ॐलोक आश्रम: कैसा भक्त भगवान को प्रिय है?

भक्ति योग भगवद गीता का एक महत्वपूर्ण तत्व है। साधारण भाषा में हम जिसे भक्त समझते हैं। भगवद गीता की भाषा में भक्त उससे अलग है। भक्त के अंदर स्थितप्रज्ञ के, ज्ञानी के सारे लक्षण मौजूद हैं।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

ॐलोक आश्रम: भक्ति योग भगवद गीता का एक महत्वपूर्ण तत्व है। साधारण भाषा में हम जिसे भक्त समझते हैं। भगवद गीता की भाषा में भक्त उससे अलग है। भक्त के अंदर स्थितप्रज्ञ के, ज्ञानी के सारे लक्षण मौजूद हैं। उसके अंदर संपूर्ण समर्पण है। जो भगवान को भक्त प्रिय है जिसे भगवान भक्त कह रहे हैं वह भक्त होना अपने आप में सौभाग्य की बात है। हम प्रभु से जब भी कुछ मांगें तो हम प्रभु की भक्ति मांगें और भक्त होना मांगें। कैसा भक्त भगवान को प्रिय है। भगवान कह रहे हैं। जो शत्रु और मित्र दोनों में समान भाव रखने वाला हो। मान और अपमान दोनों में समत्व रखने वाला हो। जो ठंडी और गर्मी में, दुख और सुख में दोनों में समान भाव रखे। किसी पर भी आसक्त न हो। जो निंदा और स्तुति में समान भाव रखे चाहे निंदा करे चाहे स्तुति। मौन रहे, जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाए। जहां रह रहा है वहीं संतुष्ट है। जिसकी मति प्रभु में स्थिर हो गई हो। ऐसा भक्त भगवान को प्रिय है। ऐसा व्यक्ति भगवान को प्रिय है।

अगर आप इन गुणों के पीछे भागेंगे तो जीवन बड़ा मुश्किल हो जाएगा कि इस तरह कैसे बना जाए। जिसकी मति, जिसकी बुद्धि, जिसका मन प्रभु के चरणों में स्थिर हो गया है। उसके अंदर ये सारे गुण अपने आप आ जाएंगे। जो मित्र और शत्रु में सम हो। यह वही व्यक्ति हो सकता है जिसका कोई शत्रु ही न हो। शत्रु आपके तबतक रहेंगे जबतक आपकी कामना रहेगी, जबतक आपकी इच्छाएं रहेंगी। जब आप निस्पृह हो गए कोई इच्छा ही नहीं है आपकी। प्रभु की कृपा के अलावा आपकी कोई इच्छा नहीं है तो दुनिया में आपका कोई शत्रु नहीं है। अगर प्रभु कृपा के अलावा आपकी कोई इच्छा नहीं है तो आपका कोई मित्र भी नहीं है। न तो आप प्रभु की कृपा के अलावा किसी से सम्मानित महसूस करते हो और न किसी से अपमानित महसूस करते हो। ऐसा भक्त, ऐसा व्यक्ति जिसका चित्त प्रभु के चरणों में स्थिर हो गया हो, जो प्रभु की कृपा के अलावा कुछ चाहता ही न हो।

जो प्रभु के वंदन में ही खुश हो, प्रभु का ध्यान करके ही खुश हो, अपने अंदर ही वो भगवान का स्मरण करे, चौबीसो घंटे भगवान में ही मग्न रहे। ऐसे व्यक्ति न ठंडी न गर्मी, न सुख, न दुख कोई व्याधियां नहीं सतातीं। उसको पता ही नहीं चलता कि बाहर क्या हो रहा है क्योंकि वह प्रकृति के साथ एकरूप हो चुका है समरूप हो चुका है। ईश्वर के साथ जुड़ चुका है। ऐसा व्यक्ति सच्चा भक्त है। उस व्यक्ति की कोई स्तुति करे या कोई निंदा करे उस व्यक्ति के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। वह मौन है उसमें मुनियों का भाव आ गया है। मौन का अर्थ है जिसकी इन्द्रियां विषयों से अलग हो गई हों। जैसे अगर आप कुछ सोचते रहो तो आपके कान सुनते नहीं हैं। आप सोच रहे हो कोई आपको आवाज दे रहा है लेकिन आप सुनोगे नहीं। आपका कान उस समय मौन हो गया। आप कुछ सोच रहे हो आपकी आंखे देखते हुए भी नहीं देखेगी। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन आपके आगे से चला गया क्योंकि आपकी आंखें मौन हो चुकी हैं। आपकी वाणी मौन हो जाती है।

आपको होश नहीं होता कि आप कहा बैठे हुए हो। यही बात जब श्रीचरणों की आ जाए, प्रभु का आ जाए। अगर प्रभु में इतने आप तल्लीन हो गए हो कि आपकी इन्द्रियां मौन हो गई हैं। आंखों को पता नहीं कि वो क्या देख रही हैं। कानों को पता नहीं कि वो क्या सुन रही हैं। त्वचा को पता नहीं किया स्पर्श हो रहा है। आपकी इन्द्रियां विषयों से हट चुकी हैं। मौन हो चुकी हैं ऐसी अवस्था आ चुकी है। तब आप प्रभु में स्थित हो गए हो। आपकी मति प्रभु में स्थिर हो गई है। आपका कहीं घर नहीं है। जहां हो वहीं हो। हर जगह प्रभु को ही देखते हो। भगवान कहते हैं कि जो मुझे हर जगह देखता है और जो कुछ भी उसे दिखाई दे उसमें मैं ही दिखाई देता हूं। ऐसा व्यक्ति मुझे प्रिय है। ऐसा व्यक्ति ही मेरी प्राप्ति का अधिकारी है।

भगवान कह रहे हैं कि जो स्थिर मति है। जिसकी मति जिसकी बुद्धि प्रभु के अंदर स्थिर हो गई है वही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है वही ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। या हम यूं कहें कि हमारी बुद्धि तभी प्रभु में स्थिर होगी, हम उस अवस्था में तभी पहुंचेंगे जब प्रभु की कृपा हमारे ऊपर होगी जब ईश्वर चाहेगा। इसलिए अगर हम जीवन में कुछ भी मांगे प्रभु से तो हमें प्रभु की भक्ति मांगनी चाहिए। अगर हमें प्रभु की भक्ति मिल गई तो बाकी चीजें अपने आप चलती चली आएंगी। सफलता, लक्ष्मी हर चीज जीवन में चली आएगी और उसका हमारे लिए कोई मूल्य नहीं रहेगा। हमें जीवन में केवल प्रभु की भक्ति की मांगनी चाहिए और भक्ति मिल गई हम स्थिर मति हो गए उस भक्ति में, प्रभु के अंदर स्थिर मति हो गए, प्रभु के श्रीचरणों में हमारी मति स्थिर हो गई तो हमें हर चीज जीवन में अपने आप मिलेगी और मोक्ष के अधिकारी होंगे। उस परम ज्ञान के अधिकारी होंगे। यही भगवद गीता का सारतत्व है।

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19 November 2022, 04:11 PM IST

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