नई संसद के उद्धघाटन को लेकर क्यों छिड़ा है रार ?

देश के नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करेंगे लेकिन अब इस खूबसूरत इमारत को लेकर देश में सियासत गरमा गई है.

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

देश के नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भवन का उद्घाटन करेंगे लेकिन अब इस खूबसूरत इमारत को लेकर देश में सियासत गरमा गई है.विपक्षी पार्टिया पीएम मोदी की आलोचना कर रहे हैं. कुछ विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह के बहिष्कार तक का ऐलान कर दिया है. तो ऐसी क्या वजह है जिसके पीछे संसद भवन का विरोध किया जा रहा है और इसके चलते अलग-अलग राजनेताओं की क्या-क्या प्रतिक्रियाएं सामने आई है वह हम आपको इस वीडियो में बताएंगे लेकिन उससे पहले।


सबसे पहले ये जानते है की ये विवाद शुरू कहा से हुआ. दरअसल 21 मई को राहुल गाँधी ने एक ट्वीट कर लिखा- नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं। जिसके बाद मानों ट्वीट्स की झड़ी हो लग गयी।  एक के बाद एक विपक्ष के  नेताओं ने इसे मोदी का पर्सनल प्रोजेक्ट बताना शुरू कर दिया. 

वरिष्ठ सांसद और राज्यसभा में कांग्रेस के पूर्व उप नेता आनंद शर्मा ने कहा कि- प्रधानमंत्री मोदी के लिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा. सवाल यह उठता है कि क्या इसकी जरूरत है. किसी भी बड़े लोकतंत्र ने ऐसा नहीं किया है. दरअसल लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने 18 मई को पीएम को नए भवन का उद्घाटन करने का निमंत्रण दिया था. उन्होंने कहा, 'जब नई संसद की नींव रखी गई तब भी राष्ट्रपति को दूर रखा गया और अब नए संसद भवन के उद्घाटन से भी राष्ट्रपति को दूर रखा जा रहा है. यह न्यायोचित नहीं है. प्रधानमंत्री जी को राष्ट्रपति जी से आग्रह करके उन्हें उद्घाटन में बुलाना चाहिए.' कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्वीट किया- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर आमंत्रित नहीं किया गया, ना ही अब राष्ट्रपति मुर्मू को उद्घाटन के मौके पर आमंत्रित किया गया है. केवल राष्ट्रपति ही सरकार, विपक्ष और नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती हैं, वो भारत की प्रथम नागरिक हैं. नए संसद भवन का राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन सरकार के लोकतांत्रिक मूल्य और संवैधानिक मर्यादा को प्रदर्शित करेगा.

वहीँ संजय राउत ने नए संसद भवन को बेफिजूल बताते हुए कहा कि सबसे पहले हमने ही सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े किए थे. हमने कहा था कि जब देश की आर्थिक स्थिति खराब है तो देश को ऐसे प्रोजेक्ट की जरूरत नहीं थी. इस प्रोजेक्ट को सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा के लिए बनाया गया. आज का संसद भवन अभी भी 100 साल तक चल सकता है. यह संसद भवन ऐतिहासिक है और इस संसद भवन से आरएसएस और बीजेपी का कोई रिश्ता नहीं है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया था- संविधान के अनुच्छेद 60 और 111 यह स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्रपति संसद का प्रमुख होता है और इसलिए उसे नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए. जहा बीजेपी पर निशाना साधने पर कांग्रेस पीछे नहीं रही वही आप पार्टी के नेताओं ने भी भी संसद के मुद्दे पर बीजेपी को घेरा। 


AAP ने आरोप लगाया कि संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को न बुलाकर बीजेपी ने आदिवासियों और पिछले समुदायों का अपमान किया है. AAP सांसद संजय सिंह ने कहा कि बीजेपी दलित, पिछड़ों और आदिवासियों की जन्मजात विरोधी है. उन्होंने ट्वीट किया BJP दलितों पिछड़ों आदिवासियो की जन्मजात विरोधी है. महामहिम के अपमान की दूसरी घटना पहला अपमान प्रभु श्री राम के मंदिर शिलान्यास में श्री रामनाथ कोविंद जी को नहीं बुलाया. दूसरा अपमान संसद भवन के उदघाटन समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को न बुलाना.

