ॐलोक आश्रम: जब बाल काण्ड में गुरु विश्वामित्र जी श्री राम जी को धनुष तोड़ने की आज्ञा देते है
प्रसंग रामचरित मानस के बाल काण्ड में गुरु विश्वामित्र जी श्री राम जी धनुष तोड़ने की आज्ञा देते है ॥ क्या विहंगम द्र्श्य है , कोमल ह्रदय सीता जी की माता सुनयना ये देखकर सिहीर उठती हैं उनका निर्मल मन कह उठता है ये राजा जनक के दरबार में क्या हो रहा है
रावन बान छुआ नहिं चापा।
हारे सकल भूप करि दापा॥
सो धनु राजकुअँर कर देहीं।
बाल मराल कि मंदर लेहीं ॥
प्रसंग रामचरित मानस के बाल काण्ड में गुरु विश्वामित्र जी श्री राम जी धनुष तोड़ने की आज्ञा देते है ॥ क्या विहंगम द्र्श्य है , कोमल ह्रदय सीता जी की माता सुनयना ये देखकर सिहीर उठती हैं उनका निर्मल मन कह उठता है ये राजा जनक के दरबार में क्या हो रहा है महाराज एक सुकुमार बालक के हाथों में भारी भयंकर धनुष उठाने की अनुमति क्यूँ दे रहे है । उनका कोमल हृदय श्रीराम जी के किसी अनिष्ट के डर से काँप रहा है ।
रावण और बाणासुर ने जिस धनुष को छुआ तक नहीं और सब राजा घमंड करके हार गए, वही धनुष इस सुकुमार राजकुमार के हाथ में दे रहे हैं। हंस के बच्चे भी कहीं मंदराचल पहाड़ उठा सकते हैं?॥
माता सुनयना का वात्सल्य श्री राम जी पर उमड़ रहा है वो श्री राम जी को अबोध बालक जान राजा जनक की तरफ़ विस्मय से निहार रही है मानो कह रही हो , हे राजन क्यूँ इतना विकट राजहठ किए हो , जिसमें अबोध बालकों का भी शक्ति परीक्षण लेना पड़े ।
उधर माता सुनयना की सखियाँ उन्हें प्रभु श्री राम की शक्ति का आभास कराने के उद्देश्य से कहती हैं
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा॥
रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा ॥
कहाँ घड़े से उत्पन्न होने वाले (छोटे से) मुनि अगस्त्य और कहाँ समुद्र? किन्तु उन्होंने उसे सोख लिया, जिसका सुयश सारे संसार में छाया हुआ है। सूर्यमंडल देखने में छोटा लगता है,
पर उसके उदय होते ही तीनों लोकों का अंधकार भाग जाता है॥ पर माँ तो माँ होती हैं , माँ के वात्सल्य को संसार का कोई उपकरण नहीं नाप सकता , उनके सजल नयन श्री राम जी को कातर भाव से निहार रहे है । शांत चित खड़े श्री राम जी सबके मन की जानते है पर राम जी की माया को कौन जान पाया है । उनकी लीला अपरंपार है
चिंतक 🙏
ॐलोक आश्रम