ॐलोक आश्रम: क्रोध पर नियंत्रण कैसे हो?
भगवान कृष्ण ने जीवन के हर पहलू को हर पक्ष को गीता में छुआ है और बताया है कि किस तरह से हम अपनी वासनाओं पर जीने वाले पशुवत जीवन से अपनी बुद्धि के स्तर पर और बुद्धि से ऊपर उठकर अपने आत्मा के स्तर पर किस तरह जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
भगवान कृष्ण ने जीवन के हर पहलू को हर पक्ष को गीता में छुआ है और बताया है कि किस तरह से हम अपनी वासनाओं पर जीने वाले पशुवत जीवन से अपनी बुद्धि के स्तर पर और बुद्धि से ऊपर उठकर अपने आत्मा के स्तर पर किस तरह जीवन व्यतीत कर सकते हैं। व्यक्ति विषयों के पीछे दौड़ता रहता है। हमारी वासनाएं विषय सामने ला देती हैं। इच्छाएं वासना के रूप में हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती हैं और हम समग्र शक्ति से उन इच्छाओं की पूर्ति में लग जाते हैं। जब उन इच्छाओं की पूर्ति में बाधा पड़ती है तो हमें क्रोध आता है और जब हमें क्रोध आता है तब हम सही और गलत का निर्णय नहीं ले पाते। हम तुरंत एक एग्रेसिव एक्शन ले लेते हैं।
हम पहले मेहनत करते हैं काम करते हैं और फिर उस काम के बदले आशाएं पाल लेते हैं। परिणामों के रूप में हम आशाएं पाल लेते हैं। जब हमारी आशाएं पूर्ण नहीं होंगी तब हमें क्रोध आएगा हमें दुख होगा। क्रोध के न तो हम उत्पत्तिकर्ता हैं और न विनाशकर्ता हैं। केवल क्रोध के हम भोक्ता हैं क्रोध हमारे ऊपर आ जाता है उसका हम भोग करते हैं। हमारे बुद्धि के पीछे क्रोध एक आवरण के रूप में है। आप क्रोध की एक्टिंग तो कर सकते हो लेकिन क्रोध नहीं कर सकते। क्रोध आता है क्रोध आप लाते नहीं हो। इसी तरह से आप क्रोध को रोक भी नहीं सकते हो अगर आप क्रोध को रोकने की कोशिश करोगे तो जितना ही रोकने की कोशिश करोगे उतना ही तेज क्रोध आएगा।
जिस तरह से आप किसी पानी की नदी को रोकने के लिए उसपर बांध बनाओगे तो एक समय वो बांध टूट जाएगा और उतना ही तीव्रता से पानी निकलेगा। जो नदी हैं वो हमारी वासनाएं हैं हमारे आवेग हैं। वो धीरे-धीरे निकलते रहते हैं हम उन्हें बांधने का प्रयास करते हैं। हम अपनी वासनाओं पर नियंत्रण कर लें तो धीरे-धीरे क्रोध कम होगा। वासनाओं पर नियंत्रण कैसे हो, मन पर नियंत्रण कैसे हो। हमारे शास्त्रों, उपनिषदों में मन पर नियंत्रण करने के लिए प्राणायाम के लिए कहा गया है। जिस तरह घोड़े को नियंत्रित करने के लिए लगाम होती है उसी तरह मन पर नियंत्रण के लिए प्राणायाम है। हमारा मन किस तरह से काम करता है। दरअसल हमारे मस्तिष्क में असंख्य न्यूरॉन्स होते हैं वो अनेक तरह के केमिकल्स निकालते हैं। कई तरह की ग्लैंड्स हैं जो केमिकल्स निकालती हैं। शरीर से जो भी केमिकल्स निकलते हैं उसका हमारे शरीर के आक्सीजन के स्तर से सीधा संबंध है।
प्राणायाम के द्वारा हम इनपर नियंत्रण कर सकते है। जो हमारे शरीर का सिस्टम काम करता है उसको समझना बहुत जरूरी है। हमारे शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। जो भी हम खाते हैं पीते हैं उससे ऊर्जा निकलती है और ऊर्जा के साथ-साथ टॉकसिन्स भी निकलते हैं। वो टॉकसिन्स हमारे हर सेल में इकट्ठे होते हैं। उन टॉकसिन्स को शरीर से बाहर निकालने के लिए मल-मूत्र, पसीना, सांस है इनके माध्यम से सामान्य प्रक्रिया से ये शरीर से बाहर निकलते रहते हैं। लेकिन जब हमारे अंदर तनाव आ जाता है हम वासनाओं से ज्यादा घिर जाते हैं या हमारे मस्तिष्क को लगता है कि कुछ ऐसी समस्या आ गई कि हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हों।
तो हमारा मस्तिष्क कुछ ऐसे केमिकल्स का निर्माण करता है जो कि बाकी सारी प्रक्रियाएं रोक देता है और हमारे जरूरी अंगों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं। जब ऐसा लंबे समय तक होता है तो हमारे शरीर का जो टॉकसिन्स निकालने का सिस्टम है वो सिस्टम रूक जाता है और शरीर में हमारे सेल्स के अंदर टॉकसिन्स इकट्ठे होने लगते हैं। वो टॉकसिन्स हमारे सिस्टम के अंदर परिवर्तन शुरू कर देते हैं। उससे हमें बीपी, शुगर जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं।
इन सभी बीमारियों का कारण है हमें परिणाम के प्रति अत्यधिक लगाव, हमारा वासनाओं से चिपक जाना, हमारा परिणाम से चिपक जाना। जब हम परिणाम से चिपक जाते हैं तो उसका एक उत्पाद है क्रोध। क्योंकि जरूरी नहीं है कि परिणाम हमेशा हमारे पक्ष में ही आएं। क्रोध आगे आपको अवसाद दे सकता है। परिणामों से अतृप्त रहना, सुख-दुख में समान भाव रखना जरूरी है। अपने जीवन को हमे अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर चलाना है न कि वासनाओं के आधार पर।