कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के मायने
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 24 साल बाद सोमवार को वोटिंग हुई है। इस पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच सीधा मुकाबला है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए 24 साल बाद सोमवार को वोटिंग हुई है। इस पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच सीधा मुकाबला है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रत्याशी मल्लिकार्जुन खड़गे समेत पार्टी के ज्यादातर नेता राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन राहुल इसके लिए तैयार नहीं हुए। यह भी सर्वविदित है कि कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बात बेईमानी होगी। एक समय जिस पार्टी की पूरे देश में सरकार हुआ करती थी,आज वो दो राज्यों तक सिमटकर रह गई है। उनमें भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। ऐसे वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना, पार्टी के लिए बड़ी बात है। हालांकि, इसके कुछ बिंदुओं पर नजर डालें तो ये बदलाव से ज्यादा विवाद की तरफ बढ़ता दिख रहा है।
कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए आखिरी बार साल 1998 में वोटिंग हुई थी। तब सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद थे। सोनिया गांधी को करीब 7,448 वोट मिले लेकिन जितेंद्र प्रसाद 94 वोटों पर ही सिमट गए। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने पर गांधी परिवार को कभी कोई चुनौती नहीं मिली। इस बीच इसी बीच शशि थरूर ने एक ट्वीट में लिखा है- कुछ लड़ाइयां हम इसलिए भी लड़ते हैं कि इतिहास याद रख सके कि वर्तमान खामोश नहीं था। यह भी सच है कि वोटिंग से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों में शशि थरूर को पोलिंग एजेंट्स नहीं मिले। कांग्रेस ने इसके बाद नियमों में बदलाव किया और उन्हें पोलिंग एजेंट्स उपलब्ध कराए गए।
कांग्रेस संविधान के मुताबिक वोट डालने वाले डेलिगेट्स ही पोलिंग एजेंट होते हैं। वहीं, शशि थरूर ने कहा कि कांग्रेस की किस्मत का फैसला कार्यकर्ता करेंगे। कांग्रेस में परिवर्तन का दौर शुरू हो गया है। वहीं, मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कांग्रेस जैसा विशाल संगठन चलाने के लिए गांधी परिवार का मार्गदर्शन चाहिए। अगर कोई कहता है कि उन्हें छोड़कर पार्टी को चलाया जा सकता है तो यह असंभव है। इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। उधर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रत्याशी मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए पार्टी का प्रोटोकॉल तोड़ा है। कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण की गाइडलाइन के मुताबिक वह किसी भी प्रत्याशी का खुलकर समर्थन नहीं कर सकते हैं, इसके बावजूद गहलोत ने खड़गे के लिए वोट मांगे। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि खड़गे के अध्यक्ष बनने से पार्टी में क्या बदलाव होगा? पार्टी में फूट पड़ सकती है। पार्टी में कई नेता बदलाव चाहते हैं।
खड़गे के ऊपर कांग्रेस हाईकमान का हाथ बताया जा रहा है, जबकि थरूर अकेले पड़ गए हैं। ऐसे में पार्टी के अंदर बदलाव चाहने वाले नेता चुनाव बाद बगावती रुख अख्तियार कर सकते हैं। थरूर को युवा कांग्रेसी ज्यादा पसंद करते हैं। केरल व दक्षिण के अन्य राज्यों में भी उनकी अच्छा दखल है। पार्टी में फूट का कांग्रेस को इन राज्यों में नुकसान हो सकता है। हां ये जरूर है कि खड़गे गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाते हैं। इसका समय-समय पर उनको इनाम भी मिला। साल 2014 में खड़गे को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया। लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेज दिया। पिछले साल गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म हुआ तो खरगे को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि खड़गे से ज्यादा गांधी परिवार को ही महत्व मिलेगा। साल 2004 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही है।
तब भी यही देखने को मिला है। भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, लेकिन हर बड़ा फैसला गांधी परिवार की मंजूरी से ही होता था। एक बार तो मनमोहन सरकार की तरफ से पास किए गए अध्यादेश को राहुल गांधी ने भरी संसद में फाड़ दिया था। मतलब साफ है,भले ही अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खड़गे बैठे, लेकिन सारे बड़े फैसले गांधी परिवार की मंजूरी से ही होंगे। अगर ऐसा होता है,तो आने वाले समय में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। इसके उलट शशि थरूर बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। वह गांधी परिवार से हटकर भी फैसले ले सकते हैं। मतलब अगर थरूर अध्यक्ष बनते हैं तो जरूर पार्टी में कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। कहा जाता है कि खड़गे वही करते थे, जो उन्हें कहा जाता था। अभी अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नामांकन बहुत जल्दबाजी में हुआ। पहले गांधी परिवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए आगे कर रही थी, लेकिन राजस्थान में सियासी ड्रामे के बाद खड़गे का नाम लाना पड़ा। अध्यक्ष पद को लेकर खड़गे का एजेंडा भी साफ नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर वह अध्यक्ष बनते हैं तो भी कोई खास बदलाव हो, इसकी संभावना बहुत कम है।