ॐलोक आश्रम: मृत्यु के डर से कैसे बचें?
हमारे जीवन में हमारा सबसे बड़ा डर होता है इस जीवन का समाप्त होना, मृत्यु होना। हर व्यक्ति हर जीवित प्राणी अपनी मृत्यु से डरता है और वही अर्जुन अपनी मृत्यु से डर रहा है या फिर अपने प्रिय पात्रों की मृत्यु से डर रहा है
हमारे जीवन में हमारा सबसे बड़ा डर होता है इस जीवन का समाप्त होना, मृत्यु होना। हर व्यक्ति हर जीवित प्राणी अपनी मृत्यु से डरता है और वही अर्जुन अपनी मृत्यु से डर रहा है या फिर अपने प्रिय पात्रों की मृत्यु से डर रहा है और युद्ध से पीछे भाग रहा है। मृत्यु के डर को कैसे कंट्रोल करें, कैसे उससे बचें। अगर हमने मृत्यु के डर के खत्म कर दिया तो दुनिया में कोई ऐसा डर नहीं बचेगा जिससे की हम डरेंगे। जो हमारी सनातन परंपरा है और जो भगवान कृष्ण श्रीमदभगवद गीता में कह रहे हैं कि ये जो दुनिया है यह वर्चुअल दुनिया है। वास्तविक केवल परमब्रह्म है। जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है क्योंकि हमारी बुद्धि की उतनी गति नहीं है। शब्द किसी चीज को सीमित कर देते हैं इसलिए परमब्रह्म को नेति नेति कहा है उपनिषदों में।
वर्चुअल रियलिटी और एक्चुअल रियलिटी में अंतर है। वर्चुअल रियलिटी में कुछ भी हो जाए एक्चुअल रियलिटी को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए और फर्क पड़ता भी नहीं है। हमारे अंदर जो आत्मा है वो ईश्वर ही है अपने आप में वो अविनाशी है उसका कभी विनाश नहीं हो सकता। उसका विनाश क्यों नहीं होता क्योंकि उसकी उत्पति नहीं होती। जिसकी उत्पति है उसका विनाश है जिसका आदि है उसका अंत है जिसका प्रारंभ हुआ है कभी न कभी उसका अंत होगा ही। जिसकी उत्पति है उसका कभी न कभी विनाश होगा। यही कारण है कि इस्लाम और क्रिश्चियनिटी कहती है कि ईश्वर ने आत्मा का सृजन किया है हर जीवों के लिए तो जिसकी उत्पति है कभी न कभी उसका विनाश भी हो जाएगा। अगर हम उत्पति और विनाश मान लें तो वो भी जो है एक तरह से शरीर ही हो गया जिसकी उत्पति और जिसका विनाश हो गया। लेकिन अगर हम शरीर ही मान लें आत्मा को, तो मरने के बाद बचता क्या है। ये भी एक बड़ा प्रश्न आ जाता है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो आत्मा है वो अविनाशी है वो कभी विनाश को प्राप्त नहीं होती उसके स्वरूप बदलते जाते हैं। इस संसार का आधार परमात्मा है जैसे दही का आधार दूध है दूध ही बदलकर दही हो जाता है इसी तरह परमात्मा ही बदलकर ये सारा संसार बन जाता है।
आज वैज्ञानक प्रगति बहुत है। वैज्ञानिक प्रगति में वैज्ञानिकों ने खोजा, देखा कि ये पृथ्वी है, सूर्य है सौरमंडल है आकाशगंगाएं हैं ये सभी धीरे-धीरे एक समय के बाद ब्लैकहोल में बदल जाएंगे फिर सारे ब्लैकहोल एक ऐसी अवस्था में पहुंच जाएंगे जिसको आज का साइंस स्टेट ऑफ सिंगुलेटिरी कहता है जहां समय नहीं होगा, जहां स्पेस नहीं होगा और जहां ये प्रकृति के सारे नियम नहीं लागू होंगे ये एक अलग अवस्था होगी। उसी अवस्था के और परे की अवस्था की बात भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि वो अविनाशी वो परमतत्व है और उससे सारा संसार है और कोई भी संसार में ऐसा नहीं है जो इसका विनाश कर सके। क्योंकि ये अव्यय है इसमें कभी व्यय नहीं होता इसमें कभी कोई चेंज या फिर कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए ये जो परमात्मा है ये अविनाशी है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि जब आत्मा का विनाश ही नहीं होता तो फिर क्यों तुम डर रहे हो। न तो तुम्हारी आत्मा का विनाश होगा और न ही दूसरों की आत्मा का विनाश होगा जिनको कि तुम मारोगे या फिर जो तुम्हें मारेंगे। तो ये तुम्हारा अवश्यंभावी उत्तरदायित्व है सैनिक का उत्तरदायित्व है युद्ध करना। युद्ध करो, मृत्यु के भय से मत डरो क्योंकि मृत्यु इस शरीर की होगी तुम्हारी मृत्यु कभी नहीं होगी। इस बात को तुम जान लो और समझो।