बरसाने में इस दिन खेली जाएगी लठमार और लड्डू होली, जानिए इनकी प्रथा और कथा के बारे में सब कुछ
बरसाना गांव की लठमार होली और लड्डू होली पूरी दुनिया में अपने अनोखेपन को लेकर मशहूर हैं. जानिए लड्डुओं और लठ से होली खेलने की प्रथा किसने और कब शुरू की। इसके पीछे की कहानी बहुत ही प्यारी औऱ दिलचस्प है।
अगले माह होली का त्योहार आ रहा है,देश दुनिया में रंग गुलाल बिखरेंगे और सब एक दूसरे को रंगों से सरोबार कर देते हैं। यूं तो होली रंग और गुलाल से खेली जाती है लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा के बरसाना और बृज मंडल में लड्डू होली और लठमार होली की अनोखी प्रथा सबका मन मोह लेती है। बरसाना में भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी ने फूलों की होली खेल कर होली के त्योहार की शुरूआत की थी और इसी पावन भूमि पर लड्डुओं की होली खेली जाती है और यहां होली के लठ भी बरसाए जाते हैं। चलिए आपको इस बार बरसाने की लठमार और लड्डू होली के बारे में सारी जानकारी देते हैं।
होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। होलाष्टक के पहले ही दिन बरसाने में लड्डू होली खेली जाती है। यहां लाडली राधा जी के मंदिर में लाखों भक्तों की भीड़ लगती है और मंदिर में लाखों लड्ओं का भोग लगता है, उसके बाद इन्हीं लडुड्ओं को प्रसाद के तौर पर भक्तों को बीच बांटा जाता है और भक्त लड्डू एक दूसरे पर बरसा कर होली खेलते हैं।
कान्हा के पुरोहित ने गुलाल की बजाय बरसाए लड्डू
इस बार 27 फरवरी को बरसाना के लाडली मंदिर में लड्डू होली खेली जाएगी। लड्डू होली की शुरूआत कैसे हुई, इसकी एक दिलचस्प कथा है। कहते हैं कि एक बार राधा जी के गांव बरसाना से एक गोपी होली खेलने का निमंत्रण लेकर श्रीकृष्ण के गांव नंदगांव पहुंची। यहां उसका काफी सादर सत्कार किया गया। उसने श्रीकृष्ण की तरफ से राधा जी के गांव एक पुरोहित भेजा गया और फाग खेलने का न्यौता स्वीकार किया गया, कान्हा के गांव के पुरोहित का बरसाने की गोपियों ने सत्कार किया और उन पर काफी सारा गुलाल डाल दिया। पुरोहित के पास गुलाल तो था नहीं, उसने खाने के लिए परोसे गए लड्डू गुलाल की तरह फैंकने शुरू कर दिए। इस तरह श्रीकृष्ण और राधा रानी के गांव वालो के बीच लड्डू होली की प्रथा शुरू हो गई। द्वापर युग से लेकर आज तक लड्डू होली कीये प्रथा नंदगाव और बरसाना गांव के लोग निभा रहे हैं। लाडली मंदिर में इस दिन लाखो लोगों की भीड़ उमड़ती है। लोग आरती के बाद एक दूसरे पर लड्डू फैंकते हैं और इसे ही प्रसाद के तौर पर पाते हैं।
लठमार होली
लड्डू होली से एक दिन पहले बरसाना गांव में लठमार होली मनाई जाती है। बरसाने की लठमार होली पूरी दुनिया में मशहूर है और होली के मौके पर विदेशों से आए लोग इसे देखने आते हैं। इसके बारे में आपने सुना होगा लेकिन इसके पीछे का कारण कम ही लोग जानते हैं। कहते हैं कि होली से पहले श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ राधा रानी के गांव पहुंच गए। यहां वो अपने ग्वालों के साथ राधारानी के साथ छेड़खानी करने लगे तो राधा रानी ने छड़ी लेकर श्रीकृष्ण और उनके ग्वालों पर बरसा दी। इसे लठमार होली के नाम से जाना जाने लगा।
आज भी ये प्रथा बरसाना गांव और नंदगाव गांव के लोगों के बीच निभाई जाती है। मंदिर के प्रांगण में हजारों लोगों के बीच सिर पर घूंघट लेकर सजी धजी महिलाएं नंदगांव से आए लोगों पर लाठिया बरसाती हैं औऱ नंदगांव के लोग हंसते हुए इन लाठियों का मजा लेते हैं। नंदगांव के लोग कमर में फेंटा बांधकर और सिर पर साफा बांधकर इन लाठियों से बचते हैं और खूब रंग गुलाल से तरबतर हो जाते हैं। इस नजारे को देखने के लिए हर साल लाखों लोगों की भीड़ जमा होती है। देखा जाए तो ये अनूठा त्योहार प्यार और तकरार के बीच का संबंध है जिसे द्वापर युग से निभाया जा रहा है।
देखा जाए तो मथुरा और बृजमंडल में होली की शुरूआत लड्डू होली से भी पहले फुलैरा दौज से ही हो जाती है। फुलैरा दौज पर भगवान कृष्ण ने राधा रानी के साथ फूलों की होली खेली थी और इसी पर्व के साथ ब्रज में फाग यानी होली के त्योहार की विधिवत शुरूआत हो जाती है। इसके बाद लड्डू होली, लठमार होली और फिर सात दिन का फाग खेला जाता है। पूरा इलाका रंग से सराबोर हो जाता है। लोग जमकर एक दूसरे पर रंग लगाते है और फाग के गीत गाए जाते हैं।