हम दबाव में कब आते हैं?

हम अपने स्वाभाविक कर्म नहीं कर पाते अगर हम दबाव में आ जाएं। दबाव क्यों होता है हमारे अंदर, हम दबाव में क्यों आ जाते हैं जब हम परिणामों के बारे में सोचने लगते हैं

Janbhawana Times
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हम अपने स्वाभाविक कर्म नहीं कर पाते अगर हम दबाव में आ जाएं। दबाव क्यों होता है हमारे अंदर, हम दबाव में क्यों आ जाते हैं जब हम परिणामों के बारे में सोचने लगते हैं। जब हम सोचते हैं कि हम जीतेंगे नहीं जीतेंगे, हम हारेंगे नहीं हारेंगे, अगर हार गए तो क्या होगा लोग हमें क्या कहेंगे। रणभूमि में भी अर्जुन इस तरह के दबाव में थे। 

दरअसल, हमारे शरीर का हमारे मन का बड़ा गहरा संबंध है। जब हमारे मन में तनाव आ जाता है हम डर जाते हैं। हम अवसाद की स्थिति में होते है तो हमारा शरीर भी शिथिल पड़ जाता है। उसमें जान सी नहीं रहती। इसी तरह से जब हमारे शरीर में कष्ट रहता है तो हमे कहीं मन नहीं लगता है। तन और मन का संबंध बड़ा अद्वितीय है ये एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। तन और मन के संबंध के कैसे मजबूत बनाया जाए। मन को किस तरह से मजबूत बनाया जाए कि ये विपरीत परिस्थितियों में भी न झुके न मुड़े। अगर भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ नहीं होते तो शायद युद्ध प्रारंभ होने से पहले ही अर्जुन युद्ध से चले जाते और खत्म हो जाता। हमारे जीवन में एक गुरु का होना जरूरी है जो हमें बताए कि हमें क्या करना है क्योंकि परिस्थितियां विपरीत आएंगी। हम कितना भी अनुमान क्यों न लगा लें लेकिन उससे कई गुना ज्यादा विपरीत परिस्थितियां आएंगी। बड़े-बड़े योजना बनाने वाले भी फेल हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें हमारा गुरु ही इससे निकलने का मार्ग बतलाता है। 

अर्जुन की समस्या आज हर युवा की समस्या है। हर युवा को लग रहा है कि हम इस जीवन का किस तरह से जीएंगे। हमारी नौकरी कैसे लगेगी। हम किस तरह से अपने बिजनेस में सफल होंगे। किस तरह से मैं आईआईटी क्वालिफाई कर सकूंगा किस तरह से मैं यूपीएससी क्वालिफाई कर सकूंगा। एक खिलाड़ी सोचता है किस तरह से टीम में मेरा स्थान हो पाएगा। बहुत सारे युवा अवसाद में चले जाते हैं बहुत सारे युवा आत्महत्या कर लेते हैं। अगर हमें सर्वोच्च तरह से परफॉर्म करना है तो क्या करना है हमें। ऐसी कौन सी विद्या है ऐसा कौन सा ज्ञान है जिसको अगर हम अपने पास रख लें तो हम सर्वोच्च तरीके से परफॉर्म कर सकते हैं। हमारा चिंतन क्या होना चाहिए। 

जब हम जीवन का विकट युद्ध लड़ रहे होते हैं तो कभी कभी हम हताशा में चले जाते हैं, हम अंधकार में चले जाते हैं हम हारने लगते हैं और हमें लगता है कि शायद अब कोई रास्ता बचा नहीं है। सबकुछ समाप्त हो चुका है ऐसा विचार हमारे मन में आ जाना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसी अवस्था में आपको गुरु बतलाएगा कि आपको करना क्या है और हमारा सबका जो सर्वकालीन गुरु है वो है भगवदगीता है भगवान कृष्ण हैं। वो अर्जुन को बतलाते हैं कि करना क्या है। पूरी भगवदगीता इसी प्रश्न का उत्तर है कि जीवन को किस तरह जीना है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों से किस तरह निकलना है और किस तरह विचार रखना है कि ऐसी विषम परिस्थितियां आएं ही ना। 