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद का उद्घाटन क्यों करना चाहिए? वह कार्यपालिका के प्रमुख हैं, विधायिका के नहीं. हमारे पास शक्तियों बंटवारा है. माननीय लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति उद्घाटन कर सकते हैं. यह जनता के पैसे से बना है, पीएम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं, जैसे उनके 'दोस्तों' ने अपने निजी फंड से इसे स्पांसर किया है?

टीएमसी सांसद सौगत राय ने कहा, हम नए संसद भवन का उद्घाटन करने वाले पीएम के विरोध में हैं. राष्ट्रपति को इसका उद्घाटन करना चाहिए.
राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा,‘क्या ऐसा नहीं होना चाहिए था कि राष्ट्रपति महोदया संसद के नए भवन का

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया- जब नई संसद भवन की आधारशिला रखी जा रही थी तो पीएम मोदी ने राष्ट्रपति को दरकिनार किया. लेकिन उद्घाटन समारोह में भी महामहिम राष्ट्रपति को नजरअंदाज करना अस्वीकार्य है.

• कांग्रेस का कहना है कि 28 मई को हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है, इसी दिन नए संसद भवन का उद्घाटन करना राष्ट्र निर्माताओं का अपमान है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, 'हमारे सभी राष्ट्र निर्माताओं का अपमान. गांधी, नेहरू, पटेल, बोस आदि को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है. डॉक्टर आंबेडकर का भी तिरस्कार है. 

• तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय के एक ट्वीट को रि-ट्वीट करते हुए कहा- 'संसदीय लोकतंत्र को भारतीय संविधान भेंट किए जाने को इस साल 26 नवंबर को 74 वर्ष हो जाएंगे. इस दिन संसद भवन का उद्घाटन किया जाना उचित रहता लेकिन 28 मई को सावरकर की जयंती है- यह कितना प्रासंगिक है?'

• टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि उद्घाटन कार्यक्रम या तो स्वतंत्रता दिवस, या गणतंत्र दिवस, या गांधी जयंती पर आयोजित किया जाना चाहिए था न कि वीडी सावरकर की जयंती पर.
बीजेपी ने किया पलटवार

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा- कांग्रेस की आदत है कि जहां नहीं होता हैं, वहां विवाद खड़ा कर देती है. राष्ट्रपति देश के प्रमुख होते तो वहीं प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं, सरकार की ओर से संसद का नेतृत्व करते हैं, जिनकी नीतियां कानून के रूप में लागू होती हैं. राष्ट्रपति किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं जबकि पीएम हैं. कुछ लोगों को राजनीतिक रोटियां सेकने की आदत पड़ गई है.' अब नए संसद पर बढ़ती तल्ख़ टिप्पड़ी को देखते हुए अमित शाह ने खुद आगे बढ़कर प्रेस कांफ्रेंस की और कहा- उद्घाटन समारोह में एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी जिसके पीछे युगों से जुड़ी परंपरा है. इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है जिसका सीधा मतलब संपदा से संपन्न होता है. गृह मंत्री ने कहा, 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी. इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी. ये सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था. इसकी जानकारी पीएम मोदी को मिली तो गहन जांच करवाई गई. फिर निर्णय लिया गया कि इसे देश के सामने रखना चाहिए. इसके लिए नए संसद भवन के लोकार्पण के दिन को चुना गया.

कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने उद्घाटन की तारीख पर भी सवाल उठाए हैं. दरअसल 28 मई को वीर सावरकर की जयंती है. उनका जन्म 28 मई 1883 को हुआ था. इस साल 28 मई को उनकी 140वीं जयंती मनाई जाएगी. अब यह देखने वाली बात होगी कि क्या यह महज संयोग है कि नए संसद भवन का उद्घाटन वीर सावरकर की जयंती पर हो रहा है या फिर यह सबकुछ प्रीप्लौंड है.

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