Ram Prasad Bismil Birthday: फांसी पर लटकने से पहले बोले थे , मै ब्रिटिश साम्राज्य का नाश चाहता हूं

काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आज 125वीं जयंती मनाई जा रही है। आज हम इनकी खास कहानी बताने जा रहे हैं। गोरखपुर में बिस्मिल की एक अलग पहचान है। इनका जन्म 11 जून 1897

Janbhawana Times
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काकोरी कांड के महानायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आज 125वीं जयंती मनाई जा रही है। आज हम इनकी खास कहानी बताने जा रहे हैं। गोरखपुर में बिस्मिल की एक अलग पहचान है। इनका जन्म 11 जून 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ था। बिस्मिल ने कुल 11 किताबें लिखी थी. हालांकि सारी अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर ली। उन्होंने अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन गोरखपुर जिला जेल में बिताए थे। चौरीचौरा कांड के बाद कांग्रेस ने अचानक असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया। इसके कारण बिस्मिल का इनसे मोहभंग हो गया था।

इसके बाद उन्होंने चंद्रशेखर 'आजाद' के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ गोरों के सशस्त्र प्रतिरोध का नया दौर आरंभ किया लेकिन सवाल था कि इस प्रतिरोध के लिए शस्त्र खरीदने को धन कहां से आए? इसी का जवाब देते हुए उन्होंने 9 अगस्त 1925 को अपने साथियों के साथ एक ऑपरेशन को अंजाम दिया। उन्होंने काकोरी में ट्रेन से ले जाया जा रहा सरकारी खजाने को लूट लिया। थोड़े ही दिनों बाद 26 सितंबर, 1925 को पकड़ लिए गए और लखनऊ की सेंट्रल जेल की 11 नंबर की बैरक में रखे गए। मुकदमे के नाटक के बाद अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और रौशन सिंह के साथ उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।

फांसी से पहले भावुक हुए ते बिस्मिल 

पंडित बिस्मिल की आंखें डबडबाई गईं और वह मां से लिपटकर भावुक हो गए। मां ने कलेजे पर पत्थर रख लिया औऱ उन्हे उलाझना देती हुई कहती है कि अरे, मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहुत बहादुर है और उसके नाम से अंग्रेज सरकार भी थरथराती है। मुझे पता नहीं था कि वह मौत से इतना डरता है ये पुछनी लगी और कहां कि तुझे ऐसे रोकर ही फांसी पर चढ़ना था तो तूने क्रांति की राह चुनी ही क्यों? तब तो तुझे इस रास्ते पर कदम ही नहीं रखना चाहिए था।' इसके बाद 'बिस्मिल' ने अपनी आंखें पोंछ डालीं और कहा था कि यह आंसू मौत के डर से नहीं, तुमसे बिछड़ने के शोक में आए हैं। ये भारत के सच्चे सपूत थे  हालांकि बाद में बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया गया और 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। 

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11 June 2022, 04:39 PM IST

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