भारत-पाकिस्तान में तनाव चरम पर, क्या जंग के मुहाने पर हैं दोनों देश? अगर युद्ध हुआ तो कौन करेगा ऐलान?
भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव ने युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं, लेकिन भारत में युद्ध की कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई है.

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम स्थिति पर है. गुरुवार रात पाकिस्तान ने जम्मू, पठानकोट और उधमपुर स्थित भारतीय सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल से हमला करने की कोशिश की, जिसे भारतीय सशस्त्र बलों ने सतर्कता से नाकाम कर दिया. इसके जवाब में भारत ने इस्लामाबाद, लाहौर और सियालकोट में निर्णायक कार्रवाई की, जिससे ये सवाल खड़ा हुआ है-क्या दोनों देश अब युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?
घटना के बाद जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के कई शहरों में ब्लैकआउट देखने को मिला. अधिकारियों ने नागरिकों को सतर्कता बरतने की सलाह दी और उनकी सुरक्षा का आश्वासन भी दिया. इसी बीच, पाकिस्तान की ओर से नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया, जिसका मुंहतोड़ जवाब भारतीय सेनाओं ने दिया. इन घटनाओं से पहले भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 9 आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया, जो पहलगाम में हुए आतंकी हमले का बदला था.
औपचारिक रूप से युद्ध हुआ है?
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया घटनाएं किसी युद्ध जैसी प्रतीत होती हैं, लेकिन भारत में युद्ध की औपचारिक घोषणा का एक अलग संवैधानिक तरीका है. भारत में युद्ध की घोषणा करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है, लेकिन ये फैसला प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर लिया जाता है.
भारत में युद्ध की घोषणा कैसे होती है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 53(2) के अनुसार, राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं. हालांकि, वे युद्ध या शांति की घोषणा केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकते हैं. अनुच्छेद 74 स्पष्ट करता है कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है.
केंद्रीय मंत्रिमंडल की भूमिका
युद्ध की घोषणा का वास्तविक फैसला प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद द्वारा लिया जाता है. इस निर्णय प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इसके अलावा, सैन्य प्रमुखों, खुफिया एजेंसियों और कूटनीतिक माध्यमों से सलाह ली जाती है.
संसद की भूमिका
हालांकि संविधान में ये अनिवार्य नहीं है कि संसद युद्ध की घोषणा करे या उसकी पूर्व मंजूरी दे, लेकिन संसद इस पूरे मामले की निगरानी रखती है. रक्षा बजट की स्वीकृति, सैन्य कार्रवाई पर चर्चा और सरकार की जवाबदेही तय करने में संसद की भूमिका अहम रहती है. लंबे सैन्य अभियान की स्थिति में सरकार को संसद को जानकारी देना और राजनीतिक सहमति लेना अपेक्षित होता है.
युद्ध से जुड़ी संवैधानिक प्रक्रिया
अगर सरकार युद्ध जैसी स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करना चाहती है, तो अनुच्छेद 352 के तहत मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को लिखित सिफारिश भेजती है. इसके बाद राष्ट्रपति ‘युद्ध’ या ‘बाहरी आक्रोश’ के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कर सकते हैं. ये उद्घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाती है और इसे एक महीने के भीतर विशेष बहुमत से पारित करना होता है.
आपातकाल की स्वीकृति के बाद ये 6 महीने तक लागू रहता है और संसद की स्वीकृति से इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. राष्ट्रपति किसी भी समय आपातकाल की समाप्ति की घोषणा कर सकते हैं. 44वें संशोधन के अनुसार, यदि लोकसभा इसके विरोध में प्रस्ताव पारित करती है तो राष्ट्रपति को आपातकाल समाप्त करना अनिवार्य होगा.
अब तक कभी नहीं हुई युद्ध की औपचारिक घोषणा
भारतीय संविधान में युद्ध की घोषणा से संबंधित कोई विशेष अनुच्छेद नहीं है. अब तक हुए सभी सैन्य संघर्षों में भारत ने कभी भी औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा नहीं की है.
1947-48 भारत-पाक युद्ध: कश्मीर पर कबायली हमले के बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई की, लेकिन कोई युद्ध घोषणा नहीं हुई.
1962 भारत-चीन युद्ध: चीन के अचानक हमले से युद्ध शुरू हुआ, कोई औपचारिक घोषणा नहीं.
1965 भारत-पाक युद्ध: सीमाई झड़पों से युद्ध छिड़ा, कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई.
1971 भारत-पाक युद्ध: पाकिस्तान के हवाई हमले के बाद भारत ने सैन्य कार्रवाई शुरू की, युद्ध की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई.
1999 कारगिल युद्ध: पाकिस्तान की घुसपैठ के जवाब में ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया गया, लेकिन कोई युद्ध की औपचारिक घोषणा नहीं हुई.