ॐलोक आश्रम: मनुष्य कब कर्मों से लिप्त नहीं होता? भाग -1

भगवदगीता में हमने देखा कि कर्मों का स्वरूप ही है मनुष्य को बांधना। हर कर्म कुछ न कुछ फल जनरेट करता है। हर कार्य का कुछ न कुछ परिणाम होता है और वह परिणाम आपको बांध देता है। यह एक वैज्ञानिक नियम है।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

भगवदगीता में हमने देखा कि कर्मों का स्वरूप ही है मनुष्य को बांधना। हर कर्म कुछ न कुछ फल जनरेट करता है। हर कार्य का कुछ न कुछ परिणाम होता है और वह परिणाम आपको बांध देता है। यह एक वैज्ञानिक नियम है। जिस तरह आप मोबाइल पर काम करते हो और मोबाइल पर किया जाना हर काम एक इमप्रिंट को उत्पन्न करता है उसी तरह जो भी आप सकाम कर्म करते हो, किसी इच्छा से प्रेरित होकर काम करते हो। वह आपकी चेतना में अपने परिणाम को अंकित कर देता है। मान लीजिए कि आपको किसी ने बुरा कह दिया तो आपको भी बुरा लग गया उसके बाद आपने उसको मारने का प्लान बना लिया और जाकर उसकी पिटाई कर दी।

आपकी चेतना में उसने जो कहा उसका बुरा लगना, उसकी पिटाई करने की योजना बनाना और जब उसकी पिटाई करते हो तो उसकी पिटाई करने के बाद आपको सुख उत्पन्न होना। ये तीनों इमप्रिंट आपकी चेतना में बन गए। जो भी इमप्रिंट आपकी चेतना में बन जाता है वो अपना इफेक्ट जनरेट करता है। वो शांत नहीं रहता। आपने पिटाई जैसे ही कर दी आपकी चेतना सचेत हो जाएगी। आपकी चेतना काम करने लगेगी उसको पता चल जाएगा कि इसने पिटाई की है। आप सचेत हो जाएंगे कि अगर उसे मौका मिलेगा तो वो मेरी पिटाई कर देगा। आप उसको देखोगे तो डरने लगोगे। उसकी प्रतिक्रिया का डर आपको सताने लगेगा। आप संशय की स्थिति में रहोगे।

आप अपने बचने का उपाय करने लगोगे। ये इसके इफेक्ट्स हैं जो आपको दिखाई दे रहे हैं। जो भी इस तरह के कर्म किए जाएंगे वो आपकी चेतना पर इमप्रिंट अपने डालेंगे। इमप्रिंट डालने के बाद उनके इफेक्ट जनरेट होने लगेंगे। आपके मस्तिष्क में वो जनरेट होने लगेंगे। उनमें से कुछ तुरंत जनरेट होने लगेंगे, कुछ का इफेक्ट तुरंत मिल जाएगा और कुछ बैक ऑफ माइंड में चले जाएंगे। कॉन्सेसनेस के लेवल पर पड़े रहेंगे और गहन स्तर पर जाकर वो चेतना के साथ इतने संभूत हो जाएंगे, इतने मिल-जुल जाएंगे कि आपकी चेतना के ही अंग बन जाएंगे। आपने देखा होगा समाज में कि कोई व्यक्ति इतना निगेटिव हो जाता है कि दूसरों को दुख देकर वह सुख प्राप्त करने लगता है। दूसरों के दुख में ही उसे मजा आता है।

दूसरों को दुख देकर ही उसे खुशी मिलती है। उसकी चेतना इतनी मलिन हो जाती है कि उसको नकारात्मकता में ही मजा आने लगता है। उसको अपने जीवन को तबतक जीना पड़ेगा जबतक की उसकी नकारात्मकता विगलित नहीं हो जाती। उसकी नकारात्मकता समाप्त नहीं हो जाती। इसी तरह कोई व्यक्ति पुण्यों के लिए लालायित रहता है। वह हर काम इसलिए कर देता है कि उसे पुण्य मिल जाए। वह सकारात्मकता के लिए, वह स्वर्ग के लिए इतना लालायित है, वह स्वर्ग की अप्सराओं के लिए इतना लालायित है कि वह अच्छा-बुरा सबकुछ छोड़ते हुए बस स्वर्ग की कामना से ही हर कार्य करता रहता है। उसकी चेतना भी उतनी ही मलिन हो चुकी है। रंग चेतना में चढ़ चुका है चाहे वह काला हो चाहे वह सफेद हो। रंग तो रंग है। वह स्वर्ग की इच्छा से प्रेरित होकर अच्छे कार्य कर रहा है। उसको अच्छे कार्य का भोग करना है इन्हें बुरे कार्य का भोग करना है। भोग दोनों को करना है। जो भी आपके कार्य हैं उन्होंने चेतना में जो भी इमप्रिंट डाल दिए हैं। जब तक वह इमप्रिंट रहेगी तब तक आप अगला जन्म लेते रहोगे।

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11 October 2022, 03:42 PM IST

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