Bairam Khan:अकबर को पढ़ाने लिखाने वाले बैरम खां के जीवन पर एक नज़र, लोगों के सिरों की बनाता था मीनार
Bairam Khan:इतिहास के पन्नों में बैरम खां का नाम मुगल सम्राट हुमायूं और उनके बेटे अकबर के साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दर्ज है. तो चलिए आज उनके बारे में कुछ रोचक बाते जानते हैं.
Bairam Khan: तुर्किस्तान से भारत आए बैरम खां 16 वर्ष की उम्र से ही मुगल साम्राज्य की सेवा में लग गए थे. हुमायूं की मौत के बाद अकबर की ताजपोशी और दिल्ली में वापस कब्जा करने के लिए उनका नाम इतिहास के पन्नों में बड़े सम्मान के साथ दर्ज है. वह हुमायूं के परम मित्र और सहयोगी थे.1556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद अकबर उन्हीं के संरक्षण में बड़े हुए. अकबर ने उन्हें खान-ए-खानन की उपाधि से भी सम्मानित किया था.
बैरम खां का पूरा नाम मोहम्मद बैरम खां था. उनका जन्म 18 जनवरी 1501 को मध्य एशिया के बदख्शां क्षेत्र में हुआ था. वह बहराल तुर्कमान कबीले से थे जो तुर्कमान जाति से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता सेफाल बेग बहारलू और दादा, जनाली बेग बहारलू बाबर की साम्राज्य में सेवा का हिस्सा थे. बैरम खां मुगल सल्तनत को बचाने में सक्रिय भूमिका निभाई है जिसकी वजह से उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज किया गया है.
लोगों के सिरों की मीनार बनाते थे बैरम खां-
मध्यकालीन युद्धों के अरबी इतिहास ग्रंथ के प्रथम अध्याय में कल्ला मीनार के बारे में बताया गया है जिसे बैरम खां ने बनवाया था. इस स्थान का नाम सर मंजिल रखा गया था. जब सिकंदर शाह सूरी के साथ युद्ध हुआ था तब जितने सिर कटे थे या सैनिक मरे थे उन सभी का सिर इक्कठा करके उन्हें ईंट, पत्थरों की जगह काम में लाया गया और ऊंची मीनार बनाई गई थी. बता दें कि, मुगल काल में ऐसी कितनी कल्ला मीनारें युद्ध विजय के दर्प-प्रदर्शन के लिए बनवाई गई थी जो उनके अभिमान को दर्शाता था. 'कल्ला' एक फारसी शब्द है जिसका हिंदी मतलब सिर होता है.
हज यात्रा के दौरान हुई हत्या-
बैरम खां हुमायूं का मित्र और सहयोगी तो था ही साथ ही उसके नाबालिग पुत्र अकबर का वली यानी संरक्षक था. अपना समस्त जीवन बैरम ख़ाँ ने मुगल साम्राज्य की सेवा में लगा दी. हुमायूं को उसका राज्य फिर से दिलाने के लिए उन्होंने कई युद्ध किए. इतना ही नहीं उन्होंने अकबर को बादशाह बनाने के लिए भी असंख्य युद्ध किए. उन्होंने भारत में मुगल साम्राज्य की फिर से स्थापना और विस्तार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि, अकबर की दूध माता माहम अनगा की साजिश की वजह से अकबर ने उन्हें संरक्षक पद से हटा दिया और उन्हें हज के लिए भेज दिया. हालांकि वो हज की यात्रा पूरा भी नहीं कर पाएं और रास्ते में ही 31 जनवरी 1561 को उनकी हत्या कर दी गई.