ऑफिस में हिजाब या बुर्का पर रोक? नुसरत परवीन की जॉइनिंग से फिर गरमाई बहस
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर हिजाब से जुड़े विवाद के केंद्र में हैं। हाल ही में एक वीडियो सामने आया है जिसमें नौकरी के अपॉइंटमेंट लेटर बांटने के समारोह के दौरान मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन के चेहरे से हिजाब हटाने की कोशिश की जा रही है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में कड़ी प्रतिक्रियाएं हुई हैं।

नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर हिजाब को लेकर विवादों के केंद्र में हैं। हाल ही में नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम के दौरान मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन के चेहरे से हिजाब हटाने की कोशिश का वीडियो सामने आने के बाद सियासी और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री के व्यवहार और नजरिए पर सवाल उठे, वहीं हिजाब को लेकर पुरानी बहस भी दोबारा तेज हो गई।
अब डॉक्टर नुसरत परवीन अपनी सरकारी नौकरी जॉइन करने जा रही हैं। ऐसे में यह सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ है कि क्या सरकारी नौकरी में हिजाब या बुर्का पहनने पर कोई पाबंदी है? क्या सरकार किसी कर्मचारी को धार्मिक पहनावा पहनने से रोक सकती है? आइए जानते हैं इस पूरे मुद्दे से जुड़े संवैधानिक प्रावधान और कानूनी स्थिति।
संविधान क्या कहता है?
भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। संविधान के आर्टिकल 25(1) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की आज़ादी है। इसमें धार्मिक विश्वास के अनुसार पहनावा भी शामिल है। हालांकि, इस स्वतंत्रता के साथ कुछ सीमाएं भी तय की गई हैं, ताकि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य प्रभावित न हों।
सरकारी नौकरी में हिजाब को लेकर नियम
सरकारी संस्थानों में हिजाब या बुर्का पहनने को लेकर कोई स्पष्ट प्रतिबंधात्मक नियम मौजूद नहीं है। सभी धर्मों के कर्मचारियों को अपनी परंपरा और आस्था के अनुसार पहनावा अपनाने की अनुमति है। यह नियम सिर्फ हिजाब तक सीमित नहीं है, बल्कि सिख धर्म की पगड़ी, हिंदू धर्म के तिलक या बिंदी जैसे धार्मिक चिन्हों पर भी समान रूप से लागू होता है। ऐसे में डॉक्टर नुसरत परवीन हिजाब पहनकर अपनी ड्यूटी जॉइन कर सकती हैं और संविधान उन्हें यह अधिकार देता है।
धार्मिक परंपरा और अनुशासन का टकराव
धार्मिक पहचान और संस्थागत अनुशासन का मुद्दा कई बार विवाद का कारण बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले अदालतों तक पहुंचे हैं, जिनमें अलग-अलग फैसले सुनाए गए। ऐसा ही एक मामला भारतीय वायुसेना से जुड़े एक मुस्लिम जवान का था, जिसे दाढ़ी रखने के कारण सेवा से हटा दिया गया था।
जवान का तर्क था कि मुस्लिम होने के नाते दाढ़ी रखना उसकी धार्मिक अनिवार्यता है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने वायुसेना के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि सेना में एकरूपता और अनुशासन बनाए रखना जरूरी है और यह धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं माना जाएगा।
हिजाब विवाद और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
हिजाब को लेकर विवाद भारत में नया नहीं है। इससे पहले कर्नाटक, केरल और मुंबई जैसे राज्यों में भी इस मुद्दे पर बहस और कानूनी लड़ाई देखने को मिल चुकी है। कई हाईकोर्ट के फैसलों के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।
शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि यदि सिर्फ हिजाब या बुर्का पर ही रोक लगाई जाती है तो बिंदी, तिलक और अन्य धार्मिक चिन्हों पर क्या रुख होगा? कोर्ट ने यह भी कहा था कि धार्मिक पहचान सिर्फ पहनावे से नहीं, बल्कि नाम से भी जाहिर हो सकती है, ऐसे में इस तर्क का समाधान क्या होगा।
हालांकि, स्कूल और कॉलेजों में हिजाब-बुर्के के इस्तेमाल को लेकर बहस आज भी जारी है और समय-समय पर यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ जाता है।


