ॐलोक आश्रम: हमारे जीवन के लक्ष्य क्या हैं?

जो कुछ भी है इस संसार में वो सब ईश्वर में है ईश्वर से बाहर कुछ भी नहीं है। अगर ईश्वर पूर्ण है तो ईश्वर से बाहर कुछ हो भी नहीं सकता।

Janbhawana Times
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जो कुछ भी है इस संसार में वो सब ईश्वर में है ईश्वर से बाहर कुछ भी नहीं है। अगर ईश्वर पूर्ण है तो ईश्वर से बाहर कुछ हो भी नहीं सकता। अगर ईश्वर से बाहर कुछ हो जाए तो वो पूर्ण नहीं रहेगा उसके अंदर अपूर्णता आ जाएगी। वह सर्वव्यापी नहीं होगा अगर ईश्वर सर्वव्यापी है तो इसका मतलब है कि ईश्वर से बाहर कुछ भी नहीं है। शैतान कहीं है ही नहीं अगर शैतान कहीं है इसका मतलब कि ईश्वर सीमित है। शैतान ने ईश्वर को सीमित कर दिया है। शैतान ने ईश्वर की शक्ति को सीमित कर दिया है। 

ईशावस्या उपनिषद कहती है कि सबकुछ ईश्वर में ही है। ये हमारी बुद्धि है कि हम उसमें क्या देखते हैं। शैतान हमारे दिमाग में है हमारी सोच में है। ईश्वर में कुछ नहीं है, ईश्वर के अलावा है ही नहीं कुछ। जो भी है चाहे वो चेतन है या अचेतन जो कुछ भी है वो ईश्वर है। हमें जीवन जीना है। हमें जीवन को उपभोग करना है। प्रकृति को उपभोग करना है, किस तरह उपभोग करना है त्यागपूर्वक उपभोग करना है। 

हम जीवन को उपभोग करें जितने भी प्रकृति में संसाधन हैं हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त हैं लेकिन हमारी लालच की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अगर हम अंधाधुंध उपभोग करते जाएंगे तो एक समय ऐसा आएगा कि यही प्रकृति के संसाधन हमारे लिए कम पड़ जाएंगे। इसलिए हमें त्यागपूर्वक उपभोग करना है। किसका त्याग करना है। फल की इच्छा का त्याग करना है। हमें चीजों का उपभोग करना है लेकिन अगर हम फल की इच्छा रखेंगे और फल की इच्छा रखकर चीजों का संग्रह चालू करने लगेंगे तो हम प्रकृति का दोहन करने लगेंगे और जब प्रकृति का दोहन होगा हमारा लालच बढ़ेगा तो क्या सही और क्या गलत है इन चीजों से हम परे चले जाएंगे और सही और गलत का परवाह न करते हुए हम अंधाधुंध दोहन करने लगेंगे। 

अंधाधुंध दोहन का परिणाम होगा कि प्रकृति में एक सामंजस्य बिगड़ जाएगा और जो हमारे लिए श्रेयस्कर है वो न हो सकेगा। इसलिए लालच मत करो, गिद्ध की तरह मत बनो, जितना जरूरी है वही लो प्रकृति से। ये धन किसी का नहीं है क्योंकि सबकुछ प्रभु है। इस प्रकृति से उतना ही लिया जाना चाहिए जितना आपके लिए आवश्यक है और जितना कम से कम इस प्रकृति में अपना हस्तक्षेप करो वही अच्छा है। इस प्रकृति के पुत्र बनकर जीओ क्योंकि प्रकृति ही ईश्वर है और आप भी इस प्रकृति का ही अंश हो। प्रकृति के साथ मिलकर जीना है। तभी हम जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं और अपने जीवन में पूर्णता ला सकते हैं। अगर हम प्रकृति के विरुद्ध जाते रहेंगे और अपने लालच को बढ़ाते जाएंगे तो धीरे-धीरे वो समस्याएं आएंगी।

किस तरह हमारे ऋषियों का चिंतन व्यापक था। जो वैज्ञानिक सिद्धांत हमारे विज्ञान ने 19वीं और 20वीं शताब्दी में खोजे हैं हमारे ऋषियों ने बहुत पहले दे दी थी। हमारे ऋषि कहते हैं कि पूर्ण से पूर्ण घटाने पर पूर्ण ही बचता है। पूर्ण की अवशिष्ट रहता है। ये बहुत बड़ा गणितीय सिद्धांत है ये हमारे ऋषियों ने दिया था वेद के समय में। वैदिक ऋषियों ने दिया था ये वो ज्ञान है। ईश्वर पूर्ण है और पूर्ण में अगर कुछ जोड़ो तो वो पूर्ण ही रहेगा कुछ बढ़ेगा नहीं और पूर्ण से पूर्ण घटाओगे तो पूर्ण ही रहेगा, ये दिखाता है कि हमारे वैदिक ऋषि कितना चिंतन करते थे और किस तरह का गणितीय सिद्धांत दिया था। 

पाई का मान से लेकर ब्रह्मांड की संरचना, खगोल शास्त्र कई ऐसे विषय हैं जिनपर वैदिक ऋषियों ने बहुत काम किए हैं और आज भी वेदों पर रिसर्च किए जाने की आवश्यकता है दुर्भाग्य से भारत में रिसर्च नहीं हो पा रहा है विदेशों में रिसर्च हो रहा है। इस बात कोई बॉडी बनाकर रिसर्च किए जाने की आवश्यकता है कि जो हमारा पुराना ज्ञान है उसका हम उपयोग कर सकें।

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24 June 2022, 02:43 PM IST

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