मोदी अपने घर में 'एंटी इनकंबेंसी' को हरा पाएंगे?

भाजपा शासित गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। एक और पांच दिसंबर को दो चरणों में मतदान होगा। फिर आठ दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के साथ ही मतगणना होगी। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

लेखक वरिष्ठ टेलीविजन पत्रकार- राहुल सिंह शेखावत

भाजपा शासित गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। 1 और 5 दिसंबर को दो चरणों में मतदान होगा। फिर 8 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के साथ ही मतगणना होगी। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। लिहाजा न सिर्फ मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल बल्कि खुद उनकी प्रतिष्ठा दांव पर होगी। कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले 27 सालों से वहां भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज है। खुद मोदी पीएम बनने से पहले वहां सीएम थे। फिर आनंदी बेन पटेल, विजय रुपाणी और भूपेंद्र पटेल ने बागडोर संभाली। गुजरात में 'एंटी इनकंबेंसी' की मौजूदगी स्वाभाविक है। 

महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की नाराजगी सरीखे मुद्दे ज्वलंत हैं। जिसे भांपते हुए मोदी ने एक झटके में सीएम समेत पूरी कैबिनेट बदलने में देर नहीं लगाई। हालांकि कतिपय सर्वे भाजपा का पलड़ा भारी बता रहे हैं, लेकिन भाजपा अंदरखाने असहज है। गुजरात में लोग कोरोना की दूसरी लहर नहीं भूले हैं। अगर रुपाणी ने बेहतर परफॉर्म किया होता तो उन्हें हटा पटेल को मुख्यमंत्री नहीं बनाना पड़ता। हाल में 'मोरबी झूला पुल' के टूटने से 130 लोगों की पानी में डूबकर मौत हुई। जिससे भाजपा को सौराष्ट्र क्षेत्र में चुनावी नुकसान हो सकता है। 

इसके बाबजूद गुजरात में पार्टी की उम्मीदें 'मोदी मैजिक' पर हैं। दरअसल, मोदी ने अपने सियासी तिलिस्म से एंटी इनकंबेंसी को हराया। पिछले चुनाव में भाजपा को  99 सीटें हासिल हुईं। वहीं,  कांग्रेस  77 सीटें जीतने में कामयाब रही। बेशक भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई। लेकिन 1995 के बाद उसका यह सबसे निम्न स्तर था। बीजेपी को 2002 में सबसे ज्यादा 127 सीट मिलीं। वहीं 2007 में 117 और 2012 में 115 विधायक निर्वाचित हुए थे। नतीजों से साफ है कि उसकी सीटें चुनाव दर चुनाव घटीं। पिछले चुनाव में मजबूती से लड़ी कांग्रेस जीतते-जीतते रही थी। अगर 'नोटा' को पड़े वोट उसे मिल जाते तो मुमकिन है कि भाजपा सरकार नहीं होती। 

क्या कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर से उपजे जनाक्रोश को अपने पक्ष में करने में सक्षम है? जिसका जवाब 'हां' अथवा 'ना' में सीधा ढूंढना आसान नहीं। उसके हालत पर गौर करना बेहतर होगा। 'पाटीदार आंदोलन' से  भाजपा को नुकसान देने वाले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ दी है। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर मोदी सरकार को घेरा था। फिलहाल वह 12 राज्यों की भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। जो चुनावी राज्य गुजरात से नहीं गुजर रही। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी ने भाजपा की नाक में दम किया। पाटीदार, ओबीसी और दलित वर्ग के तीन लड़कों वाली तिकड़ी अब टूट चुकी है। हार्दिक और अल्पेश बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 27 सालों से सत्ता के वनवास के चलते पार्टी संगठन जर्जर है।

वहीं कांग्रेस के पास कोई राज्य स्तरीय 'अपीलिंग फेस' नहीं है। सोनिया गांधी के 'चाणक्य' अहमद पटेल अब इस दुनिया में नहीं रहे। पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस का हिस्सा नहीं हैं। हालांकि उनके बेटे पूर्व विधायक महेंद्र हाल में भाजपा छोड़ वापस पार्टी में शामिल हो गए। क्या कांग्रेस छोड़ने वाले एक दर्जन से ज्यादा विधायकों का विकल्प पार्टी ने ढूंढा है? भाजपा के पास न सिर्फ करिश्माई मोदी हैं बल्कि रणनीतिकार अमित शाह भी हैं। दोनों ही नेताओं का गुजरात गृह राज्य है। इस जोड़ी ने हिंदी बेल्ट ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर में धर्म और कथित राष्ट्रवाद के सहारे भाजपा को अकल्पनीय चुनावी जीत के नए पैमाने तय किए हैं।

लेकिन इस बार मोदी और शाह का 2024 के आम चुनाव से पहले घरेलू मोर्चे पर कड़ा इम्तिहान है। उधर, आरएसएस लंबे समय से काबिज सरकार के खिलाफ स्वभाविक जनाक्रोश को कम करने के लिए ग्रांउड लेबल पर जुटा है। वहीं कांग्रेस ने बतौर ऑब्जर्बर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को गुजरात फतेह करने का जिम्मा सौंपा। जिन्होंने पिछले चुनाव में राहुल से कंधा मिलाकर अपनी सांगठनिक रणनीति से पार्टी को जीत के करीब पहुंचाया। उनके करीबी प्रदेश प्रभारी रघु शर्मा राजस्थानी नेताओं की टीम के साथ ग्रामीण इलाकों में गहलोत की रणनीति को अंजाम दे रहे हैं।

 कांग्रेस का जोर लोकल मुद्दों पर भाजपा सरकार के खिलाफ जनाक्रोश को गुपचुप तरीके से अपने पक्ष में करने पर है। गुजरात में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी चुनावी लड़ाई रही। लेकिन आम आदमी पार्टी त्रिकोणीय मुकाबले को बनाने की फिराक में है। अरविंद केजरीवाल ने नोट पर 'लक्ष्मी गणेश' की आकृति छापने की मांग की। जिसके जरिए वह बीजेपी को धार्मिक एजेंडे से चुनौती दे रहे हैं। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को झटका दे चुके अरविंद कांग्रेस के मुकाबले से बाहर होने का दावा कर रहे हैं। सवाल यह है कि वह दोनों में किसके वोटबैंक में सेंधमारी करेंगे। बहरहाल, 2024 के चुनाव से पहले  गृह राज्य में सरकार बचाने का मोदी के कंधों पर ही भार है।

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06 November 2022, 09:53 PM IST

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