निर्वासित होकर भी हुमायूं ने दोबारा हासिल किया था दिल्ली और आगरा का सिंहासन

बाबर के चार बेटे थे. जिनमें हुमायूं सबसे बड़ा था. लेकिन जब बाबर का निधन हो गया तो हुमायूं ने सन् 1530 में गद्दी संभाली. बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी चुना था.

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

हुमायूँ एक मुगल शासक था. वह प्रथम मुगल सम्राट का बाबर का बेटा नसीरुद्दीन हुमायूँ था. उसका जन्म 6 मार्च 1508 में हुआ था. हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम ने जो जीवनी लिखी, उसके माध्यम से हुमायूं के बारे में बहुत सी बातें सामने आई हैं. उस जीवनी में गुलबदन ने हुमायूं को बहुत ही विनम्र स्वभाव का बताया है. उसका 27 जनवरी 1556 को निधन हो गया था. इसका साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, लेकिन मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ खास योगदान रहा.

बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूँ ने 29 दिसम्बर 1530 में भारत की राजगद्दी संभाली और उसके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया. बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो.कहा जाता है हुमायूं अपने राज्य की भलाई के लिए दुश्मनों को माफ कर देता था. 

चारों पुत्र में बड़ा था हुमायूं

बाबर के चार बेटे थे. जिनमें हुमायूं सबसे बड़ा था. लेकिन जब बाबर का निधन हो गया तो हुमायूं ने सन् 1530 में गद्दी संभाली. बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी चुना था. हालांकि निधन से पहले बाबर ने हुमायूं और उसके भाइयों में राज पाट और संपत्तियों का बंटवारा कर दिया था. सौतेला भाई कामरान मिर्जा लाहौर और काबुल का शासन लेकर अलग हो गया था.

कुशल प्रशासक था हुमायूं

हुमायूं का जन्म 1508 में हुआ था. वह 29 दिसंबर 1530 में जब आगरा के सिंहासन पर बैठा तब उसकी उम्र केवल 23 साल थी. वह युवा मुगल शासक बना. मुगल शासन की नींव को मजबूत बनाने और साम्राज्य के विस्तार में हुमायूं का बड़ा योगदान था. वह कुशल प्रशासक की भांति था. सन् 1533 में हुमायूं ने दीनपनाग नाम से एक नये नगर की स्थापना की थी.

शेरशाह सूरी से युद्ध

हुमायूं ने अपनी ज़िंदगी में चार बड़े युद्ध लड़े थे. सन् 1531 का देवरा युद्ध. 1538 में चौसा का युद्ध 1540 में बिलग्राम का युद्ध और 1555 में सरहिंद का युद्ध.

1538 में शेरशाह से हुमायूं का युद्ध शुरू हुआ था. सन् 1539 में शेर खां ने बक्सर के पास चौसा के युद्ध में हुमायूं को परााजित कर दिया था. मुगल सेना को काफी नुकसान हुआ था. इस युद्ध में विजय के बाद ही शेर खां को शेरशाह की उपाधि दी गई. इसके बाद 1540 में भी कन्नौज के पास बिलग्राम युद्ध में भी हुमायूं हरा गया. शेरशाह ने आगरा और दिल्ली जीतते हुए जब हुमायूं का पीछा किया तो वह सिंध की तरफ चला गया.

निर्वासित होकर फिर लौटा

हुमायूं ने सिंध के अमरकोट में निर्वासित जीवन बिताया. उसने वहीं हमीदा बानो से शादी की. फिर अकबर का जन्म हुआ. लेकिन इस निर्वासित (देश निकाला) जीवन में भी वह खामोश नहीं बैठा. 1555 में शेरशाह सूरी के बाद के शासक सिकंदर सूरी से युद्ध लड़कर जीत हासिल की. इसे सरहिंद का युद्ध कहा जाता है. इसके बाद उसने दिल्ली-आगरा पर फिर से हासिल कर लिया. लेकिन सन् 1556 में हुमायूं का निधन हो गया.

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26 January 2024, 09:32 PM IST

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