ॐलोक आश्रम: कितनी विराट सभ्यता थी हमारी?
कितनी विराट भारतीय सभ्यता थी हमारी? तक्षशिला भारतीय संस्कृति का बहुत प्राचीन विश्वविद्यालय था और वहां एक अलग नियम था। उसके सात दरवाजे थे और हर दरवाजे पर एक विद्वान बैठा होता था।
ॐलोक आश्रम: कितनी विराट भारतीय सभ्यता थी हमारी? तक्षशिला भारतीय संस्कृति का बहुत प्राचीन विश्वविद्यालय था और वहां एक अलग नियम था। उसके सात दरवाजे थे और हर दरवाजे पर एक विद्वान बैठा होता था। आप अगर उस विश्वविद्यालय में जाना चाहो तो आप पहले गेट पर जाओगे आपसे वहां प्रश्न पूछा जाएगा, अगर आप उनके प्रश्नों का उत्तर देते हो तो आप वहां प्रवेश कर सकते हो, देख सकते हो पढ़ सकते हो, फिर आपको दूसरे दरवाजे पर जाना है तो वहां आपसे और भी ज्यादा कठिन प्रश्न पूछे जाएंगे अगर आप उसका उत्तर भी दे देते हो तो आप अगले राउंड में चले जाओगे।
इस तरह से सात ज्ञान के दरवाजे आपको पार करने पड़ेंगे तब आप मुख्य कक्ष में जाओगे। ह्वेनसांग जब भारत आया था उससे पहले उसने इंडोनेशिया में नौ साल तक भारतीय दर्शन का संस्कृत का अध्ययन किया और उसके बाद वो तक्षशिला आया ताकि उसमें प्रवेश कर सकें और तक्षशिला में अगले 12 सालों तक उसने ज्ञान प्राप्त किया। जीवक बहुत बड़े वैद्य थे अपने समय में। एक गणिका के पुत्र थे जीवक। जन्म के बाद उसने जीवक को फेंक दिया और एक राजा के बेटे ने जीवक को उठा लिया और वो राजभवन में पला बढ़ा लेकिन उसे लगा कि यहां गुलामी का जीवन जीने से अच्छा है कि मैं स्वतंत्र जीवन जीऊं और वो वहां से चला गया। उसने तक्षशिला जाकर आयुर्वेद का अध्ययन किया।
आयुर्वेद का अध्ययन करने पर जब उसको लगा कि उसको ज्ञान प्राप्त हो गया तब उसके गुरु ने कहा कि यहां से 12 कोस के अंदर तुम देखो ऐसी जड़ी-बूटी लाओ जिसका मानव के लिए कोई उपयोग नहीं है फालतू की जड़ी-बूटियां हैं। वो धूमता रहा 10-12 दिन, विचार करता रहा उसको ऐसी कोई जड़ी-बूटी नहीं मिली। तब उसके गुरु ने कहा कि तुम अब प्रवीण हो गए हो और अब तुम जा सकते हो। जीवक वहां से निकला लेकिन जब निकला तो अयोध्या पहुंचने से पहले उसके पास जो पैसे थे धीरे-धीरे वो सारे खर्च हो गए। उसको पता चला कि एक व्यापारी है और उसकी पत्नी सिरदर्द से पीड़ित है जिसके लिए उसको इलाज की जरूरत है। सारे वैद्य नाकाम हो गए थो जीवक ने उस महिला का इलाज शुरू किया। इलाज के लिए जीवक ने पांच सेर घी मंगवाए और उसमें जड़ी-बूटियां डाली और उसे गर्म किया और फिर उसको महिला के एक नाक में डालकर दूसरे नाक से निकालने लगा। धीरे-धीरे करके उसने उस गृहिणी को ठीक कर दिया। उसके बाद वहां से उसको धन मिला वो आगे गया।
उसके बाद राजा प्रसेनजीत ने उसे अपने यहां नौकरी पर रख लिया। प्रसेनजीत के दरबार में जीवक ने कई शोध किए और वहां लगातार काम करता रहा। दरबार में एक बहुत बड़े व्यापारी के पीठ में बहुत बड़ा फोड़ा था उसने जीवक से कहा कि यदि आप मुझे ठीक कर दोगे तो मैं आजीवन आपका दास बनकर रहूंगा। जीवक ने उस व्यापारी से कहा कि आप एक ही करवट 6 महीने लेट सकते हो उसने हामी भरी और कहा कि हां मैं बिल्कुल लेटूंगा। जीवक ने उसकी शल्य चिकित्सा की और उसके फोड़े के अंदर से कीड़ों को निकाल दिया और एक हफ्ते में व्यापारी को भला चंगा कर दिया। उस व्यापारी ने जीवक को दस लाख कांसे की मुद्राएं दीं और इस तरह से व्यापारी भला चंगा होकर अपने कार्य करने लगा।
तक्षशिला विश्वविद्य़ालय का गौरव इतना था कि वहां से आने वाले हर विद्यार्थी को राजा अपनी सेवा में तत्काल नियुक्त कर लेता था और हमारे वैद्यों की व्यवस्था ऐसी थी कि न केवल वो चिकित्सा शास्त्र करते थे बल्कि वो शल्य चिकित्सा में भी माहिर थे और दोनों चीजें उस जमाने में आज से लगभग 2600-2700 साल पहले हमारे पास ऐसे चिकित्सक और ऐसे सर्जन मौजूद थे जो किसी भी तरह की सर्जरी करके लोगों को ठीक कर सकते थे। यह एक प्रामाणिक कथा है जो हमारे हिन्दू और बौद्ध ग्रंथों में मिलती है।