ॐलोक आश्रम: व्यक्ति गलत रास्ते पर क्यों चला जाता है? भाग-1

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत सारे उपदेश दिए। अर्जुन पूछ रहे हैं कि हे प्रभु हर व्यक्ति जीवन में अच्छा काम करना चाहता है, उत्तम पद प्राप्त करना चाहता है, सफल होना चाहता है। कोई दुनिया में गलत काम नहीं करना चाहता है। कोई अपनी बदनामी नहीं चाहता।

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत सारे उपदेश दिए। अर्जुन पूछ रहे हैं कि हे प्रभु हर व्यक्ति जीवन में अच्छा काम करना चाहता है, उत्तम पद प्राप्त करना चाहता है, सफल होना चाहता है। कोई दुनिया में गलत काम नहीं करना चाहता है। कोई अपनी बदनामी नहीं चाहता। कोई नहीं चाहता कि लोग उसको बुरा कहें। कोई नहीं चाहता है कि उसके बीवी-बच्चे बर्बाद हो जाएं। वह असफल हो जाए वह बर्बाद हो जाए। फिर ऐसा क्या है कि कुछ व्यक्ति असफल हो जाते हैं, कुछ व्यक्ति बर्बाद हो जाते हैं तो कुछ नशे में पड़ जाते हैं। हर लोग सफलता चाहते हैं फिर भी लोग असफल होते हैं तो कौन ऐसा कारण इसके पीछे है। हर व्यक्ति अच्छा बनना चाहता है तो लोग बुरे क्यों बन जाते हैं। हर व्यक्ति अच्छा ही बन जाए तो क्या समस्या है तो फिर क्यों नहीं बन पाते। अर्जुन पूछ रहे हैं किसके द्वारा प्रेरित हुआ व्यक्ति पाप करता है। न चाहते हुए भी ऐसा लगता है कि उससे बलपूर्वक कार्य कराया जा रहा है। कौन गलत काम करवा रहा है और व्यक्ति गलत रास्ते पर क्यों पड़ जाता है।

भगवान कृष्ण कह रहे हैं जो आपकी इच्छाएं हैं और जो आपका क्रोध है जो रजोगुण से उत्पन्न हुआ है यही आपका सबसे बड़ा बैरी है। हमारे सबके अंदर एक लालच होता है। कामनाओं की पूर्ति हर व्यक्ति करना चाहता है और जब कामनाओं की पूर्ति हमारे दिमाग में चढ़ जाता है तब वो संकटकारक होने लगता है। हम इच्छाओं के इतना वशीभूत हो जाते हैं कि हम सही और गलत को नहीं जान पाते। जब हमारी इच्छाएं पूरी नहीं होती तब हमें क्रोध आ जाता है। काम और क्रोध सारी समस्याओं की जड़ है। यह इच्छाएं ही व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाती हैं। एक खिलाड़ी कुश्ती लड़ता था उसे लगा कि मुझे ओलंपिक में जाना है उसे लगा कि एक दूसरा खिलाड़ी है वो मुझसे ज्यादा सशक्त है वो सकता है कि वो भारत का प्रतिनिधित्व करे। उसने बड़ी मेहनत की थी और उसे लगने लगा था कि मैं ही सही उम्मीदवार हूं। मुझे ही आगे जाना चाहिए।

अपनी इस इच्छा के वशीभूत होकर उसने दूसरे व्यक्ति के खाने में ड्रग्स मिलवा दिया ताकि डोप टेस्ट में वो बाहर हो जाए। जब व्यक्ति कामनाओं से इस तरह ओत-प्रोत हो जाता है तो उसे सही और गलत का भान नहीं रहता। वो आगे बढ़ने के लिए दूसरों को रास्ते से हटाने के लिए उल्टे-सीधे काम करने लगता है। यही उसके पतन का कारण होता है। हमारी इच्छाएं इस तरह न हों कि वो हमारे सिर पर चढ़ जाएं और हम गलत काम करने लगें। जब हम इच्छाओं कै बहुत वशीभूत हो जाते हैं और हमारी इच्छा के अनुसार परिणाम नहीं निकलता तब हमारे अंदर क्रोध आ जाता है। वो क्रोध या तो सामने वाले या फिर बाहर वाले के ऊपर प्रकट होगा या हमारे अंदर ही घुस जाएगा।

