Explainer: बिहार की राजनीति पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कैसा होगा असर, कमंडल या मंडल कौन सी पॉलिटिक्स पड़ेगी भारी?

Ram Mandir: अयोध्या में रामलला की स्थापना करने के लिए महावीर हनुमान के दर्शन करने के लिए आए हैं, उन्होंने कहा कि 500 सालों के लंबे इंतजार के बाद हमारे राम आ रहे हैं. 22 जनवरी 2024 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई है.

Sachin
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Ram Mandir: भारतीय राजनीति में साल 1990 कई मामलों में महत्वपूर्ण था, यहीं वो वक्त था जब देश में पिछड़ों से लेकर हिंदुत्व की पॉलिटिक्स ने अपनी जगह बनाई थी. इस दौरान राम मंदिर को लेकर आंदोलन तेज हुआ था, तब बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के ऑर्डर के बाद गिरफ्तार करवा लिया गया था. इस गिरफ्तारी का श्रेय खुद लालू यादव भी लेते हैं और कहते हैं कि उस वक्त उन्होंने बिहार को सांप्रदायिक ताकतों से बचा लिया था. 

मंडल के बाद अयोध्या ने बनाया अपना वर्चस्व? 

साल 1990 तो मंडल की राजनीति जोड़ पकड़ा था, लेकिन 22 जनवरी को हुए रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का असर बिहार की सड़कों पर भी देखा गया था. हालांकि बिहार उन राज्य में शामिल नहीं हुआ जिन्होंने राज्य में एक अवकाश की घोषणा की थी. बता दें कि पटना में महावीर मंदिर में आमतौर पर मंगलवार और शनिवार को भक्तों की काफी संख्या होती है लेकिन यहां सोमवार को भारी संख्या में लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए आए. मंदिर में दर्शन करने वाले लोगों ने कहा कि वैसे तो हम लोग दर्शन करने के लिए हर हफ्ते आते हैं लेकिन आज 22 जनवरी का दिन हमारे लिए खास है. आज अयोध्या में रामलला की स्थापना होने जा रही है यह काफी हर्षोल्लास कर देने वाला है. 

22 जनवरी ऐतिहासिक दिन है

अयोध्या में रामलला की स्थापना करने के लिए महावीर हनुमान के दर्शन करने के लिए आए हैं, उन्होंने कहा कि 500 सालों के लंबे इंतजार के बाद हमारे राम आ रहे हैं. 22 जनवरी 2024 की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई है. इसी के साथ भाजपा इस बार राम मंदिर के साथ कर्पूरी ठाकुर की जयंती जैसे दो महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर जनता के बीच में जा रही है. कर्पूरी ठाकुर बिहार के जनमानस में समाए हुए हैं, वह अति पिछड़ी जाति से आते थे और बिहार की संख्या में उनकी करीब 36 फीसदी आबादी है. एक तरफ जहां 22 जनवरी को राम मंदिर उद्घाटन और दूसरी तरफ 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती बिहार में राजनीति को कहीं न कहीं प्रभावित करने की कोशिश करेगी. 

ढाई साल मुख्यमंत्री रहने के बाद कर्पूरी का बिहार की जनता में सम्मान 

कर्पूरी ठाकुर अपने दो कार्यकालों में मात्र ढाई साल मुख्यमंत्री और वह बिहार पहले गैर-कांग्रेस सीएम रहे हैं. बेहद कम समय तक मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठने के बाद उनका बिहार की राजनीति में गहरा असर है. 1977 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य की नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू किया था. इसके फैसले के बाद ही कर्पूरी ठाकुर सवर्णों के निशाने पर आ गए थे. वह बिहार के एक मात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे थे जिन्होंने मंडल कमीशन आने से पहले ही बिहार के पिछड़े वर्ग के लोगों को रिजर्वेशन दे दिया था. हालांकि उनके इस फैसले के बाद उनको सवर्णों का विरोध झेलना पड़ा था. लेकिन अब समय बदल गया हर कोई राजनैतिक दल उनको अपने नेता के रूप में दिखाना चाहता है.

कर्पूरी के बाद लालू बिहार के सबसे बड़े नेता 

डीएम दिवाकर मानते हैं कि कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन उनके बाद दूसरे सबसे बड़े नेता लालू प्रसाद यादव है. उनका दलित, पिछड़ों और मुस्लिमों के बीच आज भी एक बहुत बड़ा वोट बैंक है जो आज भी उनको समर्थन करता है और अब बीजेपी उसी को कमजोर करने के लिए बीजेपी अपने नेताओं को छोड़कर दूसरे नेताओं को पकड़ रही है. बीजेपी को यह भी पता है कि बिहार चुनाव में जातीय समीकरण काम करता है. इसलिए उसे साधना भी बहुत जरूरी है. 

मंडल की राजनीति ने किस दल को किया मजबूत 

वर्ष 1970 में मंडल कमीशन ने देश की 52 फीसदी पिछड़ी आबादी को रिजर्वेशन देने की सिफारिश की थी, लेकिन इसकी सिफारिश को हर सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन साल 1990 में तत्कालीन वीपी सिंह की सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू करने का फैसला किया और बिहार में लालू प्रसाद यादव इस सिफारिश को लागू करने के समर्थन करने वाले सबसे बड़े नेता थे. केंद्र सरकार इस फैसला का विरोध पूरे देश में किया गया था. इस दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या के लिए सोमनाथ से रथयात्रा लेकर निकले थे. इसे ही भारत में कमंडल की राजनीति के रूप में जाना जाता है. 

लालू ने आडवाणी को गिरफ्तार कर झारखंड गेस्ट हाउस भेज दिया था

जब एलके आडवाणी यात्रा लेकर अयोध्या के लिए निकले थे तब उन्हें किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें कोई गिरफ्तार कर सके. लेकिन 23 अक्टबूर 1990 में लालू प्रसाद ने उन्हें गिरफ्तार कर झारखंड के दुमका गेस्ट हाउस में नजरबंद करवा दिया था. लेकिन इस यात्रा से बीजेपी को काफी फायदा मिला था. जहां एक तरफ साल 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात्र 2 ही लोकसभा सीट जीत पाई थी. जबकि उसने 224 सीटों पर अपना चुनाव लड़ा था. लेकिन साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 120 सीटों पर जीत दर्ज की थी और साल 1998-99 में केंद्र में अपनी सरकार बना ली थी.   

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24 January 2024, 01:37 PM IST

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