आज़ाद, जिन्होंने विदेश में आगे की पढ़ाई करने पर विचार किया था. चंद्रशेखर आदाज दलित समुदाय के सामने आने वाले प्रणीलीगत अन्याय को संबोधित करने का एक गहरा उद्देश्य मिला. जाति पर भेदभाव के खिलाफ अपने पिता के सघर्ष को देखते हुए आज़ाद ने अपने समुदाय के उत्थान के लिए एक मिशन शुरू किया.

चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी के जमीनी स्तर पर सक्रियता में अम्बेडकर की मूर्तियां स्थापित करने से लेकर दलितों के बीच छोटे पैमाने के व्यवसायों की वकादल करने तक शामिल हैं. जाति-आधारित भेदभाव की घटनाओं का जवाब देते हुए, भीम आर्मी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक दुर्जेय ताकत के रूप में उभरी है, जो स्थापित सामाजिक पदानुक्रम को चुनौती दे रही है और हाशिये पर पड़े लोगों को आवाज प्रदान कर रही है. 

चंद्रशेखर आज़ाद का नेतृत्व पूरे भारत में दलित लामबंदी और दावे की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है. जिस प्रकार दलित अपनी पहचान और समाज एक नई पहचान पा रहे हैं. आज़ाद और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेता प्रणालीगत उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ रैली करते हुए प्रमुखता से उभरे हैं. राजनीतिक विरोधियों के आरोपों के बावजूद, आज़ाद का ध्यान सामुदायिक कल्याण, आत्म-सम्मान और सशक्तिकरण की वकालत पर केंद्रित है.

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22 March 2024, 06:46 PM IST

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