जीवन जीने में किस तरह के विचारों का उपयोग करना चाहिए? भाग-2

आप सोचोगे कि अब शराब नहीं पीऊंगा और आप शराब पी लोगे जब पी लोगे तब आपको ग्लानि होगी। एक तो इस बात की ग्लानि होगी कि मैंने शराब पी ली, दूसरी आपको इस बात ग्लानि होगी कि मैंने प्रतिज्ञा की थी और मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाया।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

आप सोचोगे कि अब शराब नहीं पीऊंगा और आप शराब पी लोगे जब पी लोगे तब आपको ग्लानि होगी। एक तो इस बात की ग्लानि होगी कि मैंने शराब पी ली, दूसरी आपको इस बात ग्लानि होगी कि मैंने प्रतिज्ञा की थी और मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाया। आपका अपने ऊपर से विश्वास उठने लगेगा, अपनी संकल्प शक्ति के ऊपर से विश्वास उठने लगेगा। जब आपको खुद धीरे-धीरे पता चल जाएगा और एक समय ऐसा आएगा कि आप पूरी तरह से असफल होकर नशे के आदी हो चुके होगे उसके अंदर गिर चुके होगे।

आपका खुद पर से भरोसा उठ जाएगा। अगर किसी व्यक्ति का किसी दूसरे से विश्वास उठ जाएगा तो उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन अगर किसी व्यक्ति का खुद से भरोसा उठ जाए तो उसका सबकुछ बिगड़ गया। व्यक्ति का अपने आप में भरोसा नहीं बिगड़ा है वो कायम है तो वह जीवन में दोबारा उठकर खड़ा हो सकता है और दुनिया का भरोसा जीत सकता है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति का खुद का ही अपना भरोसा टूट गया हो अपने ऊपर तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति उसको भरोसा नहीं दिला सकता। वो जीवन में कभी भी खड़ा नहीं हो सकता वह बैठ ही जाएगा। ऐसा इसलिए होता है कि जिन कामनाओं को जिन इच्छाओं को आपने पकड़ लिया था, पाल-पोसकर बड़ा कर लिया था वो आपके अंदर चिपक गई हैं। वह आपकी नेचर बन चुकी है वह आपकी प्रकृति बन चुकी है। कोई भी कार्य आप अपने नेचर के विरुद्ध करोगे अपनी प्रकृति के विरुद्ध करोगे तो उस काम को करने में आप असफल हो जाओगे वो काम आप नहीं कर पाओगे।

इसीलिए सबसे पहले जब भी कोई आप काम करो तो आपको पता होना चाहिए कि उसके परिणाम क्या हैं। दो तत्व हमारे अंदर हैं एक तो इन्द्रियां हैं और दूसरा है मन। मन इन्द्रियों का स्वामी है। इन्द्रियां हर चीज आपके पास लेकर आएंगीं। अच्छा स्वाद लेकर आएंगी, अच्छा नशा लेकर आएंगी, अच्छा रंग-रूप लेकर आएंगी लेकिन मन को यह देखना है कि उसे किससे चिपकना और किससे नहीं चिपकना है। जब तक इन्द्रियां आपके मन के कंट्रोल में रहेंगी तबतक आप जीवन में ऊपर रहोगे, आप वासनाओं पर नियंत्रण करोगे आप स्वामी रहोगे। इच्छाएं और वासनाएं आपकी दास रहेंगी। जब आपने मन को शांत कर दिया, मन के ऊपर इन्द्रियों का नियंत्रण हट गया और इन्द्रियां ही सबकुछ चलाने लगीं तब आप अपनी ही इच्छाओं के अपनी ही कामनाओं के गुलाम बन जाओगे। ऐसे काम हो जाएंगे कि व्यक्ति को समाज को ऐसा लगेगा कि अच्छा ऐसा काम आपने कर दिया। समाज में ऐसा ही होता है।

कई बार होता है कि अच्छा-खासा कोई व्यक्ति कोई गलत काम कर बैठता है कोई सद्पुरुष कोई गलत काम कर बैठता है। जब आप मन से चिंतन करना चालू कर दोगे, वासनाओं को इकट्ठा करना चालू कर दोगे, रस लेना चालू कर दोगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि आपका आपसे ही नियंत्रण खत्म हो जाएगा। आप कुछ ऐसा कर बैठोगे कि आपको भी खुद से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसीलिए जीवन में जब भी आपको किसी काम में मजा आने लगे तो सबसे पहले मन को एक्टिवेट करना है कि कहीं मैं गलत दिशा में तो नहीं जा रहा हूं। ये इन्द्रियां मुझे कहां ले जा रही हैं। किन चीजों में मैं रस ले रहा हूं। ये कितना रस मुझे मिल रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर आपने इन्द्रियों को मन के कंट्रोल में रखा है तो आप जीवन में सफल रहोगे, जीवन में आगे बढ़ते रहोगे। जिस तरह घोड़ों को कंट्रोल में रखने के लिए लगाम होती है उसी तरह मन को कंट्रोल में रखने के लिए प्राणायाम हैं।  अगर आप प्राणायाम करते हो तो मन आपको कंट्रोल में रहेगा। इससे भी ज्यादा अगर मन को कंट्रोल में रखना है तो मन को प्रभु को चरणों में लगा दो, इन्द्रियां कुछ भी लेकर आएं वो प्रभु के श्रीचरणों में लगा दो।

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07 September 2022, 02:59 PM IST

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