धारा 66 ए के तहत मुकदमें क्यों?

राज्यों की मनमानी के खिलापफ सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब धारा 66 ए असंवैधानिक है तो फिर इस धारा के तहत केस दर्ज कैसे हो रहे हैं, यह समझ से परे है।

Janbhawana Times
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राज्यों की मनमानी के खिलापफ सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जब धारा 66 ए असंवैधानिक है तो फिर इस धारा के तहत केस दर्ज कैसे हो रहे हैं, यह समझ से परे है। वर्ष 2015 में ही यह धारा रद्द की जा चुकी है। आईटी एक्ट 66 ए के तहत इंटरनेट मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद की सजा और जुर्माने का प्रावधान था।

प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मंगलवार को कहा कि हैरानी की बात है अदालत द्वारा धारा 66 ए रद्द किए जाने के बाद भी राज्यों द्वारा इसके तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं। नाराज शीर्ष अदालत ने धारा 66 ए के तहत मामला दर्ज करने वाले राज्यों के मुख्य सचिव को स्पष्ट कहा है कि वे तीन हफ्तों के भीतर सभी मामले वापस लें। इस मामले में तीन हफ्ते बाद सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी कहा है कि वह राज्यों से इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहे।

शीर्ष न्यायालय ने सभी राज्यों और हाईकोर्ट को नोटिस भी जारी किया है। इसके दुरुपयोग को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी देश के विभिन्न राज्यों में मामले दर्ज किए गए हैं। आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में इस प्रावधान के तहत 40 मामले अदालतों में लंबित हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 145 मामलों पर राज्य मशीनरी ने संज्ञान लिया है और 113 मामले अदालत में लंबित हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साल 5 जुलाई 2021 को शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह समझ से परे है कि आईटी एक्ट की धारा 66ए हटाने के बाद भी कई राज्यों में लोगों पर केस दर्ज हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि राज्य सरकारें शीर्ष अदालत के आदेश को गंभीरता से नहीं ले रही हैं अथवा अपनी मनमर्जी चलाने की कोशिश हो रही है। देश में कानून का राज्य है और यह सब पर लागू होना चाहिए।

धारा 66 ए के तहत पुलिस को अधिकार था कि वह कथित तौर पर आपत्तिजनक कंटेट इंटरनेट/सोशल मीडिया पर डालने वालों को गिरफ्तार कर सकती थी। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कानून की यह धारा अभिव्यक्ित के अधिकार का उल्लंघन करती है। एक्ट के प्रावधान की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। कोई भी कंटेट किसी के लिए आपत्तिजनक होगा, दूसरे के लिए नहीं। जाहिर है ऐसे में कोई भी शख्स इंटरनेट पर कुछ पोस्ट करने से डरेगा। राज्य सरकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नितांत आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि कानून का राज्य स्थापित रहे और जनसामान्य में कानून को लेकर विश्वास का माहौल बने।

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08 September 2022, 01:45 PM IST

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