मुनीर के इशारे पर मीडिया को बनाया हथियार अल जजीरा विरोध ने पाकिस्तान कतर रिश्तों को डाला संकट में
लीक दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान की सेना ने अल जजीरा और कतर के खिलाफ मीडिया अभियान चलवाया, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव गहराने के संकेत मिले हैं।

पाकिस्तान में मीडिया की आज़ादी पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। लीक दस्तावेजों के मुताबिक पाकिस्तान की सेना ने देश के मीडिया संस्थानों को कतर और अल जजीरा के खिलाफ अभियान चलाने को कहा। यह निर्देश सीधे सैन्य नेतृत्व से जुड़े बताए जा रहे हैं। रिपोर्टों में कहा गया है कि मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म को एक तय नैरेटिव पर काम करने को कहा गया। मकसद अल जजीरा की रिपोर्टिंग को पक्षपाती बताना था। इस अभियान का असर पाकिस्तान की विदेश नीति पर भी पड़ता दिख रहा है। मामला अब सिर्फ मीडिया तक सीमित नहीं रहा।
अल जजीरा से पाकिस्तान क्यों नाराज़?
पाकिस्तानी सेना का मानना है कि Al Jazeera ने बीते एक साल में पाकिस्तान की छवि खराब की। सेना के मुताबिक चैनल ने पाकिस्तान को राजनीतिक रूप से अस्थिर और उग्रवाद से जुड़ा देश दिखाया। अफगान शांति प्रक्रिया में भी पाकिस्तान की भूमिका को कमजोर बताया गया। लीक दस्तावेजों में कहा गया है कि यह रिपोर्टिंग निष्पक्ष नहीं थी। इसे कतर की विदेश नीति से जुड़ा बताया गया। इसी नाराज़गी ने मीडिया अभियान का रास्ता खोला।
तालिबान कवरेज पर क्या आपत्ति?
दस्तावेज बताते हैं कि पाकिस्तान की सेना तालिबान से जुड़ी कवरेज से भी असहज थी। मीडिया को निर्देश दिया गया कि तालिबान शासन को अस्थिर और अविश्वसनीय बताया जाए। किसी भी तरह की सकारात्मक रिपोर्टिंग से बचने को कहा गया। यह भी कहा गया कि अफगानिस्तान में स्थिरता का श्रेय तालिबान को न दिया जाए। पाकिस्तान चाहता था कि उसकी भूमिका को केंद्र में रखा जाए। इस रणनीति का मकसद अंतरराष्ट्रीय राय को प्रभावित करना था। मीडिया से आक्रामक रुख अपनाने को कहा गया।
कतर से रिश्ते क्यों बिगड़ सकते हैं?
कतर लंबे समय से तालिबान और पश्चिमी देशों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है। दोहा में कई अहम बातचीत हुई हैं। तालिबान के कई नेता आज भी कतर में रहते हैं। पाकिस्तान का मानना है कि इस प्रक्रिया में उसकी भूमिका को जानबूझकर कमतर दिखाया गया। लीक दस्तावेजों में कहा गया है कि अल जजीरा की संपादकीय लाइन कतर की कूटनीति से मेल खाती है। इससे कतर और पाकिस्तान के बीच अविश्वास बढ़ा। यही वजह है कि रिश्तों में दरार की आशंका जताई जा रही है।
मुनीर की भूमिका क्या बताती है?
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर पर इस पूरे अभियान की कमान संभालने का आरोप है। रिपोर्टों के मुताबिक उन्हीं के इशारे पर मीडिया को दिशा दी गई। उनका मानना था कि पाकिस्तान की छवि को कमजोर करने वाली हर बात का जवाब दिया जाना चाहिए। इस सोच ने मीडिया अभियान को जन्म दिया। कूटनीति की जगह टकराव का रास्ता चुना गया। इससे सेना की नीति पर भी सवाल उठे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कदम जोखिम भरा माना जा रहा है।
पाकिस्तान की छवि पर असर?
इस खुलासे के बाद पाकिस्तान की छवि और कमजोर होती दिख रही है। मीडिया को नियंत्रित करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। अब विदेश नीति में भी मीडिया के इस्तेमाल की बात सामने आई है। इससे पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। कतर जैसे अहम साझेदार से तनाव नुकसानदेह हो सकता है। विशेषज्ञ इसे आत्मघाती कदम मान रहे हैं। आने वाले दिनों में इसके कूटनीतिक नतीजे सामने आ सकते हैं।
दक्षिण एशिया की राजनीति बदलेगी?
यह मामला ऐसे वक्त सामने आया है जब कई देश तालिबान से रिश्ते सुधार रहे हैं। भारत और ईरान जैसे देश भी नई रणनीति पर काम कर रहे हैं। कतर खुद को एक अहम मध्यस्थ के तौर पर पेश कर चुका है। ऐसे में पाकिस्तान का यह रवैया उसे अलग-थलग कर सकता है। मीडिया अभियान से भरोसा नहीं बनता। यह खुलासा बताता है कि क्षेत्रीय राजनीति में पर्दे के पीछे क्या चल रहा है। आने वाला समय बताएगा कि पाकिस्तान इस तनाव को कैसे संभालता है।


