नारी स्वयं एक शक्ति ही नहीं अपितु एक पथ प्रदर्शक भी
भारत देश आर्यों का देश माना जाता है, आर्य अर्थात श्रेष्ठतम प्राणी, आर्य संस्कृति का मूल है सदाचार का पालन आर्य नर और नारी इसी गुण के कारण सूर और सति कहलाते हैं। सूर का अर्थ है अजेय योद्धा और ईश्वर ने आर्य नारी को ऐसे अप्रतिम गुणों के साथ उत्पन्न किया है जो अपने इन महान गुणों से इस सृष्टि पर उपकार करती आई है।
भारत देश आर्यों का देश माना जाता है, आर्य अर्थात श्रेष्ठतम प्राणी, आर्य संस्कृति का मूल है सदाचार का पालन आर्य नर और नारी इसी गुण के कारण सूर और सति कहलाते हैं। सूर का अर्थ है अजेय योद्धा और ईश्वर ने आर्य नारी को ऐसे अप्रतिम गुणों के साथ उत्पन्न किया है जो अपने इन महान गुणों से इस सृष्टि पर उपकार करती आई है। सम्पूर्ण धरातल के मानस पटल पर नारी को सदैव देवतुल्य माना गया है और नारी भी इस तथ्य को सिद्ध करती आई है। गार्गी- याज्ञवल्क्य संवाद इसका अनुपम उदाहरण है। आदिशंकराचार्य ने भी अपने गीतकाव्य सौन्दर्य लहरी में नारी के नेतृत्व शैली एवं शक्ति की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि शिव शक्ति के साथ हों तो शिव में भी स्फुरण की क्षमता विद्यमान रहती है अन्यथा शिव भी शव ही रह जाते हैं।
किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए नारी शक्ति का विशेष महत्व है नारी स्वयं एक शक्ति ही नहीं अपितु एक पथ प्रदर्शक भी है जिसमें नेतृत्व की अपार क्षमता देखने को मिलती है वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय नारी ने अपनी बुद्धि और शक्ति का परिचय दिया है। जहां लोपामुद्रा ऋग्वेद की मंत्रद्रष्टा थीं, वहीं गार्गी ने अपनी प्रतिभा, बौद्धिकता और ज्ञान का परिचय दिया। मध्य काल में जहां एक ओर मीराबाई ने अपनी अस्मिता को महत्व देकर रूिढ़वादी समाज को चुनौती दी तो वहीं आधुनिक समाज में नारी शक्ति की अनुभूति नेता जी सुभाषचंद्रबोस की स्त्री सेना में हुई। स्त्री की इसी नेतृत्व क्षमता का परिचय जयशंकर प्रसाद की कामायनी में मिलता है – मनु का पथ अवलोकित करती/इड़ा अग्नि ज्वाला सी। यह इड़ा का चरित्र आज की नारी का प्रतिनिधत्व करता है जिसमें सामंती मानसिकता को चुनौती देने की क्षमता है। इसी प्रकार महादेवी वर्मा की लेखनी में भी नारी की प्रतिबद्धता देखने को मिलती है।
वर्तमान समय की बात करें तो गुंजन सक्सेना, पी.वी.सिन्धु, गीता फोगाट, सायना नेहवाल, साक्षी मालिक, मैरीकाम, मीराबाई चानू आदि अनेक नाम हमारे समक्ष हैं जिन्होंने रूिढ़वादी भारतीय समाज की समस्त चुनौतियां स्वीकार की और सम्पूर्ण विश्व में अपने प्रदर्शन से भारत को गौरवान्वित किया परन्तु वर्तमान भारतीय परिवेश में महिलाओं की स्थिति घुमावदार चक्रव्यूह की तरह नजर आती है कभी उसे शिखर पर वैठाकर देवी बना दिया जाता है तो कभी उसे दासी समझा जाता है। सुविधानुसार महिलाओं की स्थिति पेंडुलम की भांति इधर उधर डोलती रहती है पर सच्चाई तो यह है कि महिलायें समाज की आधारशिला होती हैं। महिलाओं की इसी स्थिति में सुधार का प्रयास ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ाया गया कदम है, परन्तु विडम्बना यह है कि जहाँ हम सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हैं। वहीं कुछ लोग इसकी आलोचना से बाज नहीं आते हैं। लेकिन इससे महिलाओं की प्रगति में असर नहीं पड़ता है।