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घुंघरुओं का गला घोटकर तवायफों को बनाया सेक्स वर्कर, अंग्रेजों की देन है भारत के Red Light इलाके

Tawaif Meaning: तवायफ़ें प्रदर्शन कला में निपुण थीं और उनके कोठे युवा राजकुमारों और रईसों के लिए सीखने के केंद्र थे. अहंकारी अंग्रेजों ने तवायफों को वेश्या बनाकर तबाह कर दिया.

JBT Desk
Edited By: JBT Desk

Tawaif Meaning: जद्दनबाई का नाम शायद कुछ लोगों ने सुना होगा और कुछ ने नहीं, लेकिन नरगिस का नाम लगभग हर सिनेमा के प्रेमी ने सुना होगा. जद्दनबाई नरगिस की ही मां थीं. जद्दनबाई का जिक्र आज इसलिए आया है कि क्योंकि आज हम तवायफों की शुरुआत और उनके दुखद अंत की बात कर रहे हैं. जद्दनबाई, अपनी अलंकृत, लहराती अनारकली पोशाक में, इलाहाबाद में अपने कोठे पर जब बैठकर गाती थीं तो लोग उनके दीवाने हो जाते थे. 

जद्दनबाई से हुआ इश्क

इलाहाबाद में अपने कोठे में एक मोटे कालीन पर बैठी जद्दनबाई के चारों ओर दीपक टिमटिमा रहे थे और संगीतकार धीरे-धीरे शुरू हो गए. तभी उसकी आवाज की मधुर मधुरता में एक ठुमरी सब कुछ छा गई. जद्दनबाई की कला ने ऐसा जादू बिखेरा कि सुनने वालों में से एक हिंदू युवक जो कि लंदन जाने का प्लान बना रहा था, उसने उनसे शादी का प्रस्ताव दे दिया. उसके लिए जद्दनबाई का मुस्लिम होना ही इकलौती परेशानी नहीं थी, वह एक तवायफ भी थीं, लेकिन लड़के को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. उसने इस्लाम अपना लिया, और शादी करके वहीं रह गया. 

जद्दनबाई
जद्दनबाई

1892 में एक कोठे में तवायफ के घर पैदा हुईं जद्दनबाई ने हिंदी फिल्म उद्योग में पहली महिला संगीतकार और फिल्म निर्माता के रूप में इतिहास रचा. शादी के बाद उन्होंने नरगिस जैसा सितारा दुनिया को दिया. जद्दनबाई के परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानी किसी तरह तवायफ (तवायफ) संस्कृति के सुनहरे दिनों और गिरावट को दर्शाती है. 

तवायफों का असल काम क्या होता था?

इंडिया टुडे के मुताबिक, तवायफ़ों को एक समय संगीत और नृत्य का उस्ताद माना जाता था, और उनके कोठे युवा राजकुमारों और रईसों के लिए अदब और तहज़ीब सीखने के लिए बने थे. लेकिन मुगलों और बंगाल, पंजाब और अवध के क्षेत्रीय राज्यों का पतन तब हुआ जब कोठों पर सूरज डूबने लगा.

अंग्रेज़ सुसंस्कृत तवायफ़ों पर नाराज़ थे और उन्हें नाचने वाली लड़कियां कहकर नकार देते थे. अफसोस की बात ये है कि भारतीय इतने लचीले थे कि उन्हें कोठों में सिर्फ अय्याशी ही दिखती थी. फिर पंजाब में सुधारवादी आंदोलन को शुरू हो गया.

हीरामंडी
हीरामंडी

हिंदू फिल्मों ने कोठों को कैसे दिखाया?

पुराने समय में तवायफों का काम होता था अदब और तहज़ीब सिखाना. लेकिन हिंदी फिल्मों ने कोठों को वेश्यालय और तवायफों को साधारण यौनकर्मी बनाकर पेश किया. जापान में गीशा परंपरा की तरह, तवायफों ने पेशेवर रूप से शायरी और ग़ज़लों के साथ अपने मेहमानों का मनोरंजन किया. विशेषज्ञों का कहना है कि सेक्स अक्सर केजुअल होता था और जो जरूरी नहीं था, ज्यादातर बड़ी तवायफें अपने सबसे अच्छे प्रेमी में से ही एक को चुनती थीं. जिसको हीरामंडी में साहब का दर्जा दिया गया है. 

हालांकि, समय के साथ तवायफों की संस्कृति खत्म हो गई और संगीत से वंचित होकर, उनके इलाके देह व्यापार के वर्जित क्षेत्रों में बदल गए. गलीचे ख़राब हो गए और इसके बाद किसी जद्दनबाई ने गाना नहीं गाया.

तवायफ के किरदार में रेखा
तवायफ के किरदार में रेखा

कोठों पर अंग्रेजों ने मचाई तबाही

लखनऊ के कैसर बाग का एक कोठा जहां पर हमेशा घुंघरुओं की आवाज़ आती थी. एक दिन वहां पर ब्रिटिश सैनिकों के बूटों की आवाज़ से जाग उठा. यह 1857 था और अंग्रेजों ने कंपनी की बैरक से शुरू हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को कुचल दिया था, और इसके आक्रोश में उन्होंने लूटपाट मचाई. 

लखनऊ के कैसर बाग के "महिला अपार्टमेंट" में से एक से अंग्रेजों द्वारा बरामद वस्तुओं की लंबी लिस्ट थी जिसमें कीमती पत्थरों से जड़े सोने और चांदी के आभूषण, कढ़ाई वाली कश्मीरी ऊन और ब्रोकेड शॉल, रत्नजड़ित टोपी और जूते, चांदी के कटलरी और जेड गोबल शामिल थे. 

Tawaif
 

हजारों करोड़ रुपये की लूट 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लेखिका और अकादमिक वीना तलवार ओल्डेनबर्ग ने अपने पेपर, लाइफस्टाइल एज रेसिस्टेंस: द केस ऑफ द केस में लिखा है कि कोठा ने लखनऊ के आखिरी नवाब, वाजिद अली शाह की पत्नियों की मेजबानी की थी और अंग्रेजों द्वारा लूटी गई कीमती वस्तुओं की कीमत लगभग 40 लाख रुपये थी. आज के मूल्य पर, लूट कम से कम कुछ हज़ार करोड़ रुपये की होती.

कोठों पर मिली बेशुमार दौलत

यूं तो अंग्रेज भारत को लूटने के इरादे से निकले थे, लेकिन वो कोठों पर सिर्फ लोगों की तलाश में जाते थे. क्योंकि स्वतंत्रता सैनानियों ने इन कोठों को अपने छुपने का अड्डा बना लिया था. कोठों पर इस कदर खजाना मिलने से आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके पास कितना पैसा रहा होगा. लखनऊ की ब्रिटिश घेराबंदी के साथ, तवायफों और उनके कोठों ने अपनी महिमा को धूमिल होते देखा. यह सिर्फ लखनऊ ही नहीं था, अलग-अलग समय में दिल्ली, आगरा और लाहौर जैसे अन्य शहरों में भी यही कहानी थी.

धनी लोगों के बिना, कोठे, जो कभी संगीत और नृत्य के जीवंत केंद्र थे, धीरे-धीरे बदनाम होते गए. आज उपमहाद्वीप के लाल बाज़ार (रेड-लाइट डिस्ट्रिक्ट) इसी के दुखद अंत का नतीजा है, जगह जगह शहरों में ये एरिया ब्रिटिश राज की ही एक देन है. 

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19 May 2024, 01:18 PM IST

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