अर्जुन के एक-एक प्रश्न का भगवान कृष्ण ने बिल्कुल सही जवाब दिया है। बतलाया है कि काम हमें किस तरह से करने चाहिए कि हम इन परिस्थितियों से बाहर निकल जाएं। अर्जुन डर गया उसने कहा कि मैं युद्ध नहीं करूंगा। उसने कहा कि मुझे बताओं की मुझे करना क्या है। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया हूं, मुझे पता नहीं चल रहा है कि मैं क्या करूंगा। ऐसी अवस्था कभी कभी हमारे जीवन में आ जाती है कि हमें पता ही नहीं चलता कि किस दिशा में जाना है। ऐसी अवस्था से बाहर कैसे निकलें। 

हम किंकर्तव्यविमूढ़ न हों ये भगवदगीता ने हमें बतलाया है। ये भगवदगीता ने तीन तरीकों से बतलाया है। ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग। तीन तरह के मनुष्य हैं एक हैं बुद्धजीवी माइंडेड ज्ञान प्रधान, दूसरे हैं भावना प्रधान सेंटीमेंटल लोग हैं, तीसरे हैं मेहनतकश यानी कर्म प्रधान लोग कर्म करने वाले। इन तीनों को किस तरह का विचार करना चाहिए, किस तरह का रास्ता है हमें क्या करना चाहिए। ये भगवदगीता से बता दिया है, भगवान कृष्ण से बता दिया है और अगर हम उसपर चल लें तो हम बड़े कूल होकर जीवन को धीरे-धीरे आगे बढ़ा सकते हैं कोई समस्या आएगी ही नहीं। जीवन है तो समस्याएं रहेंगी, घटनाएं घटेंगी लेकिन वो घटनाएं हमें दुख नहीं देंगी। जब व्यक्ति चित्त की संतुलित अवस्था मे रहेगा तो समस्याओं का समाधान जल्दी पा लेगा। जितने भी सफल व्यक्ति हैं जो ऊंचाईयों पर हैं वो भगवदगीता को जरूर पढ़ते हैं। 

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भगवदगीता के इतने बड़े भक्त थे कि वो संतों के चरणों में बैठकर भगवदगीता पर चर्चा करते थे उसका अर्थ पूछा करते थे। भगवदगीता का ये उपदेश किसी जाति, किसी धर्म के लिए नहीं है ये सब के लिए है, मानवमात्र के लिए है। जिस तरह आप एक दवा लेते हैं एलोपैथी की या होमियापैथी की वो किसी जाति या किसी धर्म को देखकर काम नहीं करती ये यूनिवर्सल रूप से काम करती है। उसी तरह भगवदगीता के जो नियम हैं वो सभी मानवमात्र पर यूनिवर्सली लागू होते हैं चाहे वो किसी भी जाति हो किसी भी धर्म का हो और जब हम जीवन में ऊंचाई पर बढ़ते हैं तो हमारा विजन क्लियर होता है हमें ये चुनौतियां आती हैं जो अर्जुन के सामने आए और उन चुनौतियों से कैसे निकलना है ये भगवदगीता बतलाती है। यही कारण है कि भगवदगीता विश्व की प्रधानतम किताबों में से एक किताब है। जबकि दुनिया में कोई हिन्दू देश नहीं है। बहुत सारे इस्लामिक कंट्रीज हैं, क्रिश्चियन कंट्रीज हैं उनके बावजूद पूरी दुनिया में भगवदगीता का इतना पढ़ा जाना इस बात का परिचायक है कि जिस समस्या का कहीं भी समाधान नहीं है भगवदगीता में उस समस्या का समाधान है।

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21 June 2022, 04:48 PM IST

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