ॐलोक आश्रम: जीवन जीने में किस तरह के विचारों का उपयोग करना चाहिए? भाग-3

ॐलोक आश्रम: जीवन जीने में किस तरह के विचारों का उपयोग करना चाहिए? भाग-3

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

प्रभु के चरणों में जो कुछ भी पड़ जाता है वो अमृत हो जाता है तब आप निमित्त मात्र भाव से उसका सेवन करते हो, आप उसमें रस नहीं लेते हो और रस न लेते हुए अगर आप किसी चीज का सेवन करते हो तो कभी आप उसके आदी नहीं होते हो आप कभी उसके चक्कर में नहीं पड़ते हो। आप अगर ये सोचते हो कि मैं बड़ा संकल्प शक्ति से युक्त व्यक्ति हूं और मैं चाहे ड्रग्स लेने लगूं, मैं शराब पीने लगूं जिस दिन चाहूं मैं छोड़ दूंगा तो ऐसा नहीं होता है क्योंकि हर चीज प्रकृति के अधीन है। जैसे आपने अगर ऊपर पत्थर उछाल दिया तो वह नीचे गिरेगा ही गिरेगा। क्योंकि ये लॉ आफ नेचर है।

भगवान कृष्ण गीता में यही कह रहे हैं कि आप जो भी कर रहे हो वह अपनी प्रकृति के वशीभूत होकर कर रहे हो तो आपकी प्रकृति किस तरह की बनेगी यह आप अपने कंट्रोल में रखो। इसको अपने मन के नियंत्रण में रखो इसको इन्द्रियों के भरोसे मत छोड़ो। इसको अपनी वासनाओं के भरोसे मत छोड़ो। यह जो अमूल्य जीवन आपको मिला हुआ है इस जीवन को केवल मजा लेने के लिए व्यर्थ मत करो क्योंकि ये मजा आपको गुलाम बना देगा। मजा ऐसी स्थिति में आपको ला देगा जहां आप जीवन जी ही नहीं सकोगे। ऐसी स्थिति में आप पहुंच जाओगे जहां एक-एक दिन जीना आपके लिए दूभर हो जाएगा। इसीलिए आप मन के नियंत्रण में रहो। उन इन्द्रियों के वश में नहीं आओ। इन्द्रियों के वश में आपको नहीं आना है। मन के कंट्रोल में इन्द्रियों को रहना है।

अरस्तू कहता है कि मन के नियंत्रण में, बुद्धि के नियंत्रण में वासनाओं की संतुष्टि ही पूर्ण जीवन का आधार है। जीवन में इच्छाओं की, कामनाओं की संतुष्टि भी जरूरी है लेकिन नियंत्रण मन का होना चाहिए। जो व्यक्ति केवल अपनी वासनाओं के पीछे जाता है। बुद्धि-विवेक को किनारे कर देता है वो व्यक्ति पशुवत जीवन जीता है। इस लोक में भी इस जन्म में भी उसकी दुर्गति हो जाती है और मरने के बाद भी दूसरे लोक में उसकी दुर्गति होती है। इसीलिए व्यक्ति को जीवन में सचेष्ट रहना चाहिए और इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि जो वह कार्य कर रहा है जिसमें उसको मजा आ रहा है वह कार्य क्या है। क्या उसे गलत काम में मजा आ रहा है उसकी परिणीति क्या हैं। आपको चेक एंड बैलेंसेज रखना चाहिए।

विद्धान लोग कहते हैं कि जब भी सोने जाओ तो आप देखो आप विचार करो सोने से पहले कि आप आपने जीवन में क्या अच्छा किया क्या बुरा किया। ये बुद्धि का एक नियंत्रण है। एक चेक है आपकी इन्द्रियों पर। जीवन की दौड़ इतनी तेज हो गई है कि व्यक्ति जान ही नहीं पाता कि कब वो गलत दिशा में जा रहा है और मुख्यत: यह युवाओं के साथ समस्या हो जाती है कि कभी कभी वो बिल्कुल गलत रास्ते में पड़ जाते हैं और इतने गलत रास्ते में पड़ जाते हैं कि वहां से निकलने का रास्ता नहीं देख पाते और कभी-कभी सुसाइड जैसा कदम उठा लेते हैं। डिप्रेशन में चले जाते हैं।

इसके लिए भगवान कृष्ण गीता में बतला रहे हैं कि आपको इन्द्रियों पर बुद्धि का नियंत्रण रखना पड़ेगा। जब आपको किसी काम में मजा आने लगे। दिनभर सोचने में मजा आने लगे, उस काम को करने में मजा आने लगे तो आप सोचो कि आप उसी तरह से उस जाल में फंसते चले जा रहे हो जिस तरह से चूहा अपने लिए बिछाए जाल में फंस जाता है रोटी को देखकर करके। जिस तरह से शेर जाल में फंस जाता है बकरी को देख करके। तो इन्द्रियों ने आपके लिए एक मायाजाल बना दिया है जिसमें आपका मन फंस जाएगा और मन फंस गया और आपकी प्रवृति उस तरह की बन गई तो वहां से निकलना आपके लिए असंभव हो जाएगा, मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए मन पर नियंत्रण रखो, मन को काबू में रखो, इन्द्रियों का स्वामी मन को बनाओ, मन को इन्द्रियों का दास मत बनाओ। जीवन को इसी तरह जीना है तभी आप इहलोक और परलोक दोनों जगह सुख प्राप्त कर सकोगे।

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08 September 2022, 12:04 PM IST

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