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आसिम मुनीर का गेम हुआ ओवर! तालिबान को गले लगा रहे पाकिस्तानी मौलाना, इस्लामाबाद के लिए खड़ी हुई बड़ी मुश्किल

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव बढ़ने वाला है, क्योंकि तालिबान के बड़े नेता अब पाकिस्तान के प्रमुख धार्मिक विद्वानों के करीब आ रहे हैं. उनका यह रवैया आसिम मुनीर के भारी पड़ सकता है.

पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रिश्तों में नया तनाव पैदा करने वाला मोड़ आ गया है. तालिबान के बड़े नेता अब पाकिस्तान के प्रमुख धार्मिक विद्वानों के करीब आ रहे हैं. यह नजदीकी पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है, क्योंकि उलेमा उनकी अफगान नीति की खुली आलोचना कर रहे हैं. 

कराची सम्मेलन में तीखा हमला

23 दिसंबर को कराची के ल्यारी इलाके में बड़ा धार्मिक सम्मेलन हुआ. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI-F) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने यहां पाकिस्तान की अफगानिस्तान नीति पर जोरदार सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान में घुसकर हमला कर सकता है, तो भारत पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को मारने का हक क्यों नहीं रखता?

मौलाना ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और आर्मी चीफ मुनीर की दोहरी नीति पर जमकर निशाना साधा. मुफ्ती तकी उस्मानी जैसे बड़े उलेमा ने भी अफगानिस्तान के साथ सद्भावना की बात कही. 

तालिबान की खुली सराहना

इस सम्मेलन के बाद तालिबान ने पाकिस्तानी उलेमाओं की तारीफ की. तालिबान के अंतरिम गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने 28 दिसंबर को काबुल में एक कार्यक्रम में मौलाना फजलुर रहमान और अन्य विद्वानों का शुक्रिया अदा किया. हक्कानी ने कहा कि पाकिस्तानी उलेमा ने अफगानिस्तान के प्रति अच्छे इरादे और सद्भावना दिखाई है, जिसके लिए वे बहुत आभारी हैं. 

उन्होंने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार के सकारात्मक बयानों का भी जिक्र किया. हक्कानी ने जोर दिया कि अगर दोनों देशों के बीच अच्छी बातचीत और सकारात्मक रिश्ते बनें, तो तालिबान इसका पूरा स्वागत करेगा. 

अफगान विदेश मंत्री का संदेश

तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने भी अलग कार्यक्रम में पाकिस्तानी उलेमाओं की भूमिका की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि कराची सम्मेलन में पाकिस्तान के बड़े मदरसों, यूनिवर्सिटी और धार्मिक पार्टियों के विद्वान इकट्ठा हुए और अपनी सरकार को बेहतरीन सलाह दी.

मुत्ताकी ने उम्मीद जताई कि उलेमा आगे भी शांति, भाईचारा और दोनों देशों की निकटता के लिए काम करते रहेंगे. उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि विद्वानों ने हमेशा सिस्टम और लोगों को सुधारने में भूमिका निभाई है.

पाकिस्तान के लिए बढ़ती मुश्किल

पाकिस्तान लंबे समय से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को अफगानिस्तान में पनाह देने का आरोप लगाता रहा है. इसी वजह से सीमा पर हवाई हमले और झड़पें होती रही हैं. लेकिन अब जब तालिबान और पाकिस्तान के प्रभावशाली उलेमा एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं, तो इस्लामाबाद में चिंता बढ़ गई है. यह नया गठजोड़ सेना की नीतियों पर दबाव डाल सकता है और घरेलू राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है. 

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