ॐलोक आश्रम: क्या सनातन सबसे प्राचीन धर्म है? भाग-2

हमारा समाज युद्धों का समाज रहा है। हमारे राज्य युद्धों के रहे हैं। हमारा इतिहास युद्धों का रहा है। हमारा इतिहास प्रतिस्पर्धा का रहा है। इस इतिहास ने इन घटनाओं ने धर्म पर भी प्रभाव डाला। लोगों के मानसिक वृत्तियों पर प्रभाव डाला। समय के साथ में कई बार ऐसा होता है कि कुछ कुरीतियां आ जाती हैं

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

ॐलोक आश्रम: हमारा समाज युद्धों का समाज रहा है। हमारे राज्य युद्धों के रहे हैं। हमारा इतिहास युद्धों का रहा है। हमारा इतिहास प्रतिस्पर्धा का रहा है। इस इतिहास ने इन घटनाओं ने धर्म पर भी प्रभाव डाला। लोगों के मानसिक वृत्तियों पर प्रभाव डाला। समय के साथ में कई बार ऐसा होता है कि कुछ कुरीतियां आ जाती हैं। इसके साथ ही होता है कि कुछ लोग एक नए धर्म का उदय करते हैं। बहुत सारी परिस्थितियां ऐसी बनीं जब नई-नई विचारधाराओं का उदय हुआ। सनातन हमेशा से नए विचारों को आश्रय देने वाला रहा है। इसी कारण सनातन में अनेकानेक पूजा पद्धतियां हैं, अनेकानेक देवी-देवता रहे हैं। पूजा पद्धतियां एक रही हैं क्योंकि सनातन की ये विचारधारा रही कि ईश्वर एक है और उस तक पहुंचने के अनेकानेक मार्ग हैं। कोई भी किसी भी मार्ग को चुन सकता है। ये रास्ता चलता रहा।

नए मार्ग आते रहे बनते रहे। लेकिन दो मार्ग ऐसे आए जो पूरी दुनिया में पूरी सनातन व्यवस्था में उलटफेर करने का काम किया। जो ये मानते हैं कि केवल हमारा मार्ग की सत्य है बाकी सारे मार्ग असत्य हैं। ये दोनों एक प्रचारवादी पंथ बनकर आए जिन्होंने ये कहा कि आप गलत रास्ते पर हो और सारे सनातनियों को उन्होंने कहा कि आप गलत रास्ते पर हो और सही पंथ हमारा है। बहुत सारे लोग जिनमें ज्ञान का अभाव था, जिनमें आस्था का अभाव था वो धीरे-धीरे उन पंथों में जुड़ना चालू हुए। चूंकि वो प्रचारवादी धर्म थे इसलिए उन्होंने लालच दिया, उन्होंने डर दिखाया इस कारण से कुछ लोग लालच के प्रभाव में कुछ लोग डर के प्रभाव में उनसे जुड़ते चले गए। अब जो एक प्रचारवादी धर्म है जो एक किसी किताब के आसपास घूम रहा है जो कि व्यक्ति के आसपास घूम रहा है। ऐसे धर्म के साथ जुड़ने में व्यक्ति को जो व्यक्ति जुड़ता है उसको फायदे दिखते हैं।

जब राजा धर्म को अपना लेता है तो जो राजा के साथ जो लोग जुड़े होते हैं वो अपनाते हैं और जो लोग उससे जुड़ते हैं उसे उच्च पद मिल जाते हैं। इन बातों से कनवर्जन का इतिहास भरा पड़ा है। ये एक बड़ी बात रही। दूसरी जो सनातनी है वो उदार रहा। वो सबको एक समान मानता रहा। सनातनी व्यक्ति ने कभी किसी की बुराई नहीं की और अगर किसी ने सनातन की बुराई भी की तो उसने इस बात को इस रूप में लिया कि ठीक है ये उसका अपना विचार है। हम तो अच्छे हैं। होता यह है कि समाज में नकारात्मकता बड़ी तेजी से फैलती है जैसे पानी में अगर आप एक बूंद तेल डाल दो वो पूरी तरह से फैल जाएगा। इसी तरह से मान लीजिए कि आप कहीं किसी मोहल्ले में रहते हैं वहां लड़ाई हो जाती है और किसी ने किसी का सिर फोड़ दिया तो मोहल्ले में हर किसी को पता चल जाएगा कि किसने किसका सिर फोड़ा लेकिन शायद वहां दो-चार लोगों को ही पता होगा सिर फूटने के बाद कौन उसे उठाकर अस्पताल ले गया।

इसी तरह से सड़क पर कोई दुर्घटना हो जाती है लोगों की रूचि ये जानने में ज्यादा होती है कि कौन सी गाड़ी ने टक्कर मारी क्यों मारी किसे मारी। लेकिन इस दुर्घटना में जो घायल हुए या जिनकी मौत हुई उन्हें कौन अस्पताल ले गया किसने ने उनकी मदद की ये दो-चार लोग ही जानने की इच्छा रखते हैं। जो निंदा है जो बुराई है। जो सम्प्रदाय दूसरे की निंदा करता है दूसरे की बुराई करता है तो सहज रूप में व्यक्ति उसपर भरोसा कर लेता है। दूसरी बात होती है अपने व्यक्तिगत जीवन में। हर जगह व्यक्ति असंतुष्ट रहता है। अपनी असफलता को वह किसी न किसी के ऊपर डालना चाहता है। समाज में आपने देखा होगा कि लोग अपने मां-बाप तक से असंतुष्ट होते हैं। मां-बाप से भी लड़ाई करते हैं जबकि हम सब जानते हैं कि कोई किसी दूसरे के लिए अपने सुखों की कुर्बानी दे सकता है, बलिदान दे सकता है तो मां-बाप ही हैं जो अपनी संतान के लिए सुखों का बलिदान देते हैं। उसके बावजूद भी लोग उसमें कमियां देखते हैं। असफल होने पर उन्हें लगता है कि उनके मां-बाप ने उनके परिजनों ने उनके लिए कुछ नहीं किया।

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09 December 2022, 05:00 PM IST

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