“किताब में नहीं, दिल में है” — चीन में दलाई लामा का नाम लेना भी गुनाह!
चीन में दलाई लामा के चित्रों पर कड़ा प्रतिबंध है. एक चीनी पुलिसवाले ने मेरी किताबें देखकर पूछा कि कहीं दलाई लामा की तस्वीर तो नहीं है. मैंने जवाब दिया, “किताब में नहीं, दिल में है.” वह गुस्से से देखता रहा. वहां ऐसे चित्र दिखाने पर 10 साल की सजा है.

मानसरोवर यात्रा के दौरान जब हम नेपाल के सिमिकोट से हेलीकॉप्टर के ज़रिए हिलसा पहुंचे, तो यह सफर केवल भौगोलिक नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं से भी भरा हुआ था. 14,000 फीट की ऊंचाई पर बसे इस छोटे से गांव हिलसा में करनाली नदी बहती है, जो मानसरोवर से निकलती है और भारत पहुंचकर सरयू के नाम से जानी जाती है. सरयू का यह राम से रिश्ता कैलास से रामेश्वरम तक शिव और राम के संबंध की एक सुंदर प्रतीकात्मकता दिखाता है.
हिलसा पार कर जब हम तिब्बत के तकलाकोट पहुंचे, तो वहां चीन की सीमा में कदम रखते ही माहौल एकदम बदल गया. सीमा पर कस्टम जांच के दौरान सख्त चीनी अफसरों का सामना हुआ. दलाई लामा का नाम लेना भी वहां अपराध है. लेकिन यही तिब्बत जब हमारे ड्राइवर “बम भोले, हर-हर महादेव” के नारों से गूंजता है, तो दिल भावुक हो उठता है. देवनागरी ना जानने के बावजूद गांव के बच्चे और लोग “ॐ नमः शिवाय” बोलते हैं. यह श्रद्धा, यह अपनापन तिब्बत और भारत के सांस्कृतिक रिश्ते की गहराई को दिखाता है.
तिब्बत में भारत के लिए सम्मान
तकलाकोट सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील शहर है, लेकिन यहां तिब्बती, नेपाली और भारतीय व्यापारियों की दुकानें भी हैं. कभी भारतीय व्यापारियों का यहां वर्चस्व था, लेकिन 1962 की लड़ाई के बाद स्थितियां बदलीं. आज भी कुछ भारतीय दुकानें वहां मौजूद हैं. यहां हमें नेपाल से आए गाइड और खानसामा मिले, जिनके साथ हमारा ट्रक और राशन था. नेपाली गाइड हमें समझाते रहे कि चीनी दुकानों से सावधान रहना चाहिए.
चीन के लिए डर — एक अनुभव की कहानी
तिब्बती लोग, खासकर ड्राइवर गुंफा दोरजी, चीन के खिलाफ भीतर ही भीतर आक्रोश से भरे थे. दलाई लामा के प्रति श्रद्धा और तिब्बत की स्वतंत्रता की भावना आज भी उनमें जीवित है. यह आस्था एक दिन विद्रोह की चिंगारी बन सकती है. तिब्बती महिलाएं यहां भी पुरुषों से ज्यादा ज़िम्मेदारी निभा रही थीं—घर, दुकान और बच्चों की देखरेख में व्यस्त.
दलाई लामा की चर्चा पर सख्त हुआ चीन
तकलाकोट के इस अनुभव ने यह स्पष्ट कर दिया कि भले ही तिब्बत राजनीतिक रूप से चीन के अधीन हो, लेकिन उसकी आत्मा अब भी भारत के साथ बंधी है. और जब वहां के बच्चे “ॐ नमः शिवाय” बोलते हैं, तो लगता है जैसे कैलास की गोद में भी भारत की संस्कृति की गूंज अनवरत चल रही है.


