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गुजरात में आदिवासी कल्याण के 50 करोड़ कहां हुए खर्च? आम आदमी पार्टी ने किया बड़ा खुलासा

आम आदमी पार्टी ने गुजरात में आदिवासी मुद्दों पर बीजेपी सरकार को घेरा. नेताओं ने वीआईपी कार्यक्रमों पर करोड़ों खर्च और आदिवासी शिक्षा, स्वास्थ्य व छात्रवृत्ति के लिए फंड की कमी को सरकार की गलत प्राथमिकता बताया.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

नई दिल्लीः आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुराग ढांडा और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने गुजरात में आदिवासी हितों की अनदेखी को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारतीय जनता पार्टी सरकार पर तीखा हमला बोला. दोनों नेताओं ने कहा कि वीआईपी कार्यक्रम पर करोड़ों रुपये खर्च करने वाली सरकार, जब आदिवासी बच्चों, छात्रों और बीमार लोगों की बात आती है तो ग्रांट नहीं है कहकर पल्ला झाड़ लेती है. यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि बीजेपी की आदिवासी विरोधी मानसिकता का साफ सबूत है.

पढ़ाई और सेहत के लिए पैसा क्यों नहीं?

प्रेस कॉन्फ्रेंस में अनुराग ढांडा ने कहा कि आदिवासी समाज के नाम पर बड़े-बड़े मंच सजाए जाते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि बच्चों की छात्रवृत्तियां बंद हैं, सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारी के लिए सहायता नहीं मिल रही और आंगनवाड़ी के बिल अटके पड़े हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सरकार के पास वीआईपी इंतजामों के लिए असीमित पैसा है, तो आदिवासी बच्चों की पढ़ाई और सेहत के लिए पैसा क्यों नहीं?

दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने इसे दिखावटी विकास करार देते हुए कहा कि आदिवासी इलाकों में कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएं हैं, लेकिन सरकार की प्राथमिकता मंच, डोम और वीआईपी मेहमानों की सुविधाएं बन गई हैं. उन्होंने कहा कि यह वही सरकार है जो आदिवासी समाज को भाषणों और तस्वीरों तक सीमित रखना चाहती है, जबकि असली जरूरतें लगातार नजरअंदाज हो रही हैं.

वीआईपी चाय-समोसे पर ₹2 करोड़ खर्च

इसके बाद नेताओं ने बताया कि गुजरात के डेडियापाड़ा से आम आदमी पार्टी के विधायक चैतार वसावा द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में जो आधिकारिक जानकारी सामने आई है, वह बेहद चौंकाने वाली है. प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार वीआईपी कार्यक्रम के लिए अलग-अलग मदों में करोड़ों रुपये खर्च किए गए. सिर्फ पंडाल पर ₹7 करोड़ खर्च हुए. डोम पर ₹3 करोड़ झोंके गए. मंच निर्माण पर ₹5 करोड़ उड़ाए गए. वीआईपी चाय-समोसे पर ₹2 करोड़ खर्च कर दिए गए. लोगों को लाने-ले जाने के लिए बसों पर ₹7 करोड़ खर्च हुए.

पीड़ित आदिवासी परिवार मदद मांग रहे

अनुराग ढांडा ने कहा कि यही सरकार आदिवासी छात्रावासों में रहने वाले बच्चों को पूरे महीने के लिए सिर्फ ₹2,100 देती है, जिसमें खाना, बिजली और अन्य सभी खर्च शामिल होते हैं. एक तरफ अधिकारियों के लिए एक ही दिन में हजारों रुपये का भोजन, दूसरी तरफ बच्चों के लिए पूरे महीने का खर्च भी नाकाफी, यह फर्क सरकार की सोच को उजागर करता है.

सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि जब सिकल सेल पीड़ित आदिवासी परिवार मदद मांगते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि कोई ग्रांट नहीं है. दो साल से बच्चों की छात्रवृत्तियां बंद हैं. स्कूलों में कक्षाओं की कमी है. जिले में हजारों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, लेकिन उन्हें पोषण देने के लिए बजट नहीं मिलता. वहीं, यूनिटी मार्च और वीआईपी कार्यक्रमों पर सार्वजनिक धन खुलेआम खर्च किया जाता है.

भविष्य आज फाइलों में अटका हुआ

दोनों नेताओं ने साफ कहा कि आम आदमी पार्टी आदिवासी समाज को सिर्फ वोट बैंक नहीं मानती. पार्टी का मानना है कि असली विकास वही है जिसमें आदिवासी बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान मिले. आम आदमी पार्टी ने यह मुद्दा उठाकर जनता की भावना को आवाज दी है और यह सवाल खड़ा किया है कि क्या विकास सिर्फ मंचों और कैमरों के लिए है, या उन बच्चों के लिए भी, जिनका भविष्य आज फाइलों में अटका हुआ है.

गुजरात के डेडियापाड़ा से उठी यह आवाज अब पूरे देश में सुनी जा रही है. खर्च के ये आँकड़े सिर्फ़ पैसों का हिसाब नहीं हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं. जनता अब खुद तय कर रही है कि उसे वीआईपी चमक चाहिए या अपने बच्चों का सुरक्षित भविष्य.

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22 December 2025, 06:00 PM IST

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