ॐलोक आश्रम: हम प्रकृति को किस रूप में देखते हैं? भाग-3
ॐलोक आश्रम: हम प्रकृति को किस रूप में देखते हैं? भाग-3
इसीलिए भगवान कृष्ण कहते हैं कि संयम करो। न तो नाम के पीछे भागो, न सुंदरता के पीछे भागो, न पैसे के पीछे भागो, न काम वासना के पीछे भागो। न अपनी तारीफों को सुनने के पीछे भागो। सारी इन्द्रियों को संयमित करो। हर जगह सम्यक बुद्धि अपनाओ। कोई व्यक्ति तारीफ करे तो वह भी उतना ही प्रिय है और कोई व्यक्ति निंदा करे तो वो भी उतना ही प्रिय है। अगर कोई व्यक्ति कुछ दे तो वह भी उतना ही प्रिय है और कोई व्यक्ति कुछ मांगे तो भी वह उतना ही प्रिय है। निंदा करे स्तुति करे बराबर है।
ऐसा व्यक्ति कोई है जो ज्ञान की अवस्था को प्राप्त हो गया है, जिसने ध्यान के द्वारा, जिससे मनन के द्वारा आत्मा में शांति को प्राप्त कर लिया है। ऐसे व्यक्ति ने अगर इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया है या हम यूं कहें कि ऐसे व्यक्तियों का अपने आप इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित हो गया है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर के सानिध्य के लिए उपयुक्त है। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव ऐसा बन जाता है कि वह सभी के हित के लिए काम करेगा। ऐसा व्यक्ति किसी के विरुद्ध काम नहीं कर सकता।
किसी को कष्ट देने के लिए काम नहीं कर सकता। वह न तो किसी को सुख देने के लिए काम करता है और न तो किसी को दुख देने के लिए काम करता है। उसका स्वभाव ही ऐसा बन जाता है कि जैसे कि एक फूल खिलता है तो वह फूल किसी को खुशबू देने के लिए नहीं खिलता। फूल का स्वभाव ही है कि वो महकेगा ही। उसके आसपास जो भी आएगा उसको उसकी खुशबू मिलेगी ही। नदी का स्वभाव ही है कि वह बहती रहेगी जो भी उसके पास आएगा वह उसकी प्यास बुझाएगा और वह पानी पीएगा और चला जाएगा।
वृक्ष का स्वभाव ही है कि वो छाया देगा, फल देगा। लोग वृक्ष की छांव में बैठते हैं उसके मीठे फल का सेवन करते हैं और चले जाते हैं। बादल का स्वभाव है बरसना उसे कोई बरसने के लिए नहीं कहता है लेकिन स्वभाव है तो वो बरसता है। इसी तरह से जो व्यक्ति ईश्वर के ध्यान में लगा हुआ है, प्रभु के ध्यान में लगा हुआ है। जिसकी सत्ता ईश्वरीय हो गई है उसके जो भी काम होंगे वह लोगों के कल्याण के लिए होंगे। जीव मात्र के कल्याण के लिए होंगे। वह संसार के कल्याण के लिए होंगे। वह सबके कल्याण के लिए होंगे। ऐसा व्यक्ति भगवान को प्रिय है, ऐसा व्यक्ति प्रभु को प्रिय है और ऐसा व्यक्ति ही भगवदप्राप्ति का अधिकारी है।