ॐलोक आश्रम: समाज का क्या आदर्श होना चाहिए? भाग 2

जो भी व्यक्ति, जो भी पंथ किसी एक को प्रेम करना और दूसरे को नफरत करना सीखाता है वहां केवल नफरत का ही राज्य बचता है। केवल नफरत करने वाले लोग ही बचते हैं।

Sagar Dwivedi
Sagar Dwivedi

जो भी व्यक्ति, जो भी पंथ किसी एक को प्रेम करना और दूसरे को नफरत करना सीखाता है वहां केवल नफरत का ही राज्य बचता है। केवल नफरत करने वाले लोग ही बचते हैं। हम अगर अच्छा समाज चाहते हैं अच्छा देश चाहते हैं हम अच्छे मानव चाहते हैं तो हम किस तरह से विचार करें। किस तरह का जीवन जीएं। समाज का क्या आदर्श हो। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जितने भी भूत हैं, प्रकृति में जो कुछ भी है और जो कुछ भी हो चुका है उनके प्रति किसी के प्रति भी कोई द्वेष नहीं रखे। केवल मनुष्यों के प्रति ही द्वेष न रखे बल्कि पशुओं, नदियों, पहाड़ों, वृक्षों किसी के भी प्रति द्वेष न रखे। कोई उसका दुश्मन न हो। ऐसा नहीं कि केवल द्वेष न रखे, नकारात्मक प्रवृति भी न रखे। द्वेष न करना भी एक नकारात्मक प्रवृत्ति हो गई।

मैं किसी से द्वेष नहीं करता बल्कि मैं सबसे मित्रता रखता हूं और सबके प्रति करुणा रखता हूं। जो भी दुखी है मैं उसके दुख से दुखी हो जाऊं। एक बेजुबान जानवर है कोई उसको मार रहा है तो मैं उसके दुख से दुखी हो जाऊं। एक बेजुबान पक्षी है कोई उसको मार रहा है तो मैं उसके दुख से दुखी हो जाऊं। किसी को भी दुख मिल रहा है मैं उससे दुखी हो जाऊं। मेरे अंदर सहानुभूति हो, करुणा हो। मैत्री हो। अर्थात् मैं उसके दुख के निवारण करने का यथाशक्ति प्रयास करूं। केवल ममत्व नहीं हो। यह मेरा है इसलिए मुझे प्यारा है। यह मेरा नहीं है इसके साथ जो बुरा होना हो हो जाए। ऐसा नहीं है। मैत्री और करूणा जो हैं वह सबके साथ हो। ममत्व का भाव न हो कि यह मेरा बेटा है इसलिए मैं इसका पक्षपात करूंगा, इसे मैं हर चीज दूंगा। यह मेरा बेटा नहीं है कि इसलिए मैं इसके साथ बुरा कर दूंगा। 

यह मेरे परिवार का है, यह मेरे कुटुंब का है, यह मेरे धर्म का है, यह मेरे प्रदेश का है, यह मेरी भाषा बोलना वाला है। इस आधार पर किसी के साथ पक्षपात करना ये आपके लिए उत्तम नहीं है। ये आध्यात्मिक कल्याण के लिए के न उत्तम है और न ही मानवता के लिए उत्तम है। अहंकार से व्यक्ति को रहित होना चाहिए क्योंकि जब भी आप द्वेष नहीं करते तो आपको अहंकार आ जाता है कि मैं कितना महान हूं। मैं किसी के साथ द्वेष नहीं रखता, मैं सबके साथ मित्रता रखता हूं। मेरे अंदर कितनी करूणा है मेरे अंदर कितनी दया है। मैं कितना महान हूं। ये भाव इंसानों के अंदर आ जाता है। इसलिए व्यक्ति अहंकार से युक्त हो जाता है। जब व्यक्ति करुणा भी रखता है, दया भी रखता है, द्वेष भी नहीं रखता लेकिन अगर ऐसा व्यक्ति अहंकार से युक्त हो गया तो उसके ये सारे गुण बेकार हो जाते हैं।

वह अहंकार उसे फिर अधोगति के ऊपर ले जाता है। धीरे-धीरे उसके अंदर ममत्व फिर आने लगता है। फिर वो द्वेष रखने लगेगा, फिर वो दूसरों का दिल दुखाने लगेगा और उसके अंदर बुराइयां आ जाएंगी। इसलिए निरअहंकारी रहना बहुत ही महत्वपूर्ण है। जीवन में आप अगर किसी को भी उच्च अवस्था में देखोगे, आगे की ओर बढ़ते देखोगे तो वह अपने अहंकार को छोटा करता जाता है और अहंकार को समाप्त कर देना ही प्रभु के शरण में जाने का रास्ता है। अहंकार किसी भी रूप में श्रेयस्कर नहीं है। अगर इस दृष्टि का मानवता पालन कर ले। सारे पंथ इस बात को मानने लगें तो मानव समाज अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच सकता है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि तुम्हें दुख मिले या सुख मिले। उसे समत्व भाव से ग्रहण करो। न सुख में ज्यादा सुखी होकर पागल हो जाओ और न दुख में इतने विह्वल हो जाओ कि डिप्रेशन में चले जाओ। अवसाद से घिर जाओ। अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि किसी ने तुम्हारे साथ बुरा किया है तो उसे क्षमा करो। क्षमत्व का भाव रखो। यह संदेश पूरी मानवता के लिए है।

 

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ॐलोक आश्रम: समाज का क्या आदर्श होना चाहिए? भाग 1

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07 November 2022, 06:50 PM IST

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