ॐलोक आश्रम: हम श्राद्ध क्यों मनाते हैं? भाग-2

तीन ऋण सनातन परंपरा में माने गए हैं। पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण। पितृ ऋण है कि हमें अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता अर्पण करनी चाहिए जैसे कि हमारे पिता ने विवाह संस्कार किया और हमें पैदा किया इसी तरह हम भी अपनी संतान पैदा करें।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

तीन ऋण सनातन परंपरा में माने गए हैं। पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण। पितृ ऋण है कि हमें अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता अर्पण करनी चाहिए जैसे कि हमारे पिता ने विवाह संस्कार किया और हमें पैदा किया इसी तरह हम भी अपनी संतान पैदा करें। उस संतान को अच्छे संस्कार दें। सन्मार्ग के रास्ते पर चलाएं और उसे समाज का अच्छा नागरिक बनाएं उसे अच्छा धार्मिक व्यक्ति बनाएं। यही पितृ ऋण है कि जो संस्कार हमें मिले हैं जो पितरों ने हमें दिया है, जो ज्ञान हमें मिला है वेदों का उपनिषदों का, धर्म का उस ज्ञान को हम अपनी संतान में बांटें। हम मूल्यों को संतान में आगे स्थानान्तरित करें। ताकि जो समाज रहे वो शांतिपूर्ण रहे, प्रेम भाव से संपन्न रहे और एक अच्छे समाज का निर्माण हो।

अगर आप प्राचीन गांव की पद्धति को देखेंगे तो हमारे जो पुराने गांव होते थे वो सेल्फ सस्टेनेबल होते थे। गांव अपने आप में ही परिपूर्ण होता था। उस गांव में कुम्हार बर्तन बना देते थे। बढ़ई लकड़ी का सामान बना देता था। लोहार हल बना देते थे। नाई बाल काट देते थे। किसान अन्न उपजाते थे। इस तरह सारा इकोसिस्टम मिलकर काम करता था। गांव में सबके सुख में व्यक्ति सुखी है। सबके सुख मे ही सबका सुख निहित है। ऐसा नहीं होता था कि एक व्यक्ति सुखी है तो दूसरा व्यक्ति दुखी हो जाए। आज भी गांवों में देखिए कि किसी एक घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके घर में खाना नहीं बनता बल्कि गांव के लोग एक-एक दिन करके उस घर में खाना पहुंचाते हैं, उस घर के सदस्यों को खाना खिलाते हैं। उसे खाना बनाने की जरूरत नहीं होती।

ये सबलोगों के मिलकर चलने का उदारहण था कि समाज इसी तरह से बनता है। सबलोग मिलकर चलते हैं। सबकी खुशी सब मिलकर बांटें। सबका दुख सब मिलकर बांटें और इस तरह से समाज को एक साथ लेकर चलें। अब समाज टूट गया है। समाज बिखर चुका है। समाज की जगह एक वर्चुअल वर्ल्ड ने ले ली है। हर व्यक्ति का अपना एक समाज सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सअप और ट्विटर पर बन गया है। अगर किसी की मृत्यु हुई तो लोग सोशल मीडिया पर ही शोक व्यक्त कर देते हैं। स्टेट्स में डाल देते हैं, स्टेटस बदल देते हैं। शोक संदेश कमेंट कर शांत हो जाते हैं यह एक अलग समाज बन गया है। इस समाज की अपनी कुछ सुविधाएं हैं कुछ सहूलियतें हैं और इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। लेकिन हमारे पूर्वजों ने जिस तरह का समाज बनाया था उसकी खासियत ये थी कि जो उस समाज को मौजूदा वृद्धाश्रम, प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता था जिसका आज हमें सामना करना पड़ रहा है।

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20 December 2022, 07:44 PM IST

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