अब विदेश से देशद्रोह नहीं चलेगा, NIA की कुर्की ने अमेरिका में बैठे ISI नेटवर्क को साफ संदेश दे दिया
डॉ. फई की संपत्ति कुर्क करने का आदेश केवल कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि उस पूरे देशद्रोही तंत्र पर सीधा वार है जो विदेश में बैठकर भारत को चुनौती देता रहा।

NIA की स्पेशल कोर्ट का आदेश साधारण संपत्ति जब्ती नहीं माना जा रहा। यह उस सोच पर हमला है जिसमें विदेश में बैठे लोग भारत के खिलाफ बोलते रहे और कश्मीर की जमीन को सुरक्षित पूंजी मानते रहे। वर्षों तक यह इकोसिस्टम यही मानता रहा कि बयान बाहर से होंगे और संपत्ति देश के भीतर सुरक्षित रहेगी। अदालत के फैसले ने इस भ्रम को तोड़ दिया है। यह संदेश साफ करता है कि भारत विरोध की कीमत अब जड़ों से चुकानी होगी।
NIA कोर्ट ने क्या बड़ा फैसला सुनाया?
जम्मू-कश्मीर में National Investigation Agency की स्पेशल कोर्ट ने अमेरिका में रह रहे कश्मीरी लॉबिस्ट Ghulam Nabi Shah उर्फ डॉ. फई की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दिया। अदालत ने बडगाम जिले के वाडवान और चट्टाबुघ गांवों में स्थित 1.5 कनाल से अधिक जमीन जब्त करने के निर्देश दिए। जिला प्रशासन को तुरंत कब्जा लेने को कहा गया है। यह फैसला देश विरोधी गतिविधियों के मामलों में सख्त रुख को दर्शाता है।
कितनी जमीन और किन इलाकों से छीनी गई?
अदालत के आदेश के अनुसार वाडवान गांव में एक कनाल दो मरला और चट्टाबुघ गांव में ग्यारह मरला भूमि कुर्क की जाएगी। कुल क्षेत्रफल लगभग 8,100 वर्ग फुट से अधिक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कब्जे से पहले जमीन की सही पहचान और सीमांकन जरूरी होगा। इसके लिए राजस्व और पुलिस अधिकारियों की सहायता ली जाएगी। पूरी प्रक्रिया कानून के तहत और समयबद्ध तरीके से पूरी की जाएगी।
संपत्ति कुर्क करने का कानूनी आधार क्या है?
सहायक लोक अभियोजक ने अदालत को बताया कि डॉ. फई को पहले ही फरार घोषित किया जा चुका है। वर्ष 2020 में उसके खिलाफ UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने उसे पेश होने के लिए 30 दिन का नोटिस जारी किया था, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। कानून के अनुसार फरार आरोपी की संपत्ति कुर्क की जा सकती है। इसी प्रावधान के तहत यह सख्त आदेश पारित हुआ।
डॉ. फई पर एजेंसियों की नजर क्यों रही?
डॉ. फई मूल रूप से बडगाम जिले का रहने वाला है। जांच एजेंसियों के अनुसार वह प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का समर्थक रहा है। उसे हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन का करीबी सहयोगी माना जाता है। उस पर भारत में आतंकवादी संगठनों को वैचारिक और आर्थिक समर्थन देने के आरोप हैं। यही वजह है कि वह लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर रहा।
अमेरिका में ISI कनेक्शन कैसे बेनकाब हुआ?
डॉ. फई वॉशिंगटन स्थित कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल का प्रमुख चेहरा था। वह इसे मानवाधिकार मंच के रूप में पेश करता रहा। लेकिन 2011 में FBI जांच में खुलासा हुआ कि यह संगठन Inter-Services Intelligence के इशारे पर काम कर रहा था। अमेरिकी एजेंसियों ने साबित किया कि फई ने दो दशकों में ISI से कम से कम 35 लाख डॉलर लिए। इन पैसों का इस्तेमाल अमेरिका की कश्मीर नीति को प्रभावित करने में किया गया।
इस फैसले का सबसे बड़ा रणनीतिक संदेश क्या है?
यह कार्रवाई बताती है कि अब भारत विरोध केवल बयानबाज़ी नहीं रह गया है। जो लोग विदेश में बैठकर भारत को निशाना बनाएंगे, उनकी देश के भीतर मौजूद जड़ें भी सुरक्षित नहीं रहेंगी। फरार आरोपियों की संपत्ति अब ढाल नहीं बनेगी। जांच एजेंसियां आतंकी और देशद्रोही नेटवर्क की आर्थिक रीढ़ तोड़ने की दिशा में आगे बढ़ चुकी हैं। संदेश बिल्कुल साफ है—भारत के खिलाफ काम करोगे, तो भारत में तुम्हारा कुछ भी सुरक्षित नहीं रहेगा।


