ॐलोक आश्रम: भक्ति योग और ज्ञान योग में कौन श्रेष्ठ है? भाग-3

ॐलोक आश्रम: भक्ति योग और ज्ञान योग में कौन श्रेष्ठ है? भाग-3

Janbhawana Times
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ॐलोक आश्रम: जैसे आंख से ही आप बाहर की सारी दुनिया को देख रहे हो लेकिन आंख से ही अगर आंख को देखो तो नहीं देख सकते। इसी तरह से इस बुद्धि से आप सारे संसार को जान रहे हो लेकिन इस बुद्धि से आपको इस आत्मा को देखना है। अपने आप को देखना है। इस अन्तर्रात्मा से अपने आप देखना है। वो अन्तर्रात्मा से आप अपने को नहीं देख सकते। उसके लिए सबसे पहले आपके पास आस्था होनी चाहिए। आपके पास भक्ति होनी चाहिए। उस भक्ति के अंदर अन्तर्रात्मा की शक्ति जागृत होगी। उस शक्ति से आप देख पाओगे। भक्ति सबसे पहले जरूरी है।

अगर कोई भक्ति के रास्ते पर बहुत आगे चला जाएगा तो कर्म और ज्ञान पीछे-पीछे आते जाएंगे। इसी तरह अगर ज्ञान के रास्ते में भी आगे चला गया इतने आगे कि ज्ञान की ही भक्त हो गया वो, तो भी कर्म और भक्ति साथ आ जाएंगे। भक्ति कर्म से भी मिली हुई है भक्ति ज्ञान से भी मिली हुई है। बिना भक्ति के कुछ भी नहीं है। भगवान कृष्ण इसी बात को आगे बताते हैं कि किस तरह से जीवन में आगे बढ़ना है। जो व्यक्ति, जो भक्तजन अपने मन को मेरे में आविष्ट कर देते हैं, मेरे ही में लगा देते हैं और नित्य मेरी उपासना करते हैं। हमेशा चिंतन प्रभु में ही लगा रहे।

पूजा का उद्देश्य हमारे चित्त को निर्मल करना है और हम पूजा को अपना उत्तरदायित्व मान लेते हैं। जो व्यक्ति समाज में जीवन में कुछ सिद्धि चाहते हैं, कुछ बनना चाहते हैं कुछ लौकिक चीज चाहते हैं। उन व्यक्तियों के लिए तो बहुत अच्छा है कि किसी देवता की पूजा कर लें, उपासना कर ले। बुद्धि चाहते हैं तो सरस्वती की उपासना कर लें, धन चाहते हैं तो लक्ष्मी की उपासना कर लें। बहुत सारे देवी देवता हैं किसी की भी उपासना कर लें। लेकिन जो ऐसे साधक हैं जो आत्म साक्षात्कार करना चाहते हैं, आत्म तत्व की प्राप्ति करना चाहते हैं। परमात्मा को पाना चाहते हैं ऐसे व्यक्ति के लिए हर क्षण भगवान के लिए होना चाहिए। भगवान का जाप चलता रहना चाहिए।

अगर आप नित्य प्रति निरंतर प्रभु की कृपा करते रहो, प्रभु की भक्ति में लगे रहो तो धीरे-धीरे आपके मनस की एक ऐसी अवस्था आ जाती है कि हमेशा प्रभु का नाम आपकी अन्तर्रात्मा में चलता रहता है। आप संसार के काम करते रहोगे लेकिन मन में आपके राम नाम की लय चलती रहेगी। गुरु नाम के लय चलती रहेगी, सत नाम की लय चलती रहेगी। नाम कोई भी दे दो वह प्रभु का ही नाम है। जिस नाम की लय आपके मन में चलती रहती है। इसको अजाप जप कहते हैं। अजपा जप वह है जब उसे जपने की आवश्यकता नहीं है। आप कार्य को करते हो जबतक आप कार्य को करते हो वह कृत्रिम होता है। जैसे नहर को चलाना पड़ता है, मोटर को चलाना पड़ता है लेकिन नदी अपने आप चलती है। उसके लिए कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता है वो बहती रहती है। इसी तरह अजपा जप है जब आप प्रयत्नपूर्वक कार्य करते हो तो वह जपाजप है, जपना पड़ता है आपको मेहनत लगानी पड़ती है।

लेकिन जब आपकी मेहनत इतना संचित हो गई, इतना आपका चित्त उसमें तल्लीन हो गया कि अब आपको उसका नाम लेने की आवश्यकता नहीं है। वह अन्तर्रात्मा का स्वरूप बन गया और धीरे-धीरे अपने आप ही मन की, चित्त की ऐसी अवस्था बनी कि वह नाम हरिनाम, सतनाम चलता रहता है। वही नाम आपके अंदर घुल जाता है। आपके अंग के अंदर वो नाम एकीभूत हो जाता है। भगवान कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति जो श्रद्धा से परिपूरित होते हैं, हमेशा मेरा ही नाम लेते रहते हैं, जाप करते रहते हैं, ऐसे व्यक्ति युक्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति को ही मैं योगी कहता हूं। भगवान कृष्ण ने बताया कि ये जो भक्ति मार्ग है इसमें किस तरह से व्यक्ति चलकर अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर सकता है, आत्म स्वरूप को पा सकता है और इस तरह व्यक्ति का भगवान का नाम लेते हुए ही, भक्ति करता हुआ ही अजपा जप के रूप में अपनी मानसिक शक्तियों को पहले तो जागृत करता है।

जब आप भगवान के नाम का जाप करते हो, चौबीस घंटे भगवान का नाम ही आपके चित्त के अंदर चलता रहता है तो जितनी बुराइयां हैं जितने दुगुर्ण हैं, चित्त में जितनी तरह की वासनाएं चिपकी हुई हैं। ये नाम चित्त की उन सारी विकृत्तियों को मिटा देता है, जिस तरह आइने पर धूल जमने की वजह से हमारा चेहरा उसमें नहीं दिखता है और जैसे ही हम आइने को कपड़े से साफ कर देते हैं उसका मल, उसकी धूल हट जाती है और हमारा चेहरा उसमें दिखने लगता है, जैसे डस्टर धूल को मिटा देता है और तब परमात्मा आपके अंदर प्रकाशित हो जाता है और आप अनायास ही योगी हो जाते हो। ये भगवान कृष्ण भगवद गीता में बता रहे हैं।

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17 October 2022, 02:23 PM IST

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