ॐलोक आश्रम: संसार में सत्ता के कितने स्तर हैं?
हमें ये जानना जरूरी है कि संसार में सत्ता के कई स्तर हैं। हम यही समझते हैं हमेशा कि संसार में सत्ता के एक ही स्तर हैं।
हमें ये जानना जरूरी है कि संसार में सत्ता के कई स्तर हैं। हम यही समझते हैं हमेशा कि संसार में सत्ता के एक ही स्तर हैं। जैसा हमें दिखाई देता है नदी पहाड़ सारी चीजें सत्ता का केवल यही एक स्तर नहीं है। सत्ता के तीन स्तर सनातन धर्म में माने गए हैं। प्रतिभाषिक सत्ता, व्यावहारिक सत्ता और पारमार्थिक सत्ता। जैसा की सत्ता का एक स्तर होता है हमारी एक दुनिया होती है सपनों की दुनिया, जब हम सपने देखते हैं लेकिन जैसे ही हम जगते हैं सपनों की दुनिया खत्म हो जाती है। इसी बात को हम समझ सकते हैं आज के वर्चुअल वर्ल्ड में।
वर्चुअल वर्ल्ड में भी इंसान उसी तरह काम करता है जिस तरह वो आम जिंदगी में करता है लेकिन अगर देखा जाए तो वर्चुअल वर्ल्ड उस तरह से नहीं है जिस तरह से एक्चुअल वर्ल्ड है। हमारी एक परंपरा अद्वैत वेद की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह जो संसार हमें दिखाई देता है इसकी एक सापेक्षिक सत्ता है। विज्ञान कहता है कि ये समय रिलेटिव है लाइट के, इस संसार की गति रिलेटिव है लाइट के। लेकिन शास्त्र कहते हैं कि सारा संसार ही रिलेटिव है और ये रिलेटिव है ब्रह्म के। ब्रह्म अल्टीमेट रियलिटी है और यह सापेक्षिक सत्ता है। एक तरह से ये वर्ल्ड जिसे हम एक्चुअल समझते हैं यह भी एक वर्चुअल वर्ल्ड है। जो आज का वर्चुअल वर्ल्ड है उसके लिए ये एक्चुअल वर्ल्ड है लेकिन जो ब्रह्मण है, ब्रह्म की तुलना में ये वर्चुअल वर्ल्ड है ब्रह्म एक्चुअल वर्ल्ड है।
भगवान श्रीकृष्ण को समझाते हुए कह रहे हैं कि जो ये शरीर है वो वास्तविक नहीं है। हमारा यह देह ये शरीर नाशवान है। ये खत्म होनी है और इसके पीछे जो शरीरी है जो आत्मा है वो नित्य है वो हमेशा रहने वाला है वो खत्म नहीं होगा। इसलिए जो अविनाशी है अप्रमेय है जो तुम हो तुम खत्म नहीं होगे यह तुम्हारा शरीर खत्म होगा। इस बात को जानो और इस बात को समझो। इस बात को जानने और समझने से व्यक्तिगत जीवन का जो व्यवहार है कि जब हम ये समझना चालू कर देते हैं कि मैं यह शरीर नहीं हूं मैं इस शरीर से अलग हूं तो पहली बात मैं सुखों और दुखों से एक कदम पीछे चला जाता हूं। मुझे न तो दुख दुखी करते हैं और न सुख ज्यादा सुखी करते हैं। पहला अंतर मेंरे अंदर ये होगा। दूसरा अंतर होता है कि जब मैं इस बात को महसूस करता हूं और जब मैं ध्यान की अवस्था में जाता हूं तो तटस्थ भाव पाने में मुझे आसानी मिलती है। अगर मैं शरीर को ही अपना समझुंगा तो ध्यान में जाते ही कभी हमें खुजली होगी, कहीं मेरे विचार आएंगे, कहीं मुझे दुख होने लगेगा, कोई अच्छे विचार आएंगे हंसी आने लगेगी, किसी की याद आने लगेगी और कुछ न कुछ मेरा हाथ हिलता रहेगा।
शरीर के साथ हमने इतना तादात्म्य बना लिया है कि शरीर को जरा सा भी कष्ट हो जाए तो हम बहुत ज्यादा कष्टमय हो जाते हैं। इस शरीर को अंदर से थोड़ा दुख मिल जाए तो हम दुखी हो जाते हैं। हम इसके सुख के लिए जिंदगी पर काम करते रहते हैं पर हम हैं क्या ये जानना जरूरी है। ये शरीर पैदा हुआ है ये जवान होगा ये बूढ़ा होगा ये नष्ट होगा लेकिन हम इसके बावजूद बच जाएंगे। अगर इस तरह हम जान लेते हैं समझ लेते हैं और इस तरह हम जीवन में आगे बढ़ते हैं तो लॉन्ग टर्म में हमारे दिमाग की बहुत सारी शक्तियां जो सोयी हुई हैं वो जागृत होती हैं। आम आदमी अपने दिमाग के एक-दो प्रतिशत से अधिक दिमाग का इस्तेमाल करता ही नहीं है। योग ये बतलाता है कि हम अपने दिमाग का शत-प्रतिशत इस्तेमाल कर सकते हैं।
उसकी पहली सीढ़ी यही है कि हम इस बात को जानें इस बात को समझें कि हम क्या हैं, हम ये शरीर नहीं हैं। इस शरीर से एक अलग सत्ता है जो हम हैं। यह शरीर विनाशी है, विनाशशील है, आज है कल नहीं होगा और हम इससे परे हैं। ये समझ लेने पर हमें मृत्यु का भय नहीं रहेगा। हमें दुख नहीं रहेगा हम सुखों के पीछे नहीं भागेंगे और वह अवस्था ऐसी होगी जो हमें लीडर बनाएगी, जो हमें समाज में सफल बनाएगी जो हमें राजनीति में सफल बनाएगी जो हमें खेल में सफल बनाएगी, जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाएगी हम सुखी और समृद्ध जीवन की ओर आगे बढ़ सकेंगे। भगवान कृष्ण अर्जुन को यही बतलाना चाहते हैं कि इन क्षुद्र वासनाओं से ऊपर उठो और युद्ध से मत भागो, युद्ध करो। जीवन हमारा एक युद्ध है उस युद्ध में हमें आगे जाना है। अपने समस्त वासनाओं से ऊपर उठकर विवेक के आधार पर जीवन को आगे जीना है।