ॐलोक आश्रम: हम मृत्यु के भय से कैसे मुक्त हों?

श्रीमदभगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि मैं और तुमने हम दोनों ने बहुत सारे जीवन व्यतीत किए हैं।

Janbhawana Times
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श्रीमदभगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि मैं और तुमने हम दोनों ने बहुत सारे जीवन व्यतीत किए हैं। मुझमें और तुममें अंतर इतना है कि वो सारे जन्म मुझे याद हैं कि मैं कब-कब क्या रहा हूं और तुम उन जन्मों को याद नहीं रखते। लेकिन याद नहीं रहने से ऐसा नहीं है कि नहीं है। अगर हम अपने जीवन में ये पता कर लें कि ये हमारा जीवन एक मध्य की अवस्था है, हम पहले भी बहुत सारे जन्म ले चुके हैं और आगे भी बहुत सारे जन्म लेंगे। ऐसा विचार करने पर हमारे मृत्यु का भय कम हो जाता है। ऐसा मान लेने से हम चीजों को तत्काल अवस्था में लेते हैं। जैसे कि आइन्सटीन ने बताया कि संसार सापेक्ष है, पूरा विश्व सापेक्ष है कुछ भी निरपेक्ष नहीं है।

विज्ञान नहीं, धर्म और दर्शन बताता है कि निरपेक्ष परमब्रह्म है, वही निरपेक्ष है और पूरी दुनिया उसके सापेक्ष चल रही है और हमारा ये जीवन हमारा ये शरीर उसी परमपिता के सापेक्ष रूप मे चल रहा है और जब इस बात को जान जाते हैं अपने शरीर को, अपने आप को प्रभु को समर्पित कर देते हैं सारे कार्य निमित्त भाव से करने लगते हैं तो हम मृत्यु के भय से भी दूर हो जाते हैं। ये एक आदर्श है और इस आदर्श के जितना करीब हम पहुंच जाएं।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया कि तुम निमित्त मात्र होकर अपने कार्य करो। ये एक ऐसा उच्च आदर्श है कि इसकी ओर हम जितना जा पाएं उतना अच्छा है। इस आदर्श को लेकर हमें अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। कुछ इस जन्म में बढ़ेंगे, कुछ अगले जन्म में बढ़ेंगे और कुछ उससे भी अगले जन्म में बढ़ेंगे और इस तरह हम आगे बढ़ते रहेंगे यही हमारे जीवन का आदर्श होना चाहिए। निर्लिप्त भाव से काम करना, निमित्त मात्र होकर काम करना तभी हम मृत्यु के भय से मुक्त हो सकते हैं।

भगवान राम ने लोगों के सामने एक आदर्श जीवन रखा। वो आदर्श जीवन ऐसा था कि जिसको इराक में मेसोपोटामिया सभ्यता से लेकर जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया में सभी लोगों ने अपनाया। मनुष्य के जीवन के बहुत सारे पहलू होते हैं। वो पुत्र भी है, पिता भी है, पति भी है वो राजा भी है तो किसको किस तरह का कर्म करना चाहिए। उस जीवन में एक आदर्श पिता कैसा होना चाहिए, एक आदर्श पुत्र कैसा होना चाहिए, एक आदर्श पति कैसा होना चाहिए, एक आदर्श राजा कैसा होना चाहिए। ये सारी बातें भगवान राम ने कही। उसके अलावा आदर्श एक ऐसी चीज है जिसे हर व्यक्ति ने खुद चुना है। यही प्रभु ने हमें स्वतंत्रता दी है कि हम खुद अपना आदर्श चुन सकें।

वो हमारे अंदर हैं हम किन आदर्शों को चुनते हें और किन आदर्शों को लेकर जीवन में आगे बढ़ते हैं। जिन आदर्शों को हम अपने लिए चुनते हैं उसी तरह के विचार हमारी तरफ आकृष्ट होते हैं उसी तरह का हमारा व्यक्तित्व बनता है। हम जिस देवता को अपना आदर्श चुनेंगे तो उस देवता के अंदर जो गुण हैं वो धीरे-धीरे हमारे अंदर आने लगेंगे। इसीलिए हमें अपना आदर्श बड़ी सावधानी से चुनना चाहिए। ये आदर्श चुनने की अवस्था जो है भगवान ने हर मनुष्य को दी है कि अपना आदर्श खुद चुनो।

सनातन धर्म सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ धर्म है क्योंकि यहां आपको चुनने की स्वतंत्रता है। क्रिश्चियनिटी और इस्लाम में चुनने की स्वतंत्रता नहीं है। वहां एक ही रास्ते पर जाना है। लेकिन यहां अनंत ब्रह्णांड खुला है, अनंत देवी-देवता हैं, अनंत तरीके हैं आपके पास, किस तरीके से जीवन जीना चाहते हो, क्या जीवन का लक्ष्य बनाना चाहते हो, किस तरह के जीवन व्यतीत करने को आप सार्थक जीवन कहते हो ये सारी चीजें आपके लिए खोल दी गई हैं और उसको और भी खोलकर भगवान कृष्ण ने गीता में कह दिया है कि जीवन कुछ भी हो, आदर्श कुछ भी हो लक्ष्य हमेशा आत्मोन्नति होना चाहिए। जहां पूरे कुल का हित हो रहा हो, अगर एक व्यक्ति का हित उसमें बाधा उत्पन्न कर रहा है तो उस एक व्यक्ति के हित को त्याग देना चाहिए।

अगर पूरे गांव का हित हो रहा हो और उसमें एक कुल का हित आड़े आ रहा हो तो उस कुल के हित को त्याग देना चाहिए। इसी तरह अगर पूरे जनपद का पित हो रहा हो और एक गांव का हित उसमें आड़े आ रहा हो तो उस गांव का हित त्याग देना चाहिए। लेकिन अगर आत्मकल्याण हो रहा है और आत्मकल्याण में चाहे कोई भी बाधा आये उन सभी बाधाओं को दूर कर देना चाहिए क्योंकि हमारी इस आत्मा को परमात्मा से मिलना है यही जीवन का लक्ष्य है और इस जीवन का लक्ष्य बढ़ाकर हमें काम करते रहना चाहिए।

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10 July 2022, 02:49 PM IST

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