ॐलोक आश्रम: मनुष्य को किस तरह का जीवन चाहिए?
आज का मनुष्य हर समय सुखों की प्राप्ति में लगा रहता है और यह कोशिश करता है कि किस तरह से ज्यादा से ज्यादा सुख प्राप्त कर सकें। सुख प्राप्ति के लिए कभी वो धन ढूंढ़ता है कभी वो नशा ढ़ूंढ़ता है कभी मदिरा ढूंढ़ता है कभी स्त्री ढ़ूंढ़ता
आज का मनुष्य हर समय सुखों की प्राप्ति में लगा रहता है और यह कोशिश करता है कि किस तरह से ज्यादा से ज्यादा सुख प्राप्त कर सकें। सुख प्राप्ति के लिए कभी वो धन ढूंढ़ता है कभी वो नशा ढ़ूंढ़ता है कभी मदिरा ढूंढ़ता है कभी स्त्री ढ़ूंढ़ता है कभी कुछ और चीज ढ़ूंढ़ता है लेकिन सुखों की प्राप्ति के लिए लगा रहता है और दुखों से यथासंभव बचना चाहता है। लेकिन हालत ये होती है कि व्यक्ति सुखों की प्राप्ति में जितना लगना चाहता है उसके पीछे दौड़ता है उतना ही सुख उससे दूर भागते जाते हैं और जितना दुखों से पीछा छुड़ाकर भागना चाहता है दुख उतने ही तेजी से उसके पीछे भागता है तो किस तरह से जीवन जीया जाए कि व्यक्ति को सुख भी मिले और दुख से वो विचलित न हो। भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं कि जबतक जीवन है तबतक सुख भी आएंगे और दुख भी आएंगे ऐसा नहीं हो सकता कि आपके पास केवल सुख ही आए दुख नहीं आए और ऐसा भी नहीं हो सकता कि केवल दुख आए और सुख न आए। सुख और दुख आते-जाते रहेंगे। क्योंकि सुख और दुख उत्पन्न होते हैं आपके इन्द्रियों और विषयों के संयोग से।
जब आप आंखों से कोई चीज देखते तो अच्छा महसूस होता है, कोई सुगंधित चीज सूंघते हो तो अच्छा लगता है कोई अच्छी चीज स्पर्श करते हो तो अच्छा लगता है और जब आपकी इच्छा के विपरीत चीजें होती हैं तो आपको बुरा लगता है। तो इसी तरह से जो इच्छा के अनुरूप हो रहा है तो सुख की प्राप्ति होती है जब इच्छा के विरुद्ध हो रहा है तो आपको दुख की प्राप्ति होती है। ये सुख और दुख रहेंगे ही। भगवान कृष्ण कहते हैं कि इनको सहना सीखो। सुख आए तो उसको भी सहो और दुख आए तो उसको भी सहो। ये अनित्य हैं ये आने और जाने वाले हैं। सुख आया है तो सुख जाएगा भी। दुख आया है तो दुख जाएगा भी। सुख को पकड़ने में लगे रहोगे तो आप दुखी रहोगे क्योंकि आप उस सुख का आनंद नहीं उठा पाओगे क्योंकि सुख के जाने का डर है आपको। दुख के आने का डर है और दुख आ गया तो आप इतने दुखी हो जाओगे कि आप अवसाद में चले जाओगे। आप अपने आपको नष्ट करने की सोचने लगोगे। सुख में सुखी नहीं रह पाओगे और दुख में तो दुखी रहोगे ही। इसलिए आपको ये जानना जरूरी है कि जबतक हम विषयों की इच्छा करते रहेंगे हम चीजों की इच्छा करते रहेंगे तब तक हमें चीजें मिलेंगी भी और नहीं भी मिलेंगी। कई चीजें हैं जो मिली हैं वो चली भी जाएंगी।
हमें चीजें मिलेगी तो सुख होगा नहीं मिलेगी तो दुख होगा तो अच्छी बात ये है कि हम इच्छा से ऊपर उठ जाएं लेकिन हम नहीं भी उठ पा रहे हैं तो इस बात को जानें कि सुख और दुख दोनों आवागमन करने वाले हैं दोनों आने और जाने वाले हैं। तो सुख का आनंद लो जबतक सुख है जब चला जाएगा तब दुख आएगा। दुख आए तो उसका भी आनंद उठाओ और ये समझो कि ये दुख कुछ समय के लिए आया है और ये भी जाने वाला है फिर सुख आ जाएगा। तो जीवन को जीने का यह ढंग है कि जिस तरह हम सर्दी और गर्मी, धूप और छांव इनमें जीते हैं उसी तरह से हम सुख और दुख में जीएं यही भगवान कृष्ण कहते हैं। जिस व्यक्ति को सुख और दुख व्यथित नहीं करते, दुखी नहीं करते, सर्दी और गर्मी जिसको दुखी नहीं करते। जब व्यक्ति गर्मी से डरता है घर में बंद हो जाता है एसी चला लेता है उसी तरह ठंड से डरता है हीटर चलाकर रहता है तो जब बाहर निकलना उसे डरावना प्रतीत होता है उसे कष्ट होता है लेकिन जो व्यक्ति मेहनती है, मेहनत करके अपने परिश्रम से पसीना उत्पन्न करता है और जब हवा चलती है तो उस हवा से पसीने सूखने पर जो ठंडक उत्पन्न होती है उसका एक अलग सुख होता है। मेहनत से पसीना बहाने का एक अलग सुख होता है। इसी तरह से जब हम अपने जीवन में कर्म किये जाते हैं और फल पीछे छोड़ देते हैं और उसके फलों की इच्छा नहीं करते तो एक अलग तरह की खुशी एक संघर्षजनित जो फल होता है।