हिजाब के विरोध में इरानी नागरिक
हिजाब पहनने के विरोध में पूरे ईरान में प्रदर्शन हो रहे हैं। इस प्रदर्शन में महिलाएं ही नहीं पुरुष भी शामिल हो गए हैं।
हिजाब पहनने के विरोध में पूरे ईरान में प्रदर्शन हो रहे हैं। इस प्रदर्शन में महिलाएं ही नहीं पुरुष भी शामिल हो गए हैं। ईरान में हिजाब पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू की गई थी लेकिन 15 अगस्त 2022 को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने एक आर्डर पर साइन कर इसे ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा। 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान में काफी आजादी थी। यह भी जानकर हैरानी होगी कि 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। अर्थात अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी। वहीं 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी।
उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की अनुमति दी थी। 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं। इसके बाद 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले। इसके अलावा लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़कर 18 साल कर दी गई। साथ ही गर्भपात को कानूनी अधिकार बनाया गया। 1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लाम रिपब्लिक देश हो गया। शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रूहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में कट्टर शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। इसके बाद खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि दुनियां की आधी आबादी महिला है, इसलिए किसी भी मुल्क के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं को पुरुष के बराबरी का अधिकार हर हाल में मुहैया कराएं। महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित किया जाएगा तो देश तरक्की के रास्ते से भटक जाएगा।
ईरान में पिछले 5 दिनों से 31 लोगों की मौत हो गई है और 1000 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। ईरान पुलिस ने 13 सितंबर को महसा अमिनी नाम की युवती को हिजाब नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार किया था। लेकिन तीन दिन बाद, अर्थात 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद ईरान की जागरूक महिलाओं ने रईसी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। प्रदर्शन कर रहीं महिलाओं ने हिजाब पहनने का विरोध करने के लिए अपने बाल भी काटे और हिजाब को भी जलाया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ईरान सरकार का यह मनमानी रवैया महिलाओं के हक पर डाका डाल रहा है। ईरान के कानून अनुसार हिजाब नहीं पहनने पर महिलाओं को 74 कोड़े और 10 साल तक की जेल के अलावा 35 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। आखिर ईरान की सरकार क्यों महिलाओं पर इतना बड़ा जुल्म कर रही है। विश्व के परिदृश्य बदल रहे हैं और ऐसी कानून व्यवस्था की इजाजत किसी भी देश को नहीं है। क्योंकि, यह मानव अधिकार का घोर उल्लंघन है। प्रदर्शन कर रही महिलाएं किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
महिलाओं का कहना है कि हिजाब को अनिवार्य की जगह वैकल्पिक किया जाए। उनका कहना है कि हिजाब की वजह से वे क्यों मारी जाएं। उनके तर्क में दम है और इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। कितनी हैरत की बात है कि ईरान में कामकाजी महिलाओं पर हिजाब अनिवार्य करने की जिम्मेदारी दफ्तरों की होती है। हिजाब अनिवार्य करवाने में असफल 855 दफ्तर पिछले दो साल में बंद किए गए। इतना ही नहीं बल्कि पिछले 5 साल में सरकार का विरोध करने के मामले में 72 हजार केस दर्ज हुए हैं। वहीं, सरकार की नीतियों को प्रमोट करने वाली फिल्मों में नहीं काम करने वाली एक्ट्रेस की सीधे गिरफ्तारी होती है। ऐसे अत्याचारों के कारण ही हर वर्ष 15 से ज्यादा महिलाएं दूसरे देशों में जाने के लिए अर्जियां लगाती हैं। ईरान की यूनिर्वसिटी में 50% महिलाओं का एनरोलमेंट है लेकिन यह भी दुखद है कि वर्कफोर्स में उनकी भागीदारी केवल 17% है। ऐसी परिस्थिति में आक्रोश स्वभाविक है।