ॐलोक आश्रम: क्या करें कि हमें क्रोध न आए? भाग-1
भगवान कृष्ण ने जीवन के हर पहलू हर पक्ष को गीता में छुआ है और बताया है कि किस तरह हम अपनी वासनाओं पर जीने वाले अपने पशुवत जीवन से अपनी बुद्धि के स्तर पर बुद्धि के ऊपर उठकर आत्मा के स्तर पर किस तरह का जीवन व्यतीत कर सकते हैं
भगवान कृष्ण ने जीवन के हर पहलू हर पक्ष को गीता में छुआ है और बताया है कि किस तरह हम अपनी वासनाओं पर जीने वाले अपने पशुवत जीवन से अपनी बुद्धि के स्तर पर बुद्धि के ऊपर उठकर आत्मा के स्तर पर किस तरह का जीवन व्यतीत कर सकते हैं। हम देखते हैं कि व्यक्ति विषयों के पीछे भागते रहता है। वासनाएं विषय को सामने ला देती हैं। कोई राजनीति में आगे बढ़ना चाहता है तो कोई पद या राज्य प्राप्त करना चाहता है कोई धन प्राप्त करना चाहता है। कोई अच्छी पढ़ाई-लिखाई करना चाहता है। ब्यूरोक्रेशी में जाना चाहता है तो कोई पुलिस सेवा में तो कोई सेना में जाना चाहता है। लोगों की इच्छाएं अनेकानेक होती हैं और वो कभी खत्म नहीं होती।
यूं कहें कि इच्छा खत्म होने के बजाए बढ़ती ही जाती हैं। इच्छाएं वासनाओं का रूप लेकर खड़ी हो जाती हैं और इच्छाओं की पूर्ति में बाधा पहुंचने से हमें क्रोध आता है। हम गुस्सा हो जाते हैं। व्यक्ति में एक किस्म की झल्लाहट पैदा होती है। जब हमें क्रोध आता है तो हम सही गलत का निर्णय नहीं ले पाते हैं। हम ज्यादा आशाएं पाल लेते हैं। वो आशाएं पूर्ण नहीं होती है तो हमें क्रोध आता है। अब सवाल ये है कि हम किस तरह कार्य करें कि क्रोध न आए? हम ये जान लें कि क्रोध के न तो हम उत्पत्तिकर्ता हैं और न ही विनाशकर्ता हैं। यानी कि हम क्रोध को न तो पैदा करते हैं और न ही उसे खत्म करते हैं।
हम केवल क्रोध के भोक्ता हैं। क्रोध हमारे ऊपर आ जाता है और हम उसका भोग करते हैं। हमारी बुद्धि के पीछे क्रोध एक आवरण के रूप में है। आप क्रोध की एक्टिंग तो कर सकते हैं लेकिन क्रोध नहीं कर सकते। क्रोध आरपको आता है आप क्रोध को लाते नहीं हो। क्रोध को रोकने से और तेज क्रोध आता है। वासनाओं पर नियंत्रण से धीरे-धीरे क्रोध कम होगा। नदी हमारी वासनाएं हैं हमारे आवेग हैं। शास्त्रों और उपनिषदों में कहा गया है कि प्राणायाम से मन पर नियंत्रण होता है। शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। जो भी हम खाते-पीते हैं उसे ऊर्जा उत्पन्न होती है। जब हमारे अंदर तनाव आ जाता है, हम वासनाओं से घिर जाते हैं तो हमारे शरीर का टाक्सिंस निकलना बंद हो जाता है।
जिसकी वजह से कई बीमारियां हो जाती है। परिणामों से चिपकना क्रोध का कारण बनता है। क्रोध से अवसाद की स्थिति उत्पन्न होता है। अपने जीवन को बुद्धि और विवेक के आधार पर चलाना है न कि वासनाओं के आधार पर। क्रोध लक्षण है ये बीमारी नहीं है। अगर हमारे लिए सबसे बड़ा मूल्य पैसा रहेगा तो क्रोध आएगा ही आएगा। पैसे और सफलता के पीछे भागेंगे तो क्रोध अवश्यंभावी है। हम अपने विचारों को दूसरे पर न थोपें। हमें अपने आप को समझना होगा। अपना आकलन जरूरी है। हम अपना जीवन जीएंगे और दूसरों को उनका जीवन जीने देंगे और ऐसी अवस्था में हम क्रोध पर विजय प्राप्त कर लेंगे।