ॐलोक आश्रम: भक्ति मार्ग को समझना क्यों जरूरी है? भाग-1
हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए जीवन जीने के लिए भगवान ने एक रास्ता दिखाया है। वह रास्ता है भक्ति मार्ग। सबसे आसान और सबसे सरल जीवन को जीने का ढंग है। भगवद गीता जीवन की किताब है। जीवन को किस तरह जीना है इसकी किताब है इसकी पुस्तक है।
हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए जीवन जीने के लिए भगवान ने एक रास्ता दिखाया है। वह रास्ता है भक्ति मार्ग। सबसे आसान और सबसे सरल जीवन को जीने का ढंग है। भगवद गीता जीवन की किताब है। जीवन को किस तरह जीना है इसकी किताब है इसकी पुस्तक है। भगवद गीता अपने आप में एक संपूर्ण ग्रंथ है। इस संसार को जीते हुए ईश्वर की किस तरह से प्राप्ति हो जाए वह भगवद गीता बताती है। बहुत सारे ग्रंथ हैं वो बताते हैं संन्यास लेना है, जंगलों में जाना है, तपस्या करनी है। बहुत सारे पंथ हैं जिनका उद्देश्य सिर्फ स्वर्ग की प्राप्ति है। उनका मानना है कि हमारे बताए अनुसार काम करो और आपको स्वर्ग मिलेगा। स्वर्ग सुखों का अनुभव है जो व्यक्ति इस संसार में करता है। भगवद गीता में प्रभु बताते हैं कि सुख और दुख ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
इनसे परे एक ऐसी अवस्था है जो परम आनंद की अवस्था है। जो सुख और दुख दोनों से परे है। ये आत्मा की स्वाभाविक अवस्था है और व्यक्ति इस अवस्था तक पहुंच सकता है। इस अवस्था तक बुद्ध पहुंचे थे इस अवस्था तक महावीर पहुंचे थे। इस अवस्था में पहुंचने वाले कबीर थे, इस अवस्था में पहुंचने वालों में नानक थे। इस अवस्था में पहुंचने वालों में शंकराचार्य थे। इस अवस्था तक पहुंचने वाले कई लोग हैं। भगवान कृष्ण खुद इस अवस्था में पहुंचे हैं। वो लोगों को बता रहे हैं कि मार्ग अनेक हैं लक्ष्य है इस अवस्था तक पहुंचना। इस अवस्था में पहुंचने के लिए जो भक्ति मार्ग है वह सबके लिए बड़ा सरल, सहज और बिल्कुल प्रकृति के अनुकूल मार्ग है। चाहे बुद्धिमान हो चाहे कम बुद्धि वाला हो, व्यक्ति उस अवस्था तक पहुंच सकता है। प्रभु के बताए हुए रास्ते से।
ऐसा व्यक्ति जो न किसी से हर्ष करता है न किसी से द्वेष करता है। न शोक करता है न किसी की आकांक्षा करता है। शुभ और अशुभ जिसने दोनों का परित्याग कर दिया है। जो भक्ति मान्य है जो भक्ति पूर्वक है। जिसके दिल में भक्ति ही भक्ति है ऐसा व्यक्ति मुझे प्रिय है। जो खुश नहीं होता। जो जीवन में वस्तुओं के पीछे दौड़ता रहे और वो मिल गई तो खुश हो जाए और आगे वस्तुओं के पीछे दौड़ने लगे। ऐसा व्यक्ति जो जीवन में वस्तुओं के पीछे नहीं दौड़ता। अपना स्वाभाविक जीवन जीता है। जब आप स्वाभाविक जीवन जीओगे तो सुख आपके पीछे आएगा। जब आप सुखों के पीछे भागोगे तो सुख उस तुंबी की तरह हो जाएगी जैसे नदी में एक सूखी लौकी पड़ी हो। आप जितना तेज तैरोगे तो उनसे उत्पन्न लहरों से वो आपसे उतनी ही दूर होती चली जाएगी।
इसी तरह आप संसार में विषयों के पीछे भागते जाओगे तो विषय आगे भागते जाएंगे और सुख आपके पीछे भागते जाएंगे। सुख दूर जाते जाएंगे और आप उसके पीछे दौड़ते जाओगे। लेकिन अगर आप प्रभु की ओर जाते जाओगे, आप अपने स्वभाव की ओर जाते जाओगे तो सुख आपके पीछे आते जाएंगे। भगवान कह रहे हैं कि जो सुखों के लिए विषयों के पीछे नहीं भाग रहा है। जो द्वेष भी नहीं कर रहा है। अगर सुखों के पीछे भागोगे तो द्वेष होना अवश्यंभावी है। अगर आप लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सके तो आपको शोक होगा दुख होगा। सुखों के पीछे भाग रहे थे अगर नहीं मिला तो शोक हो जाएगा। आपकी आकांक्षा बनी रहेगी कि इस बार नहीं मिला अगली बार मिलेगा। फिर भागोगे। जो इन चारों चीजों से परे हो गया, जिसे शुभ और अशुभ दोनों का परित्याग कर दिया, जो जीवन को स्वभाव में जी रहा है। अपने आप को जी रहा है जो जीवन को जी रहा है। ऐसा ही व्यक्ति भगवान को प्रिय है। जीवन को जीना बहुत आवश्यक है।
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