मैं तुम्हे आवाज दे दे कर | अंकित काव्यांश

लौट आया हूँ तुम्हारे द्वार से प्रियतम, थक गया था मैं तुम्हे आवाज़ दे दे कर। मोड़ पर वादा तुम्हारा आँख में आँसू लिए

Janbhawana Times
Janbhawana Times

लौट आया हूँ तुम्हारे द्वार से प्रियतम, थक गया था मैं तुम्हे आवाज़ दे दे कर।

मोड़ पर वादा तुम्हारा आँख में आँसू लिए

लौट जाने की विनय करता हुआ व्याकुल मिला।

तब तुम्हारे मौन का रूमाल उसको सौंपकर

कह दिया अब फायदा क्या! क्या शिकायत! क्या गिला! 


रह गया मेरा समर्पण ही कहीं कुछ कम, इसलिए ख़ामोश था शायद तुम्हारा घर।

एक बिन्नी टूटकर जो थी बनी वरदायिनी

आज मुझसे कह रही तुमने मुझे माँगा न था।

बाँध आयीं डोर कच्ची बरगदों ने यह कहा

मावसों पर जो बंधा वह प्यार का धागा न था।


कुल मिलाकर दांव पर हैं आज मेरे भ्रम, हार जाओगी बहुत कुछ जीतकर चौसर।

स्वप्न में भी मांग लो वह भी मिले तुमको सदा

प्रार्थना में मांग बैठा था कभी भगवान से।

आज मेरी प्रार्थना का फल तुम्हें मिल जाएगा

मुक्त कर दूंगा स्वयं को प्यार के अहसान से।


अब सतायेंगे मुझे बस याद के मौसम, और गीतों में तुम्हारे नाम के अक्षर।

calender
30 July 2022, 01:43 PM IST

जरुरी ख़बरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो