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कश्मीर में इस्लामिक शासन की शुरुआत कैसे हुई बारामूला की खुदाई ने दो हजार साल पुराना सच बताया

बारामूला की खुदाई में मिले बौद्ध स्तूपों ने कश्मीर के उस इतिहास को सामने रखा है, जहां धर्म सत्ता और राजनीति के रास्ते बदलते दिखाई देते हैं।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में हालिया खुदाई ने इतिहास के कई दबे हुए पन्ने खोल दिए हैं। यहां जेहनपोरा इलाके में मिले तीन बौद्ध स्तूप कश्मीर के दो हजार साल पुराने अतीत की गवाही दे रहे हैं। यह वही इलाका है जो प्राचीन सिल्क रूट के किनारे बसा था। जानकार मानते हैं कि यह खोज साबित करती है कि कश्मीर कभी बौद्ध शिक्षा और संस्कृति का बड़ा केंद्र था। यह तथ्य आज के राजनीतिक और धार्मिक विमर्श को भी नई दिशा देता है। सवाल उठता है कि जिस कश्मीर की जड़ें बौद्ध और हिंदू परंपराओं में थीं, वहां इस्लामिक शासन की शुरुआत कैसे हुई।

पीएम मोदी ने क्यों किया जिक्र?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बारामूला की इस खोज का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि जेहनपोरा में मिले स्तूप कश्मीर के प्राचीन और समृद्ध इतिहास को दिखाते हैं। प्रधानमंत्री का यह बयान सिर्फ सांस्कृतिक जानकारी नहीं था। इसके जरिए उन्होंने देश को यह याद दिलाया कि कश्मीर की पहचान एकतरफा नहीं रही। सदियों तक यह भूमि ज्ञान व्यापार और आध्यात्म का संगम रही। यही वजह है कि इस खुदाई को केवल पुरातात्विक खोज नहीं माना जा रहा। इसे इतिहास की दिशा बदलने वाले संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।

कुषाण काल से क्या संकेत मिलते हैं?

खुदाई में मिले स्तूपों को कुषाण युग का बताया जा रहा है। यह वही दौर था जब सिल्क रूट के जरिए भारत मध्य एशिया और चीन से जुड़ा था। कश्मीर उस समय व्यापार और शिक्षा का बड़ा केंद्र था। बौद्ध भिक्षु यहां से मध्य एशिया तक ज्ञान ले जाते थे। इससे यह साफ होता है कि कश्मीर की पहचान लंबे समय तक बौद्ध और हिंदू संस्कृति से जुड़ी रही। ऐसे में सवाल यह है कि बाद में सत्ता का स्वरूप कैसे बदला। इतिहासकार मानते हैं कि इसके जवाब राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी आक्रमणों में छिपे हैं।

पुराण क्या कहानी बताते हैं?

नीलमत पुराण और कल्हण की राजतरंगिणी में कश्मीर के भूगोल और उत्पत्ति की कथा मिलती है। कथाओं के अनुसार जलोद्भव नाम का राक्षस इस क्षेत्र में आतंक फैलाता था। ऋषि कश्यप ने तपस्या कर देवताओं को बुलाया। उनके पुत्र अनंत नाग ने बारामूला के पहाड़ों पर प्रहार किया जिससे पानी का रास्ता खुला। इसी से कश्मीर घाटी का निर्माण माना गया। यह कथा बताती है कि बारामूला सदियों से प्रवेश द्वार की भूमिका में रहा। यही द्वार आगे चलकर राजनीतिक बदलावों का भी कारण बना।

कब बदला सत्ता का संतुलन?

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक कश्मीर आए और श्रीनगर की स्थापना की। इसके बाद आठवीं सदी में राजा ललितादित्य का उदय हुआ जिसे कश्मीर का सिकंदर कहा गया। लेकिन तेरहवीं सदी आते आते स्थिति बदलने लगी। राजा सुहादेव के कमजोर शासन के दौरान बाहरी लोग कश्मीर पहुंचे। इनमें शाह मीर स्वात से आया मुसलमान था। लंकर चक उत्तर का सरदार था और रिंचन लद्दाख का बौद्ध राजकुमार था। सत्ता की कमजोरी ने बदलाव का रास्ता खोल दिया।

मंगोल हमले ने क्या बदला?

1320 में मंगोल कमांडर दुलुचा ने पहाड़ी दर्रों से होकर कश्मीर पर हमला किया। इस हमले ने घाटी को पूरी तरह तबाह कर दिया। गांव उजड़ गए और शासन व्यवस्था टूट गई। इस अराजकता में रिंचन ने खुद को राजा घोषित कर दिया। लेकिन विदेशी होने के कारण उसे वैधता की जरूरत थी। वह कश्मीरी समाज में स्वीकार किया जाना चाहता था। यही वह मोड़ था जहां धर्म और राजनीति एक दूसरे से टकराए।

पहला मुस्लिम शासक कैसे बना?

रिंचन ने शैव धर्म अपनाने की इच्छा जताई और मुख्य पुजारी देवस्वामी से संपर्क किया। लेकिन जाति नियमों के कारण उसे स्वीकार नहीं किया गया। ब्राह्मणों की इस अस्वीकृति ने इतिहास की दिशा बदल दी। इसके बाद रिंचन की मुलाकात सूफी संत बुलबुल शाह से हुई। उसने इस्लाम स्वीकार किया और नाम रखा सुल्तान सदरुद्दीन। इसी के साथ कश्मीर में इस्लामिक शासन की शुरुआत हुई। बारामूला की खुदाई आज उसी ऐतिहासिक मोड़ की याद दिला रही है।

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