शाम होते ही तेरा इन्तज़ार रहता है | बलजीत सिंह मुन्तज़िर

शाम होते ही तेरा इन्तज़ार रहता है । यार ! तू कौनसे दरिया के पार रहता है ।

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शाम होते ही तेरा इन्तज़ार रहता है ।

यार ! तू कौनसे दरिया के पार रहता है ।

 

कोई पूछे तो ढली साँझ के दीये से कभी,

किसलिए उसपे सरे शब निखार रहता है ।

 

उनके साये में रहे प्यार को हमने यूँ जीया,

ज्यों गुलाबों की पनाहों में ख़ार रहता है ।

 

वही समझेगा उम्मीदों का वफ़ा से रिश्ता,

जिसके दिल में सदा परवरदिगार रहता है ।

 

उम्र ठहरे न दिलासों की इसलिए चुप हैं,

ख़ूब नज़दीक वरना ग़मगुसार रहता है ।

 

धूप ढलते ही कई अक़्स उभर आते हैं,

किसका यादों पे भला इख़्तियार रहता है ।

 

लम्हे-ओ-वस्ल में जज़्बात निहाँ कैसे रहें,

दो निगाहों से सभी आशकार रहता है ।

 

कौन रोकेगा उन आँखों से छलकते ग़म को,

उसके दिल में तो कोई आबशार रहता है ।

 

प्यास की सरज़मीं-सी हो गई हयात उसकी,

अब तो ख़्वाबों में भी बस रेगज़ार रहता है ।

 

यूँ दिलशाद फ़लक पर हैं बहुत से तारे

एक सैयार मगर बेकरार रहता है ।।

calender
30 July 2022, 05:25 PM IST

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