ॐलोक आश्रम: ‘बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की’ कैसे बनी कहावत ?

राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें और न ही किसी को दिखाएँ, मैं तुम्हें पचास हजार की बजाय लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया !

Janbhawana Times
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एक समय एक राज्य में  राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। इतना सुनते ही  मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने  सैकड़ों रुपए का कर्ज लिया।

नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में चार आने दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए!

पूजा की थाली में चार आने देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी पर चार आने !! बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा !!!

गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया की राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं। लोग समझे की राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली 1,000 से शुरू हुई। और बढ़ते बढ़ते 50,000 रुपए तक पहुंची । मगर पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने अथवा दिखाने से इनकार कर दिया। यह बात राजा के कानों तक पहुंची ।

राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें और न ही किसी को दिखाएँ, मैं तुम्हें पचास हजार की बजाय लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया !

तब से यह कहावत बनी “बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की“ !!

यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।

चिंतक 🙏 

ॐलोक आश्रम

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11 June 2022, 04:43 PM IST

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