ॐलोक आश्रम: यह संसार कब उत्पन्न हुआ?

हमारे अंदर यह प्रश्न उठता है कि यह संसार कब उत्पन्न हुआ? आत्मा ने कभी न कभी तो पहला जन्म लिया तो होगा, वो पहला जन्म कब लिया? जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि पहला जन्म कौन सा था? तो हम एक पूर्ण मान्यता पर आधारित होते हैं कि समय हमेशा से था।

Janbhawana Times
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हमारे अंदर यह प्रश्न उठता है कि यह संसार कब उत्पन्न हुआ? आत्मा ने कभी न कभी तो पहला जन्म लिया तो होगा, वो पहला जन्म कब लिया? जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि पहला जन्म कौन सा था? तो हम एक पूर्ण मान्यता पर आधारित होते हैं कि समय हमेशा से था। क्योंकि आज हम समय और काल की अवधारणा को हमारी मानवीय बुद्धि समझ नहीं पा रही है। समझ नहीं रहे हैं हम आज के इस वैज्ञानक युग में। अगर हम विज्ञान को मानें तो बिग बैंग के समय, समय की उत्पत्ति होती है तब फिर मानव पूछेगा कि जब समय की उत्पत्ति नहीं हुई थी उसके पहले क्या था? इसकों हम कुछ इस तरह से समझते हैं कि पुराणों में एक कथा आई है और वहां एक प्रश्न आया कि सारी चीजें तो धरती के ऊपर रखी है लेकिन ये धरती किसके ऊपर रखी है।

कुछ कथाकारों न कहा कि धरती कछुए के ऊपर रखी है फिर प्रश्न उठा कि कछुआ किसके ऊपर रखा है तो कहा गया कि कछुआ वराह के ऊपर रखा है भगवान विष्णु ने वराह का रूप लेकर उसको पकड़ा हुआ है। फिर कहा गया कि ये सब हाथी के ऊपर है अब फिर प्रश्न उठा कि हाथी किसके ऊपर है तो कहा गया कि हाथी शेषनाग के फन पर है और शेषनाग पर भगवान विष्णु लेटे हुए हैं और उसकी शैय्या पर मां लक्ष्मी उनके पांव दबा रही हैं। कुल मिलाकर महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि पृथ्वी किस पर रखी हुई है और कोई भी कथाकार इसका सही उत्तर नहीं दे पाया।

वराहमिहिर और आर्यभट्ट जैसे विद्धानों ने और उसके पहले जो ऋषियों ने जो उत्तर दिए वो उत्तर लोगों के गले से उतरा नहीं। उन्होने कहा कि पृथ्वी किसी के ऊपर रखी नहीं है, लटकी हुई है, घूम रही है। ये उत्तर लोगों के समझ में ही नहीं आता था कि पृथ्वी अगर घूम रही है लटकी हुई है तो नीचे क्यों नहीं गिरती। आज हमारी मानवीय बुद्धि इतनी बड़ी है कि हर बच्चा-बच्चा, जन-जन इस बात को जानता है कि किसी वस्तु के लिए जरूरी नहीं है कि उस वस्तु के नीचे कुछ रखा ही हो।

कई बल ऐसे भी होते हैं जिनके तहत कोई वस्तु अधर में भी लटक सकती है और आज मानव की बनाई हुई कृत्तियां उपग्रह भी अधर में लटके हुए हैं और घूम रहे हैं। इसी तरह से आज हम काल को जिस तरह से परिभाषित कर रहे हैं, स्पेस को जिस तरह से हम परिभाषित कर रहे हैं इसके कारण हमारे अंदर यह प्रश्न उठता है कि हमारे अंदर ये प्रश्न उठता है कि पहला जन्म कब हुआ, वस्तुत: पहला जन्म था ही नहीं कभी। काल सृष्टि के बाद पैदा हुआ, सृष्टि के पहले काल था ही नहीं। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण भगवदगीता में अर्जुन को समझा रहे हैं कि तुम संसार के यथार्थ रूप को समझो तभी तुम आगे बढ़ सकोगे। तभी तुम जीवन को समझ सकोगे।

भगवदगीता में जिस ज्ञान का उपदेश दिया गया है वो आज के विज्ञान से भी करोड़ों गुना आगे है, शायद कभी पांच सौ या हजार साल में कभी विज्ञान वहां तक पहुंच पाएगा। भगवान कृष्ण कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि ये आत्मा, परमात्मा उत्पन्न होता है या मरता है या ऐसा भी नहीं है कि कभी हुआ है और ये होकर नहीं होने वाला है। यह कभी उत्पन्न नहीं हुआ। अज है अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुराना है। शरीर के नाश के साथ इसका नाश नहीं होता। ये जो आत्मा है परमात्मा है सारा संसार है इसके पीछे की जो ऊर्जा है, जिस ऊर्जा से इस पूरे संसार का आकार लिया हुआ है यह ऊर्जा कभी उत्पन्न नहीं हुई और न ही कभी नष्ट होती है। यह तो विज्ञान भी मानता है कि ऊर्जा केवल अपना स्वरूप बदलती है कभी नष्ट या उत्पन्न नहीं होती।

भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि आत्मा न तो कभी उत्पन्न होता है न कभी नष्ट होता है न ये शरीर के मरने पर मरता है बल्कि ये हमेशा से है क्योंकि समय की उत्पत्ति इसके बाद हुई है। समय बड़ी रिलेटिव चीज है आज के विज्ञान में भी हम समय के पार देखने की कोशिश कर रहे हैं। हम बिगबैंग के बाद उस सिंगुलरिटी की बात कर रहे हैं जो कि टाइम और स्पेस से परे है। जो कि आज के सारे वैज्ञानिक नियमों से परे है और ब्रह्म तो उससे भी परे है। इसलिए वेद आत्मा को ज्ञान का विषय नहीं कहते, वेद आत्मा को आत्म साक्षात्कार का विषय कहते हैं कि अपने अंदर देखो, हम आंखों से दूसरे को देखते हैं, तर्जनी से दूसरे को छूते हैं लेकिन आत्मा इस तरह है कि आंखों से खुद को ही दिख जाए, तर्जनी से खुद को ही छू लो इस तरह का ज्ञान जो है वो आत्मज्ञान है। जब संसार का विनाश होता है, शरीर बनता है बिगड़ता है लेकिन इसके पीछे जो आत्मा है जो हमारा सेल्फ है हम है वो कभी नष्ट नहीं होता वो ऐसा ही रहता है।

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04 July 2022, 04:52 PM IST

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