ॐलोक आश्रम: क्या हूं मैं, क्या मैं यह शरीर हूं या इससे इतर कुछ हूं?

हम कई चीजों के पीछे भागते रहे तो ये समस्या जरूर है कि हमें भागना किसके पीछे है। हमें किसी के पीछे नहीं भागना है क्योंकि जो मैं हूं यही जानना है मुझे अपने पीछे भागना है। अपने आपको जानना है।

Janbhawana Times
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हम कई चीजों के पीछे भागते रहे तो ये समस्या जरूर है कि हमें भागना किसके पीछे है। हमें किसी के पीछे नहीं भागना है क्योंकि जो मैं हूं यही जानना है मुझे अपने पीछे भागना है। अपने आपको जानना है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं मैं जो हूं यह शरीर नहीं हूं यह शरीर कपड़ा है जिसे मैं बदलता रहता हूं और मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जबतक हम डर कर चीजों को करेंगे तबतक हम अपना विकास नहीं कर पाएंगे। हमारे जीवन में दो चीजें हैं जिससे हम वशीभूत होते हैं और काम करते हैं।

एक है प्रलोभन और दूसरा है डर। डर से हम भागते हैं और प्रलोभन के पीछे हम दौड़ते हैं। प्रलोभन किसी का हो पैसों का हो, पद का हो, काम-वासनाओं का हो नित नये प्रलोभन आते रहते हैं और हम उन प्रलोभन के पीछे भागते रहते हैं। बुद्धि वासनाओं की दासी है जो आज का इंसान दिखाई देता है उसी तरह दिखाई देता है कि जो वासनाएं लक्ष्य निर्धारित करती हैं और बुद्धि पीछे दौड़ने लगती है कि किस तरह से इसको पा लें। वास्तविक लक्ष्य वासनाओं के पीछे दौड़ना नहीं है।

वास्तविक लक्ष्य अपना ग्रो करना है। समस्या क्यों हो गई क्योंकि हमने अपने इस शरीर को मैं मान लिया। वस्तुत: ये शरीर नष्ट हो जाएगा लेकिन मुझे नष्ट नहीं कर सकती। न तो मुझे कोई शस्त्र मार सकता है न तो अग्नि जला सकती है न हवा सुखा सकती और न जल गीला कर सकता। मैं वह तत्व हूं वह तत्व अपने आप को भूल गया है। अपने स्वरूप को भूल गया है। हम इस शरीर से आबद्ध होकर इस शरीर के सुख को अपना सुख और इस शरीर के दुख को अपना दुख समझ लेते हैं। समस्या यहां आ जाती है। जब हम अपने स्वरूप को जानने का प्रयास करते हैं तो अपने आप को अपग्रेड करते हैं।

वस्तुत: जब कोई काम आप तन्मय होकर करते हो वो आपके ध्यान की अवस्था है। जब आप सबकुछ भूल जाएं वही ध्यान की अवस्था है। वही तन्मयता आपको अपग्रेड करती है आपके सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करती है वही तन्मयता आनी चाहिए। वो तन्मयता तभी आएगी जब आप न तो प्रलोभनों के वश में आकर आगे बढ़ें और न किसी चीज से डरें। जब आप डर अपना भय और लालच इन सबों से परे हो जाते हैं इन सबों से ऊपर उठ जाते हैं और एक विंदु पर केन्द्रित हो जाते हैं वही आपके तन्मयता की अवस्था है वही आपके ध्यान की अवस्था है और वही एक ऐसी अवस्था है जो आपके मस्तिष्क की आपके अन्तर आत्मा की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करेगा।

शक्तियां बहुंत जारी है अनंत शक्तियां हैं। हमारी आत्मा अनंत शक्तियों से युक्त है, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत सुख इनको भगवान महावीर अनंत चतुष्टय कहते हैं उनसे युक्त हैं लेकिन हमारे अज्ञान के कारण वो सीमित हो गई हैं और उसी सीमित होने के कारण हम बहुत सीमित रूप मे रहते हैं जिसने इन शक्तियों को जागृत कर लिया जिस स्वरूप में जागृत कर लिया वो उतना ही समाज में देश में उठ गया और जिसने पूर्ण रूप से जागृत कर लिया वो बुद्ध हो गया तो इसी दिशा में हमें आगे बढ़ना है और धीरे-धीरे अपनी शक्तियों को जागृत करना है।

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06 July 2022, 12:34 PM IST

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