ॐलोक आश्रम: कर्म और फल के बीच क्या संबंध है?
जो हमारा सनातन धर्म है इसकी एक विशेषता है। ये वैदिक ऋषियों से लेकर औपनिषदिक काल से और अनंत ऋषियों के चिंतन और आत्म साक्षात्कार के फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न हुआ वो हमारे उपनिषदों में हमारे भगवदगीता में निबद्ध है।
जो हमारा सनातन धर्म है इसकी एक विशेषता है। ये वैदिक ऋषियों से लेकर औपनिषदिक काल से और अनंत ऋषियों के चिंतन और आत्म साक्षात्कार के फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न हुआ वो हमारे उपनिषदों में हमारे भगवदगीता में निबद्ध है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि आत्मा न तो कभी जन्म लेता न कभी मरता है और ये जो श्रृंखला चल रही है कि व्यक्ति जन्म लेता फिर मरता है फिर जन्म लेता है तो हमारा सनातन धर्म यही मानता है कि पुनर्जन्म है, व्यक्ति किसी न किसी जीव के रूप में जन्म लेता है और कर्म करता है और वो जिस तरह का कर्म करता है वैसे ही संस्कार उसके उत्पन्न होते हैं। और वो संस्कार उसके अगले जन्म का कारण बनते हैं। व्यक्ति जैसा कर्म करता है वैसा उसको अगला जन्म मिलता है और ये एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है। हम किसी जन्म को नहीं कह सकते कि ये मेरा अंतिम जन्म है या फिर ये मेरा पहला जन्म है।
अंतिम जन्म उसे माना जाता है जब व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है और ऐसे जन्म जो किसी संस्कार को उत्पन्न नहीं करते और व्यक्ति प्रभु में मिल जाता है या फिर व्यक्ति खुद ही ईश्वर में ही मिल जाता है और ईश्वर ही हो जाता है। ऐसा हमारी सनातन परंपरा मानती है। जबकि ईसाई और इस्लाम एक अलग थ्योरी को लेकर आगे बढ़ते हैं वो ये मानते हैं कि जब भी किसी व्यक्ति का जन्म होता है या कोई भी प्राणी गर्भ में आता है तो गॉड या अल्लाह उसके लिए एक आत्मा का सृजन करते हैं, और वो प्राणी जबतक जीवित रहता है तबतक उसके साथ रहता है और जैसे ही उसकी मृत्यु होती है उसकी रूह अनंतकाल तक बड़े लंबे समय तक कयामत के दिन तक वो इंतजार करती है और जब कयामत होती है तो उसके कर्मों का मूल्यांकन होता है और उसके कर्मों के हिसाब से उसे स्वर्ग या नर्क मिलता है।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि जैसा आप कर्म करोगे वैसा ही आपको फल मिलेगा। आप जो इस जन्म में हो वो पिछले जन्मों के कर्मा का परिणाम है। हमारी अन्तरात्मा सॉफ्टवेयर की तरह है उसे हम अपने कर्मो के द्वारा उसको अपग्रेड करते हैं अगर हम अच्छा कर्म करते हैं तो इस जन्म में भी हम खुश रहते हैं और अगला जन्म जो हमें मिलेगा वो अगला जन्म इसी जन्म का अपग्रेडेड वर्जन होगा और अगर हम बुरे कर्म करते हैं तो हम डाउनग्रेड हो जाएंगे। जो व्यक्ति जिस तरह का काम करता है उसी तरह का जन्म उसको मिलता है। इसलिए अच्छे कर्म सोने की तरह है जो अच्छे संस्कारों को उत्पन्न करता है उसके फलस्वरूप आपको अच्छा जन्म मिलता है और बुरे कर्म कोयले की तरह हैं जो काले संस्कारों को उत्पन्न करता है। अगर आपको कर्मों के बंधन से छूटना है तो आपको न तो अच्छे कर्म करने हैं न बुरे कर्म करने हैं और निष्काम भाव से कर्म करने हैं और ऐसे कर्म आपको बंधन में नहीं बांधेंगे। धीरे-धीरे आप मुक्त हो जाओगे और आपका प्रभु के साथ मिलन हो जाएगा।