ॐलोक आश्रम: इस संसार की वास्तविकता क्या है?

इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि हम हैं क्या? हम क्या ये शरीर हैं, हम आत्मा हैं, हम हैं क्या? भगवान कृष्ण गीता में बताते हैं कि आत्मा-अजर अमर है।

Janbhawana Times
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इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि हम हैं क्या? हम क्या ये शरीर हैं, हम आत्मा हैं, हम हैं क्या? भगवान कृष्ण गीता में बताते हैं कि आत्मा-अजर अमर है। आत्मा न पैदा होता और न कभी मरता है। जो शरीर है वो नष्ट होता है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति है, मनुष्य है वो आत्मा है, जीव है, जो अनंत काल से जन्म ले रहा है। ये सतत श्रृंखला है। दो सिद्धांत हैं, एक पुनर्जन्म का सिद्धांत सतत जीवन की श्रृंखला, दूसरा ईश्वर ने हर शरीर के लिए आत्मा बनाई। इन दोनों में कौन सा सिद्धांत सही है और तार्किक है। 

अगर हम मान लें कि बाइबल या कुरान का सिद्धांत एक सही सिद्धांत है तो प्रश्न ये उठता है कि अल्लाह क्यों किसी आत्मा को सांप में भेज देता है बिच्छू में भेज देता है छोटे-छोटे जीव बना देता है। किसी आत्मा को किसी के लिए वो आत्मा को मनुष्य बना देता है। किसी को क्यों वो गरीब के घर में पैदा कर देता है किसी को अमीर पैदा कर देता है। किसी को उसने ऐसा पैदा कर दिया कि पैदा होते ही वो सारी सुख सुविधाओं से युक्त है सारी चीजें उसके पास हैं दूसरा वो ऐसे घर में पैदा हो गया जहां उसके पास खाने को नहीं है मूलभूत संकट उपलब्ध है। 

किसी को अल्लाह ने क्यों अंधा पैदा कर दिया, लूला-लंकड़ा पैदा कर दिया, बीमार पैदा कर दिया। किसी को क्यों सारी शारीरिक शक्तियों से युक्त बना दिया। इन सबका जवाब क्रिश्चियनटी और इस्लाम के पास नहीं है। वो कहते हैं कि ईश्वर की यही मर्जी थी यही किया। तार्किक उत्तर नहीं है। अगर यही प्रश्न आप हिन्दू धर्म में कहोगे, सनातन धर्म में कहोगे, भगवान श्रीकृष्ण से पूछोगे तो ये कहेंगे कि आपने जैसे कर्म किए उसके हिसाब से आपको जीवन मिला है। 

आपने अच्छे कर्म किए तो आपको अच्छी जगह जीवन मिला आपने बुरे कर्म किए तो आपको बुरी जगह जीवन मिला। जीवन में आपके अच्छी और बुरी दोनों घटनाएं घटती जाती है जो आपके हाथ में नहीं होती जिनका आपके कर्मों से कोई संबंध नहीं होता। वो आपके पहले किए हुए कर्म हैं जो कि आपको फल दे रहे हैं। ये एक तार्किक सिद्धांत है जो तार्किक सिद्धांत हमें दिखाई देता है जिससे ईश्वर की व्याख्या होती है ईश्वर न्यायप्रिय दिखाई देता है।

अगर हम पहले सिद्धांत को मानें तो ईश्वर हमें न्यायप्रिय दिखाई नहीं देता लेकिन यह सिद्धांत ईश्वर को न्यायप्रिय बतलाता है। ईश्वर की जैसी संकल्पना है उस तरह का बतलाता है। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि ऐसा कोई समय नहीं था जब आप नहीं थे, हम नहीं थे, हमारा रूप बदल रहा है हम अलग-अलग समय में अलग-अलग नामों से पैदा हो रहे हैं और यह शरीर ऐसा है कि आज है और कल नहीं है। इसी शरीर में कभी हम जवान थे कभी बच्चे थे कभी बूढ़े हैं। शरीर बदलता रहा है और ये शरीर छोड़कर आत्मा दूसरे शरीर को ग्रहण कर लेती है तो इस शरीर में इतना मोह क्यों रख रहे हो। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये जो भगवदगीता के सिद्धांत है इस सिद्धांत की इतनी पहुंच थी कि पूरा यूनान इस सिद्धांत को मानता था। सुकरात, अरस्तु और प्लेटो इसी सिद्धांत को मानते थे। इंडोनेशिया तक ये फैला था। ये एक दार्शनिक सिद्धांत था जिसे पूरे विश्व ने माना और इसपर बड़े वैज्ञानिक रिसर्च भी हुए हैं। कई किताबें भी लिखी गईं। भगवदगीता में ये लिखा गया है कि इस पृथ्वी पर एक निश्चित समय के लिए हम आए हुए हैं और जो भी कार्य हम करेंगे वह कार्य हमारे आगामी जीवन को प्रभावित करेगा और पिछले जीवन से वो कार्य प्रभावित भी होता है। इसलिए जरूरी है कि हम काम को ठीक से करें, काम को सोच-समझकर करें। जो हम पिछले जन्म में थे उसपर हमरा कोई कंट्रोल नहीं है आगे क्या होंगे उसपर हमारा कंट्रोल नहीं है इसलिए इसपर हम दुख न मनाएं।

तुम क्या हो, हम क्या हैं। हम इस शरीर को चलाने वाले हैं। हमारा शरीर बदलता रहता है लेकिन इसका नाम एक ही रहता है। जब शरीर बूढ़ा होने के बाद नष्ट हो जाता है तो वो जो एक तत्व शरीरी था वो बच जाता है और वो फिर किसी दूसरे रूप में दूसरे नाम से प्रकट हो जाता है तो ऐसी चीजों के लिए क्यों विलाप करना जो कि आप नष्ट कर ही नहीं रहे हो। हर व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ इच्छाएं रखता है। इच्छाएं पूरी हो जाती हैं तो हम खुश हो जाते हैं इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तो हम दुखी हो जाते हैं। 

इसी तरह से जो हमारी इन्द्रियों को सुख देने वाले होते हैं उनसे हमें अच्छा लगता है जो हमारी इन्द्रियों को दुख देने वाले होते हैं उनसे हमें खराब लगता है। जबतक जीवन है तबतक हमारे सामने सुख भी आएगा और दुख भी आएगा और न सुख हमेशा रहने वाला है और न दुख हमेशा रहने वाला है। सुख भी अनित्य है और दुख भी अनित्य है इसलिए इनको सहन करो मजबूत बनो। दुख अगर आया है यह भी चला जाएगा, सुख अगर आया है तो यह भी चला जाएगा। न सुख में जरूरत से ज्यादा खुश हो जाओ और न दुख आए तो आप टूट ही जाओ ऐसा भी आपको नहीं करना है। 

आपको जीवन को सामंजस्य रूप में जीना है। ये हमारे ऊपर है कि हम जीवन को किस तरह से लेते हैं। अगर जीवन है तो आपके अंदर कुछ अच्छाईयां भी होंगी कुछ बुराईयां भी होंगी, कुछ आपके लिए संभावनाएं भी आएंगी कुछ आपके लिए समस्याएं भी आएंगी यह जीवन का अंग है। इनको सहन करो इनमें समत्व भाव रखो और जीवन को आगे लेकर जाओ।

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23 June 2022, 03:55 PM IST

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