ॐ लोक आश्रम: अपने बच्चों पर न थोपें दबी हुई इच्छा
हम अपनी दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए अपने पुत्र को चुन लेते हैं। उसे अपना सपना साकार करने के लिए उत्तराधिकारी चुन लेते हैं। हमेशा यही ख्याल रहता है
हम अपनी दबी हुई इच्छा को पूरा करने के लिए अपने पुत्र को चुन लेते हैं। उसे अपना सपना साकार करने के लिए उत्तराधिकारी चुन लेते हैं। हमेशा यही ख्याल रहता है कि हम जीवन में शायद आईएएस, क्रिकेटर या अन्य उच्चाधिकारी नहीं बन पाए तो बेटा कम से कम बन जाना चाहिए। जो अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाए वो हम अपने पुत्र से चाहते हैं। हमारी ये इच्छा इतनी तीव्र होती है। इतनी प्रबल होती है कि हम ये भूल जाते हैं कि उस काम को करने में क्या सही मार्ग है और क्या गलत मार्ग है। बस हम चाहते हैं कि किसी तरह काम हो जाए। इस बात में कोई बुराई नहीं कि हम अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दें, अच्छे संस्कार दें, बड़े सपने दें। लेकिन इस बात में बुराई जरूर है कि हम अपनी महत्वाकांक्षाएं उस बच्चे पर लाद दें।
हमें ध्यान होना चाहिए कि हमने बच्चा पैदा किया है, न कि गुलाम। हो सकता है बच्चा वो करने के लिए बना ही न हो जो हम सोच रहे हैं। अगर एक मां-बाप अपने बच्चे को फुटबॉलर बनाना चाहते हैं। लेकिन हो सकता है बच्चा फुटबॉल खेलने के लिए बना ही न हो। वह कविता के लिए बना हो, लेकिन उसको फुटबॉल में लगा दिया गया। यहां से जीवन में समस्या प्रारंभ होती हैं। भगवद्गीता में भी कहा गया है कि जो गलत कर दिया गया है उसको रोकना होगा। आपको न्यूट्रल रहकर ये आकलन करना होगा कि हमारा बच्चा वो काम कर सकता है या हमारा बच्चा वो काम नहीं कर सकता है।