अगर बाहर वाले के ऊपर प्रकट हो गया तो हमारा बैर, क्रोध और एक आग जल उठेगी लेकिन वो हमारे अंदर ही प्रवेश कर गया तो हम डिप्रेशन में चले जाएंगे। ये दोनों तरह से हमारे लिए नुकसानदेह है। इसलिए हमें कामनाओं के ऊपर नियंत्रण करना है, काम पर नियंत्रण करना है। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि जिस तरह आग धुएं से व्याप्त होती है जिस तरह गंदगी दर्पण के ऊपर लग जाती है जैसे गर्भ एक तरल पदार्थ के अंदर होता है उसी तरह काम और क्रोध व्यक्ति के अंदर व्याप्त रहती हैं। ज्ञानी से ज्ञानी व्यक्ति भी इस काम से नहीं बच सका। उसके अंदर इतनी इच्छाएं होती हैं कि वो इच्छाएं व्यक्ति को गुलाम बना देती हैं।

पाश्चात्य दार्शनिक ह्यूम ने कहा है कि बुद्धि वासनाओं की दासी है, हमारी जो वासनाएं हैं हमारी जो इच्छाएं हैं हमारे जीवन में आदर्श उपस्थित करती हैं कि हमें क्या करना है और बुद्धि पीछे-पीछे दौड़ती है कि उन आदर्शों को उन चीजों को कैसे प्राप्त किया जाए। जैसे आपको कोई बहुत अच्छा घर दिखाई देता है और आपको लगता है कि बस ऐसा ही एक घर मुझे मिल जाए। बुद्धि उस घर को पाने में अपना गुना-गणित लगाने लगती है कि आखिर इस घर को कैसे प्राप्त किया जाए, कैसे इसे खरीदा जाए, कैसे इसे बनवाया जाए, किस तरह से पैसे आएं और चौबीसो घंटे आप इसी काम में लगे रहते हो। बुद्धि आपने सामने एक सुंदर स्त्री का विकल्प उपस्थित कर देती है उसके बाद आपकी सारी बुद्धि उसी स्त्री को पाने की कोशिश में लग जाती है। कैसे इस स्त्री से शादी किया जाए कैसे इस स्त्री से संबंध बनाए जाएं। आप उसी ऊहापोह में आप उसी दौड़ में लग जाते हो।

ज्ञानी से ज्ञानी व्यक्ति इस काम से नहीं बच सका उसके अंदर वो प्रवेश कर जाता है और उसका ज्ञान जो है वो ज्ञान उसकी कामना की पूर्ति का साधन बन जाता है। जो ज्ञान अपने आप में साध्य होना चाहिए था वह ज्ञान उस काम के पीछे दौड़ने लगता है और कामना के लिए पूर्ति का साधन बन जाता है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जिस तरह एक आग होती है उस आग में आप जितना ही ज्यादा ईंधन डालती जाओ वह उतना ही बढ़ती जाती है। वो कम नहीं होती। उसी तरह जो यह कामनाएं हैं इन कामनाओं में जितना आप ईंधन डालोगे जितना इसको देते जाओगे वह उतना ही बढ़ता जाएगा। आपको आज एक कार अच्छी लगी वो मिल गई कुछ दिन बाद वो पुरानी हो गई तो उससे बड़ी कार अच्छी लगने लगेगी फिर उसे बड़ी अच्छी लगने लगेगी। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके पीछे आप दौड़ते जाओगे आपकी पूरी जिंदगी खत्म हो जाएगी लेकिन यह न बुझने वाली आग है और इसी चक्कर में इस ना बुझने वाली आग के चक्कर में आपके सही गलत का भेद मिट जाएगा एक दिन आपके लिए और आप अपनी वासनाओं के, अपनी इच्छाओं के गुलाम बन जाओगे और इसी तरह से आप अपने पूरे जीवन में दौड़ते-दौड़ते पूरा जीवन नष्ट कर दोगे। जब पीछे मुड़कर देखोगे तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि हम किसलिए जिए।

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10 September 2022, 03:40 PM IST

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